एक ऐसा मंदिर जहां शनि देव भगवान शिव के रूप में विराजमान हैं जहां पर पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण और श्राद्ध कर्म भी किया जाता है

एक ऐसा मंदिर जहां शनि देव भगवान शिव के रूप में विराजमान हैं जहां पर पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण और श्राद्ध कर्म भी किया जाता है
मध्य प्रदेश के उज्जैन में त्रिवेणी नदी पर स्थित हजारों साल प्राचीन शनि नवग्रह मंदिर बेहद अद्भुत है। इस मंदिर में सोमवती अमावस्या पर प्रदेशभर से श्रद्धालु स्नान करने आते हैंउज्जैन में इंदौर रोड पर स्थित त्रिवेणी संगम पर शनि नवग्रह मंदिर है, जहां शनिचरी अमावस्या के पर्व पर लाखों श्रद्धालु स्नान के लिए पहुंचते हैं। शनिचरी अमावस्या पर नवग्रह शनि मंदिर को फूलों से सजाया गया है। शनि महाराज को राजा के रूप में पगड़ी पहनाकर आकर्षक श्रृंगार किया गया।
शुक्रवार देर रात से ही श्रद्धालुओं का तांता लग गया, यहां प्रदेश और आसपास के ग्रामीणों से आए श्रद्धालुओं ने शिप्रा में आस्था की डुबकी लगाई। इस दौरान प्रशासन ने श्रद्धालुओं के स्नान के लिए घाटों पर फव्वारों की व्यवस्था की है।
मंदिर पुजारी के अनुसार, मान्यता है कि शनिचरी अमावस्या पर श्रद्धालु स्नान के बाद अपने जूते-चप्पल और कपड़े दान स्वरूप वहीं छोड़कर जाते हैं। अमावस्या पर देशभर से आए श्रद्धालुओं ने भी त्रिवेणी घाट पर पनौती समझे जाने वाले जूते-चप्पल और कपड़ों का ढेर लगा दिया है। हालांकि, दान स्वरूप छोड़े गए जूते-चप्पल और कपड़ों की प्रशासन द्वारा नीलामी की जाएगी।
यहां कि पौराणिक कथा –
मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार, इस मंदिर का निर्माण लगभग 2 हजार साल पहले राजा विक्रमादित्य ने शिप्रा नदी के तट पर करवाया था। यह भी अनुमान लगाया जाता है कि विक्रमादित्य ने इस मंदिर के निर्माण के लिए विक्रम संवत की शुरुआत की थी। मंदिर का एक अन्य पहलू यह है कि यह मंदिर हमारे सौर मंडल के ग्रहों को समर्पित बताया जाता है। मान्यता है कि अगर कोई अपनी मनोकामना पूरी करना चाहता है, तो उसे शनिदेव पर तेल चढ़ाना चाहिए। तेल चढ़ाने का एक और भी महत्व है क्योंकि पौराणिक कथाओं के अनुसार, साढ़ेसाती और ढैय्या की शांति के लिए तेल चढ़ाया जाता है। शनि अमावस्या के दिन भगवान को पांच क्विंटल तेल चढ़ाने की परंपरा है। बाद में यह तेल भक्तों को नीलाम कर दिया जाता है।
नवग्रह शनि मंदिर के पुजारी जितेंद्र बैरागी ने बताया कि देर रात 12 बजे से ही श्रद्धालुओं की भीड़ आना शुरू हो गई थी। शनि देव की मूर्ति के साथ ढैय्या शनि की मूर्ति विराजमान हैं, और ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टि से श्री नवग्रह शनि मंदिर का बहुत महत्व है क्योंकि यह पहला मंदिर है, जहां शनि देव भगवान शिव के रूप में विराजमान हैं। शनिचरी अमावस्या पर पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण और श्राद्ध कर्म भी किया जाता है। इस दिन स्नान और दान का भी विशेष महत्व होता है। शनिवार को अमावस्या तिथि पड़ने के कारण शनि देव की पूजा करने से विशेष शांति मिलती है। जिन लोगों पर शनि की साढ़ेसाती चल रही हो या पितृ दोष, कालसर्प योग, अशुभ ग्रह योग सहित अन्य कठिनाइयां हों, उन्हें इस दिन शनिदेव की पूजा से विशेष लाभ मिलता है।


