आलेख/ विचारराजस्थान

लोकदेवता बाबा रामदेव जी मानवता और समानता के प्रतीक

बाबा रामदेव जन्मोत्सव पर विशेष- लोकदेवता बाबा रामदेव जी मानवता और समानता के प्रतीक

 

लेखक-राजेन्द्र ढेबाना
लाइब्रेरियन

Rajendra Dhebana
Librarian

9039758861

 

 

राजस्थान की मरुधरा वीरता और पराक्रम की भूमि मानी जाती है, लेकिन इस रेत की धरती ने सिर्फ शूरवीरों को ही जन्म नहीं दिया, बल्कि लोक देवताओं और संतों को भी जिनके जीवन ने समाज को प्रेम, समानता और भाईचारे का मार्ग दिखाया। इन्हीं में से एक हैं लोकदेवता बाबा रामदेव जी, जिन्हें हिंदू समाज बाबा रामदेव और मुस्लिम समाज रामसा पीर के रूप में श्रद्धा से याद करता है।
जन्म और वंश-
इतिहासकारों और लोककथाओं के अनुसार बाबा रामदेव जी का जन्म संवत 1409 (सन् 1352 ई.) में राजस्थान के जैसलमेर ज़िले के पोकरण क्षेत्र स्थित रूणीचा (आज का रामदेवरा) गाँव में हुआ।
वे जन्म से मेघवाल वंश के थे-
राजस्थान की मरुधरा के कणदृकण में लोकनायक और देवताओं की गाथाएँ गूँजती हैं। इन्हीं अमर गाथाओं में एक नाम है लोकदेवता बाबा रामदेव जी का, जिन्हें हिंदू समाज श्रद्धा से बाबा रामदेव और मुस्लिम समाज रामसा पीर के रूप में पूजता है। इतिहासकारों और लोकपरंपराओं के अनुसार बाबा रामदेव जी का जन्म संवत 1409 (ई. सन् 1352) में राजस्थान के जैसलमेर ज़िले के पोकरण क्षेत्र स्थित रूणीचा गाँव (आज का रामदेवरा) में हुआ। यहाँ एक महत्त्वपूर्ण तथ्य उल्लेखनीय है दृबाबा रामदेव जी का जन्म मेधवाल वंश हुआ था। किंतु उनका लालन पालन तंवर वंश के राजपरिवार में हुआ। यही कारण है कि लोकपरंपराओं और इतिहास में उन्हें कई बार तंवर वंशज कहा गया, जबकि सच्चाई यह है कि उनका मूल वंश मेघवाल था।
बचपन और व्यक्तित्व-
रामदेव जी ने बाल्यकाल से ही असाधारण गुणों का परिचय दिया। वे राजघराने में पलेदृबढ़े, लेकिन महलों की चकाचौंध से अलग सादगी और करुणा उनके स्वभाव की पहचान रही। छोटे से रामदेव का मन वैभव और राजसत्ता में नहीं, बल्कि गरीबों और वंचितों की सेवा में लगता था। गाँव के बुज़ुर्ग अक्सर कहते दृरामदेव कोई साधारण बालक नहीं, ईश्वर का भेजा हुआ वरदान है।
शिक्षा और संस्कार-
राजघराने में लालनदृपालन होने के कारण उन्हें युद्धकला, अश्वारोहण और प्रशासनिक शिक्षा भी मिली, लेकिन उन्होंने इन विद्यादृकौशलों को केवल जनसेवा और धर्म रक्षा के लिए ही अपनाया। वे हमेशा सत्य, समानता और भाईचारे की बातें करते। बचपन से ही वे समाज के हर वर्ग से जुड़ना चाहते थे – चाहे वह ब्राह्मण हो, दलित हो या मुस्लिम समुदाय का कोई व्यक्ति।
लोकविश्वास-
लोककथाओं के अनुसार, बचपन में ही उन्होंने ऐसे कई अलौकिक कार्य किए, जिनसे गाँवदृगाँव में उनकी ख्याति फैल गईलोग उन्हें दिव्य पुरुष मानने लगे। उनके स्वभाव की सबसे बड़ी विशेषता थी कृ“सभी को समान दृष्टि से देखना और सबकी मदद करना। लेकिन उनका लालन-पालन तंवर वंश के राजपरिवार में हुआ। इसी कारण बाद की लोकपरंपराओं में कई बार उन्हें तंवर वंशज माना जाता है, जबकि सच्चाई यह है कि उनका मूल वंश मेघवाल था।
जैसलमेर। बाबा रामदेव जी केवल एक धार्मिक व्यक्तित्व नहीं थे, बल्कि वे समाज सुधारक और मानवता के प्रहरी भी थे। उन्होंने ऐसे समय में जन्म लिया जब समाज ऊँच-नीच, जाति-भेद और धार्मिक विभाजन की दीवारों में बँधा हुआ था।
अछूतों और वंचितों के मसीहा-
रामदेव जी का जीवन संदेश था – “सबका भला, सबका साथ।” वे किसी भी जाति धर्म के व्यक्ति को अपने समीप बैठाकर भोजन कर लेते थे। लोककथाओं में वर्णित है कि उन्होंने दलित और मेघवाल समुदाय को समाज की मुख्यधारा में लाने का प्रयास किया।
