आलेख/ विचारभोपालमध्यप्रदेश

चिट्ठियों की मौत लाल पेटियों का अंतिम संस्कार!

चिट्ठियों की मौत लाल पेटियों का अंतिम संस्कार!

1854 में जो सफर शुरू हुआ, वह 1 सितंबर 2025 को थम गया। भारतीय डाक विभाग ने डाक पेटियों को हमेशा के लिए बंद करने का फैसला कर लिया है। जी हाँ, वही लाल रंग की पेटियाँ जिनमें कभी भावनाएँ बंद होती थीं, जिनमें इंतज़ार का स्वाद होता था, अब इतिहास बन चुकी हैं।

कभी यही डाक पेटियाँ प्रेम पत्रों की गवाह थीं, राखियों का संदेश लेकर भाई तक पहुँचती थीं, नौकरी के बुलावे और घर की खुशखबरी का जरिया थीं। गाँव की पगडंडियों से लेकर शहर की सड़कों तक, ये पेटियाँ सिर्फ लोहे के डब्बे नहीं थीं, ये रिश्तों की डोर थीं। लेकिन वक्त ने इन्हें भी बेरहम डिजिटल क्रांति के हवाले कर दिया।

आज जब सबकुछ ईमेल, व्हाट्सऐप और इंस्टेंट मैसेजिंग में सिमट गया, तब किसे फुर्सत है पोस्टमैन का इंतजार करने की? चिट्ठियों का दौर खत्म, अब सिर्फ नोटिफिकेशन का शोर है। इंसान भी बदल गया, रिश्तों में अब वो ठहराव नहीं रहा। प्यार का इज़हार अब कागज़ पर नहीं, स्क्रीन पर होता है जहाँ ‘seen’ का ब्लू टिक दिल के हाल बता देता है।

डाक पेटियाँ क्यों बंद हो रही हैं? कारण साफ है खाली पेटियाँ, भरा खर्चा। डाक विभाग को उनका मेंटेनेंस घाटे का सौदा लगने लगा। जब पेटियों में चिट्ठियाँ आने की बजाय धूल जमने लगी, तो विभाग ने भी कह दिया“टाटा बाय-बाय।”

लेकिन सवाल यह है कि क्या हमने सिर्फ एक पेटी खोई है या इंतज़ार का वो सुकून भी गँवा दिया है? क्या अब कोई यह नहीं कहेगा “पोस्टमैन आया, चिट्ठी लाया”?

लाल पेटियों का जाना सिर्फ एक व्यवस्था का अंत नहीं, यह भावनाओं के उस युग का अंत है जहाँ संदेशों का वजन होता था, महक होती थी। आज हम तेज़ हैं, डिजिटल हैं, पर क्या सच में इतने जुड़े हुए हैं?

हो सकता है अगली पीढ़ी पूछे “डाक पेटी क्या होती है?” और हम जवाब देंगे—“एक जमाने में लोग चिट्ठियों से जीते थे, बेटा! डिजिटल इंडिया की यह जीत है या रिश्तों की हार? फैसला आपके हाथ में है।

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