1950 में संघ काम करते थे, अब गणवेश विक्रय के दौरान संपर्क हुआ तो दादा ने पोते को गणवेश दिलवाई

संघ शताब्दी वर्ष पर मंदसौर में निकलेगा भव्य पथ संचलन, घर घर जाकर कर रहे आग्रह, नागरिकों में उत्साह
मंदसौर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्थापना के 100 वर्ष पूर्ण होने पर शताब्दी वर्ष उत्सव के अंतर्गत मंदसौर में भी विशाल पथ संचलन निकलेगा। इसके लिए स्वयंसेवक घर-घर जाकर संपर्क कर रहे हैं और गणवेश वितरण कर रहे हैं। नगर सहित जिलेभर में संघ के प्रति उत्साह का वातावरण है। मंदसौर नगर में संपर्क के दौरान स्वयंसेवकों का मिला एक बुजुर्ग व्यक्ति से हुआ उन्होंने बताया कि वह 1950 में संघ का कार्य करते थे, शारीरिक अक्षमताओ के चलते वर्तमान में संघ में सक्रिय नहीं है। शताब्दी वर्ष संचलन के लिए स्वयंसेवको का मोहल्ले में आगमन हुआ तो उन्होंने अब अपने पोते को गणवेश दिलाई है।उल्लेखनीय है कि प्राचीन दशपुर कहलाने वाले मंदसौर का संघ कार्य में विशेष स्थान है। रावण की पत्नी मंदोदरी का जन्मस्थान और प्रतापी राजा यशोधर्मन की नगरी होने से यह ऐतिहासिक नगर संगठन की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण रहा है। वर्ष 1938 में बापूराव सरदेसाई ने यहां दत्त मंदिर के पीछे मैदान में पहली शाखा प्रारंभ की थी। इसके बाद मनासा, गरोठ, भानपुरा, रामपुरा और नीमच में शाखाएं फैल गईं। उस समय कार्यकर्ता पैदल गांव-गांव जाकर शाखाएं शुरू करते थे।प्रारंभिक दौर में चांदमल सोलंकी, उम्मेदराम परमार, सज्जनलाल मेहता, हरिप्रसाद शर्मा, शांतिलाल नानावटी जैसे स्वयंसेवकों ने संघ कार्य को गति दी। जावद, गरोठ, मनासा और नीमच में भी सक्रिय स्वयंसेवकों ने संगठन को मजबूत किया। मंदसौर से निकले प्रचारकों ने पूरे मालवांचल में शाखाएं खड़ी कीं और आगे चलकर गुजरात के दाहोद तक संघ का विस्तार हुआ।संघ का स्वरूप जिले में लगातार बढ़ता गया। 1947 में मंदसौर में पहला संघ कार्यालय किराए से लिया गया। बाद में सीतामऊ, मल्हारगढ़ और अन्य तहसीलों तक शाखाएं पहुंचीं। नगरी,दलौदा तहसील भी संघ के कार्यक्षेत्र में जुड़ी।वरिष्ठ स्वयंसेवकों के अनुसार, आर्थिक स्थिति कठिन होने के बावजूद स्वयंसेवक उत्साह के साथ पथ संचलन और उत्सवों में शामिल होते रहे। अल्प साधनों में भी राष्ट्रभक्ति और संगठन की ज्योति जलाए रखी गई। यही कारण है कि आज मंदसौर जिले की पहचान संघ कार्य की धरती के रूप में है। उक्त जानकारी प्रचार प्रमुख शिवाजी सेनी ने दी।