कोटेश्वर में बनेगी 5000 गायों के लिए जिले की पहली स्वावलंबी गौशाला

कोटेश्वर में बनेगी 5000 गायों के लिए जिले की पहली स्वावलंबी गौशाला
जिले की पहली कामधेनु निवास स्वावलंबी गौशाला का निर्माण सीतामऊ के प्रसिद्ध दर्शनीय स्थल कोटेश्वर महादेव मंदिर परिसर में होगा। इसके लिए पशुपालन विभाग 500 बीघा भूमि अधिग्रहित कर चुका है। भोपाल स्तर पर टेंडर प्रक्रिया अंतिम चरण में है। करीब 5 हजार गायों के आश्रय स्थल पर सर्वसुविधा होगी। प्राप्त होने वाले दूध और गोबर सहित अन्य सामग्री से तरह-तरह की सामग्री बनाई जाएगी। भविष्य में इनकी मार्केटिंग या बिक्री की भी योजना बनाई जाएगी।
इससे पहले सरकार ने यहां गो-अभयारण्य बनाने की योजना बनाई थी। संपूर्ण खर्च व देखरेख शासन को करना था। मौजूदा सरकार ने इसे बदलते हुए 2025 से स्वावलंबी गौशाला नीति लागू की है। इसके तहत जिले
स्वावलंबी गौशाला के लिए इस भूमि का किया अधिग्रहण।में प्रस्तावित गौ-अभयारण्य की जगह अब स्वावलंबी गौशाला बनेगी। इसे ‘कामधेनु निवास गौशाला’ नाम दिया गया है। यहां 5
हजार गायों के लिए सभी आधुनिक सुविधाएं होंगी। लक्ष्य है कि जिले में कोई भी गोवंश खुले में विचरण करता न दिखे।
7 हजार तक की क्षमता विकसित करने की तैयारी- पशु चिकित्सा अधिकारी डॉ. सुखदेव कुमावत ने बताया कि अधिग्रहण प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। टेंडर प्रक्रिया पूरी होने के बाद गौशाला का निर्माण कार्य प्रारंभ होगा। चयनित संस्था को शासन द्वारा भूमि उपलब्ध करवाई जाएगी। बिजली, पानी जैसी सुविधाएं रियायती दर पर दी जाएंगी। क्षेत्रीय विधायक हरदीपसिंह डंग ने कहा कि स्वावलंबी गौशाला योजना से निजी संस्थाओं की भागीदारी सुनिश्चित होगी। इससे गोशालाएं न सिर्फ गोवंश की बेहतर देखभाल करेंगी बल्कि गो-उत्पादों से आर्थिक रूप से सशक्त भी बनेंगी। वर्तमान में 5 हजार गोमाता रखने का लक्ष्य है लेकिन 7 हजार तक की क्षमता विकसित करने की तैयारी है। सुवासरा विधानसभा में बनने जा रहा यह गो-आश्रय जिले का पहला कामधेनु निवास होगा।
गोबर, गौमूत्र से जैविक खाद, कीटनाशक बन सकेंगे
स्वावलंबी गौशाला से निराश्रित गोमाताओं को सुरक्षित, संरक्षित व व पोषित वातावरण मिलेगा। इससे उनकी देखभाल बेहतर होगी व सड़क दुर्घटनाओं की घटनाएं घटेंगी। गोबर, गौमूत्र से जैविक खाद, कीटनाशक, साबुन, पेंट जैसे उत्पाद बनाकर गोशालाएं आत्मनिर्भर बन सकती हैं। ये देशी उत्पाद पर्यावरण के अनुकूल होने के साथ-साथ स्वास्थ्यवर्धक भी होते हैं। इससे स्थानीय उद्योगों को बढ़ावा मिलेगा और ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के नए अवसर खुलेंगे। गोसेवा केवल एक परंपरा नहीं बल्कि जनसहभागिता से जुड़ा एक व्यापक आंदोलन बन सकेगा। जो समाज और पर्यावरण दोनों के लिए हितकारी होगा।
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