ग्रामीण बुज़ुर्ग कहते हैं- “बाबा ने हमें बराबरी का दर्जा दिलाया, तभी आज भी हम उन्हें लोकदेवता मानकर पूजते हैं।”
हिंदू-मुस्लिम एकता का संदेश-
रामदेव जी का व्यक्तित्व केवल हिंदू समाज तक सीमित नहीं था। मुसलमान उन्हें ‘रामसा पीर’ कहकर श्रद्धा से मानते हैं। बाबा ने अपनी साधना और लोकसेवा से साबित किया कि ईश्वर एक है और सबका मार्ग प्रेम और भाईचारा है।
गरीबों और पीड़ितों की सेवा-
रामदेव जी गरीबों, पीड़ितों और दुखियारों की मदद को सबसे बड़ा धर्म मानते थे। लोकगाथाओं में वर्णन मिलता है कि उन्होंने अनाज के भंडार गरीबों के लिए खोल दिए और प्यासों के लिए कुएँ खुदवाए। जब भी कठिनाई आती है, हम बाबा से मन्नत मांगते हैं और भरोसा रहता है कि उनकी कृपा से सब ठीक होगा।
समाज में समानता की स्थापना-
उनके जीवन का सबसे बड़ा संदेश यही था कि कृ समाज में कोई छोटादृबड़ा नहीं है। उन्होंने उस समय सामाजिक बराबरी की जो लौ जलाई, वही आज भी लोगों को प्रेरणा देती है।
यही कारण है कि राजस्थान ही नहीं, गुजरात, मध्यप्रदेश और उत्तर भारत के कई हिस्सों में लोग उन्हें “गरीबों का देवता” मानकर पूजते हैं।  बाबा रामदेव जी के जीवन से जुड़ी अनेक लोककथाएँ और चमत्कार आज भी गाँवदृगाँव में सुनाए जाते हैं। यही गाथाएँ उन्हें लोकदेवता और अलौकिक पुरुष सिद्ध करती हैं।
पाँच पीरों की कथा-
लोकविश्वास है कि बाबा रामदेव जी की ख्याति सुनकर पाँच मुस्लिम पीर उनके दर्शन करने आए। वे उनकी शक्ति की परीक्षा लेना चाहते थे। रामदेव जी ने उन्हें आदर सम्मान से बैठाया और अपने चमत्कारों से साबित किया कि वे सचमुच ईश्वर के दूत हैं। इन्हीं पाँच पीरों ने उन्हें “रामसा पीर” की उपाधि दी। आज भी रामदेवरा धाम के पास उनकी समाधि मौजूद है। हिंदू उन्हें बाबा रामदेव कहते हैं और मुसलमान रामसा पीर। लेकिन दोनों के दिलों में वही श्रद्धा है।
गगरी और नाग की कथा
लोककथाओं में वर्णन है कि एक बार एक महिला पानी भरने गई और उसे नाग ने डस लिया। जब यह बात बाबा रामदेव जी तक पहुँची तो उन्होंने गगरी को स्पर्श कर अमृतमय कर दिया। उस गगरी का पानी पीने से महिला जीवित हो उठी। यह कथा आज भी गाँव-गाँव में सुनाई जाती है और लोग इसे बाबा के दिव्य चमत्कार का प्रमाण मानते हैं।
अनाज और दान की कथा-
एक समय गाँव में अकाल पड़ा। लोग भूख से बेहाल हो गए। बाबा ने अपने अन्नदृभंडार सबके लिए खोल दिए। उन्होंने कहा भूखे को अन्न दो, यही सबसे बड़ा धर्म है। कहा जाता है कि भंडार कभी खाली नहीं हुआ और अकाल के बावजूद गाँव के लोग भूखे नहीं रहे।
समाधि स्थल-
उनकी समाधि आज रामदेवरा (रूणीचा), जैसलमेर में स्थित है। यह स्थल हिंदू और मुस्लिम दोनों के लिए समान रूप से पूजनीय है। समाधि के पास ही पाँच पीरों की कब्र और बाबा का प्रिय घोड़ा लीलण की प्रतिमा भी स्थापित है।
यहाँ रोज़ाना हजारों श्रद्धालु मत्था टेकते हैं और “रामदेव पीर की जय” के जयकारे गूँजते हैं।यहाँ आकर लगता है जैसे बाबा अभी भी हमारे बीच जीवित हैं।
रामदेवरा धाम का महत्व-
यह धाम हिंदू-मुस्लिम एकता का जीवंत प्रतीक है। दूर-दराज़ से आने वाले श्रद्धालु बाबा की समाधि पर चादर चढ़ाते हैं, नारियल और ध्वजा अर्पित करते हैं। बाबा की समाधि पर लगने वाला भादवा मेला भारत के सबसे बड़े मेलों में से एक है। समाधि के दर्शन मात्र से श्रद्धालुओं को यह विश्वास होता है कि बाबा उनकीमनोकामनापूरी करेंगे।
आस्था का केंद्र-
