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माता पिता का सम्मान करे,हमेशा उनका आशीर्वाद ले,जैन धर्म में पर्युषण पर्व महान पर्व होता है- आचार्य विभक्त सागर मुनिराज

माता पिता का सम्मान करे,हमेशा उनका आशीर्वाद ले,जैन धर्म में पर्युषण पर्व महान पर्व होता है- आचार्य विभक्त सागर मुनिराज

मंदसौर। माता पिता का हमेशा सम्मान करे, सुबह उठकर सबसे पहले उनके चरण वंदन करे,उसके बाद घर के अन्य बड़ों का आशीर्वाद ले। माता पिता का आशीर्वाद हमेशा फ़लिपुत होता है,उन्हीं से आपका भाग्य है,वहीं आप के भाग्य विधाता है।आज लगातार वृद्धाश्रम में बुजुर्गों की संख्या बढ़ती जा रही है।घरों में भी माता पिता को अपमानित कर के रखा जाता है,रुखी सुखी रोटी परोसी जाती है,जबकि मेहमानों के लिए हलवा बनाया जाता है,जबकि वास्तविकता में हलवा तो माता पिता के लिए घरों में बनना चाहिए। यह बात  धर्म सभा में  द्वितीय पट्टाचार्य, राष्ट्र संत एवं स्पष्ट प्रवक्ता दिगम्बर आचार्य 108 श्री विभक्त सागर जी मुनिराज ने कही। प्रवचन के दौरान क्षुल्लक श्री 105 क्षेमंकर नंदी जी महाराज उपस्थित थे। संत श्री नाकोडा नगर स्थित आचार्य 108 सम्मति कुंज संत निवास पर विराजित है। धर्म सभा से पूर्व दीप प्रज्वलन गुजरात के संतरामपुर से पहुंचे सुनील जैन,सीमा जैन एवं पाटन से पधारे राजकुमार जैन परिवार ने किया। संचालन डॉ एस एम जैन ने किया। मुनिश्री को शास्त्र भेंट महिला मंडल द्वारा किया गया। मंगलाचरण डॉक्टर कुसुम पोरवाल ने किया। मुनिश्री ने आशीर्वाद भी तीन प्रकार के बताए, हाथों को कड़क करके दिया गया आशीर्वाद घमंड वाला होता है,जबकि उंगलियों को थोड़ा झुका कर दिया गया आशीर्वाद सम्मान का होता है। दोनों हाथों को मोड़कर दिया जाने वाला आशीर्वाद ही समर्पण भाव का आशीर्वाद है। गुरु जब आशीर्वाद देते है उनके हाथों से जो अदृश्य किरणे निकलती है वहीं भक्त के लिए फलदायी होती है। गुरु को हमेशा विनय पूर्वक नमोस्तु बोलकर झुककर प्रणाम करे। मुनि श्री ने कहा कि दिगम्बर  जैन धर्म के परम पूज्य 108 शांति सागर जी प्रथम मुनिराज हुए है जिनसे यह दिगम्बर जैन साधु परंपरा चली आ रही है,वह नहीं होते तो हम कभी भी दिगम्बर जैन संत के दर्शन नहीं कर पाते। यह परंपरा कभी बंद नहीं होगी निरंतर चलती रहेगी। दिगम्बर जैन धर्म में प्रयूषण पर्व को महान पर्व माना गया है,मुख्य रूप से आचार्य श्री ओर उनके पीछे श्रावक इस पर्व को पूर्ण रूप से नियम संयम के साथ मनाते है। यह पर्व उत्तम क्षमा धर्म से प्रारंभ होकर उत्तम ब्रह्मचर्य भाव के साथ खत्म होता है।  धर्म सभा में बड़ी संख्या में समाज जन उपस्थित थे।

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