आध्यात्ममंदसौर जिलासुवासरा

संत, स्वभाव से संत होना चाहिए,भरतजी एक राजा होते हुए भी आदर्श संत थे- संत श्री दिव्येशरामजी

संत, स्वभाव से संत होना चाहिए,भरतजी एक राजा होते हुए भी आदर्श संत थे- संत श्री दिव्येशरामजी

पंकज बैरागी

सुवासरा -प्रभु श्री राम के 14 वर्ष के वनवास काल में भरत जी ने अयोध्या का राज संभाला लेकिन, भरत जी ने राज सिंहासन पर श्री राम की खड़ाऊ रखकर एवं स्वयं ने गुफा में निवास कर 14 वर्ष वनवासी जीवन जिया । वस्तुत भरतजी एक राजा होते हुए भी आदर्श संत थे ।संत, स्वभाव से संत होना चाहिए, उसमें संतत्व का भाव होना चाहिए । यह उदगार चातुर्मास कर रहे राम स्नेही संप्रदाय के संत श्री दिव्येशरामजी ने नवधा भक्ति पर प्रवचन के सातवें दिन भरतजी की प्रभु राम के प्रति भक्ति के प्रसंग पर व्यक्त किये । भाई का भाई के प्रति प्रेम का ऐसा अप्रतिम उदाहरण कहीं देखने को नहीं मिलता ।14 वर्ष तक प्रभु राम ने भी सदैव भरत का स्मरण किया । विभीषण को लंका का राजा बनाने के बाद विभीषण के आग्रह किया कि कुछ दिन लंका के राज प्रसाद में रुके, लेकिन श्रीराम, 14 वर्ष बीतने के बाद एक दिन भी अयोध्या पहुंचने में देरी नहीं करना चाहते थे , क्योंकि वनवास के दौरान भरत जी ने चित्रकूट में श्री राम से भेंट कर कहा था कि एक दिन भी देरी की वे प्राण त्याग देंगे ।

आपने कहा कि पुण्य के कारण भगवान के दर्शन हो जाते हैं, लेकिन भगवान के दर्शन के पूर्ण से भारत की जैसे संत के दर्शन हो जाते हैं । तुलसीदास जी कहते हैं कि प्रभु श्री राम के दर्शन के बाद जब ऋषि भारद्वाज ने भारत जी के दर्शन किए तब ऋषि भारद्वाज ने अपनी भावना प्रकट करते हुए यह बात कही थी । आपने कहा कि सन्त को भगवान से ऊंचा स्थान दिया गया है लेकिन संत को स्वयं यह नहीं मानना चाहिए । यह संत का स्वभाव होना चाहिए ।

त्रैमासिक चातुर्मास के दौरान प्रवचन का समापन रामनवमी पर एक अक्टूबर को किया जाएगा । समिति ने डिम्पल को बताया कि इस अवसर पर सभी सहयोगियों का राम स्नेही भक्त मंडल समित द्वारा सम्मान किया जाएगा ।

 

 

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
WhatsApp Icon
Whatsapp
ज्वॉइन करें
site-below-footer-wrap[data-section="section-below-footer-builder"] { margin-bottom: 40px;}