राजस्थान ही नहीं, गुजरात, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और देश के अन्य हिस्सों से लोग यहाँ दर्शन करने आते हैं। विदेशों में बसे भारतीय भी जब आते हैं तो बाबा रामदेवरा धाम पहुँचकर अपनी श्रद्धा अर्पित करना नहीं भूलते। जब भी कठिनाई आती है, हम बाबा से मन्नत मांगते हैं और भरोसा रहता है।
बाबा रामदेव जी की समाधि पर हर साल भाद्रपद शुक्ल पक्ष (भादवा माह) में लगने वाला रामदेवरा मेला देशभर में प्रसिद्ध है। यह मेला केवल धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि लोकसंस्कृति, कला और भाईचारे का अद्वितीय संगम है।
भादवा का मेला-
भादवा मास की दशमी से एकादशी तक लगने वाला यह मेला लाखों श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है। लोग पैदल यात्राएँ निकालकर यहाँ पहुँचते हैं। कई श्रद्धालु अपने गाँवों से ध्वजा लेकर पैदल चलते हैं और बाबा की समाधि पर चढ़ाते हैं। गुजरात, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, हरियाणा और महाराष्ट्र तक से भक्त पैदल यात्राएँ निकालते हैं।
लोककला और संस्कृति-
रामदेवरा मेले में धार्मिक आस्था के साथ-साथ लोककला की अद्भुत झलक देखने को मिलती है। मेला स्थल पर राजस्थान की लोकनृत्य शैलियाँ, लोकगीत और भजनों की महफ़िलें सजती हैं। पद’ और ‘फड़’ गाने वाले भाटदृचारण बाबा की महिमा का वर्णन करते हैं। भक्ति गीतों के बीच रातभर जगरण होता है। रामदेवरा मेला हमारे लिए सिर्फ धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि लोककला और परंपरा का संगम है।
मेल-मिलाप का अवसर
मेला केवल पूजा-अर्चना का नहीं, बल्कि भाईचारे का पर्व भी है। यहाँ हिंदू और मुस्लिम दोनों एक साथ बाबा की समाधि पर चादर और नारियल चढ़ाते हैं। मुस्लिम समाज के लोग बाबा को रामसा पीर कहकर याद करते हैं।
ध्वज यात्रा में सभी धर्मों के लोग शामिल होते हैं। यहाँ हिंदू और मुस्लिम दोनों भाई एक साथ मत्था टेकते हैं, यही बाबा का असली संदेश है।
व्यापार और आजीविका-
मेला ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए भी महत्वपूर्ण है। यहाँ दूर-दराज़ से आए व्यापारी अपनी दुकानें लगाते हैं।
खिलौने, माला, ध्वजा, पूजा सामग्री और लोककला से जुड़े सामान बिकते हैं। ऊँट, घोड़े और बैल तक की ख़रीद-फ़रोख़्त होती है। इस प्रकार, रामदेवरा मेला केवल आस्था का नहीं, बल्कि अर्थ, संस्कृति और लोकजीवन का भी बड़ा उत्सव है।  सदियों पहले लोककल्याण और समानता का संदेश देने वाले बाबा रामदेव जी आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं। उनके विचार और जीवनदर्शन आज के समाज को दिशा देते हैं।
आज की प्रासंगिकता-
 समानता और भाईचारा – जिस समय समाज ऊँच-नीच, जाति-भेद और धार्मिक विभाजन में उलझा था, उस समय बाबा ने सभी को एक समान मानने का संदेश दिया। आज भी उनकी यही शिक्षा सामाजिक सद्भाव का आधार है।
2. गरीबों और वंचितों की सेवा – आधुनिक समय में जब समाज में असमानताएँ बनी हुई हैं, बाबा की प्रेरणा हमें समाज के कमजोर वर्गों की मदद करने की याद दिलाती है।
3. धर्मद-सौहार्द्र का प्रतीक- रामदेवरा में आज भी हिंदू और मुस्लिम दोनों एक साथ मत्था टेकते हैं। यह दृश्य हमें बताता है कि मानवता ही सर्वोपरि है।
जब भी कठिनाई आती है, हम बाबा से मन्नत मांगते हैं और भरोसा रहता है कि उनकी कृपा से सब ठीक होगा।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
WhatsApp Icon
Whatsapp
ज्वॉइन करें
site-below-footer-wrap[data-section="section-below-footer-builder"] { margin-bottom: 40px;}