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भक्ति के मार्ग पर चले, यह कर्म योग से भी बढकर है- पं. शास्त्री

कनावटी में चल रही संगीतमय भागवत ज्ञान गंगा में डूबे श्रद्धालु, भजनों व श्लोक से बताया भागवत का फल

नीमच, 19 अगस्त (नप्र)। शहर के पास स्थित ग्राम कनावटी स्थित श्रेष्ठा रिसोर्ट में चल रही संगीतमय श्रीमद भागवत ज्ञान गंगा में श्रद्धालु डूबे हुए है। यहां धारियाखेड़ी के पं.भीमाशंकर शास्त्री व्यास पीठ से कथा वाचन के दौरान विभिन्न धार्मिक प्रसंगों पर प्रकाश डाल रहे है। महोत्सव के दूसरे दिन उन्होंने भजन व श्लोक के माध्यम से भागवत के महत्व बताया और भक्ति मार्ग व सयंम वाणी पर विस्तार से जानकारी देकर श्रोताओं को जाग्रत किया।
दोपहर 12.15 बजे मंगल आरती के साथ कथा शुभारंभ हुआ। जिसमें व्यास पीठ से पं. शास्त्री ने कहा कि सभी ग्रंथ से भागवत का पलड़ा भारी होता है। जितना पुराना घी है वह औषधि के समान माना जाता हैं । हालांकि भागवत में दूसरे ग्रथ। का अनादर भी नही किया।
राधा नाम की बड़ी महिमा है। कथा से भक्ति की शक्ति को प्राप्त किया जा सकता है। वजनदर लोग भोपाल से काम करते हैं लेकिन भजनदार लोग गोपाल से कराते है। इनके काम नही अटक सकते है। भगवान पग पग भक्त को संभालते है। हम भक्ति के मार्ग पर चले। भक्ति कर्म योग से भी बढ़कर है। कर्म में भक्ति को स्पर्श करकार करे तो कर्म ही भक्ति बन जाएगा, ये शास्त्र कहते है। जहां आपके काम में भगवान शामिल हो जाये तो वह बिगड़ता नही। अपने कर्म को करते हुए ब्रम्हा ज्ञान किं प्राप्ति होती है। परिस्थितियों के अनुसार जो प्राप्त हैं वो प्रयाप्त है। जिसका मन मस्त हैं उसके पास समस्त है। भगवान से मांगने के बजाए उनकी छवि को भी निहारे। बता दें कि समस्त ग्रामवासियों द्वारा आयोजित उक्त 7 दिनी भागवत कथा में रोजाना दोपहर 12.15 से शाम 4 बजे तक कथावाचन हो रहा है। जहां बड़ी संख्या में ग्रामवासी व अन्य लोग शामिल हो रहे है।
संतों का आगमन नहीं शुभागमन होता-
पं. शास्त्री ने कहा कि संतो का शुभागमन होता हैं जबकि सभी का आगमन होता है। संत तीर्थो को पावन बनाने के लिए पधारते है। उन्होंने संत के स्वभाव और विशेषता पर प्रकाश डाला। साथ ही कहा कि सभी जगह स्त्रियों की प्रभुताई है। हर जगह इनकी चलती है। इसके 2 कारण है। ये ईश्वर के निकट होते है। पितृ ओर मातृ आज्ञा का पालन करे।
बोली बंद नहीं हो जब तक बोलना बंद नहीं करें-
उन्होंने कहा कि आजकल परिवार में संवादहीनता आ गई है। एक छत के नीचे रहते हैं फिर भी एक दूसरे को जानते नहीं। जब तक बोली बंद न हो बोलना बन्द मत करो। मन बड़ा रखो। नफरत के कई अवसर आते हैं लेकिन प्रेम से वंचित न रहे। शब्दों से कोई दुखी न हो ऐसा व्यवहार बनाओ। संवादहीनता हो तो कई अवसर उन्नति के चूक जाते है। कलयुग में कथा का सार कम हो गया। अगर बिकने का इरादा हो तो कीमत कम हो जाती हैं और न हो तो बढ़ जाती है। ईश्वर जिनके पास हो उनको आनंद अनुभूति होती है। कथा श्रवण करने वाला भाग्यशाली होता हैं।
पैसे से साधन खरीद सकते है लेकिन आराम नहीं-
उन्होंने कि हम आजकल सुख पैसे को मानते हैं। इससे केवल 3 काम होते हैं। दान, भोग और नाश। इसके अलावा कोई नही है। दिमाग सेट हो गया तो सभी सुख मिल सकता है। धन से साधन खरीद सकते है लेकिन सुख तो संवारा। सेठ की कृपा से मिलता है। बिना धन के भी सुख पा सकते हैं। संपन्न व्यक्ति को कोई चैन नही मिलता है। कई तरह के विचार आते रहते है। लालच बुरी बला है। धन कमाए लेकिन सांवरा सेठ को नही भूले। धर्म को बढ़ाये तो सबकुछ बढेगा।
वाणी पर रखे संयम, भागवत भी यही सिखाती-
उन्होंने कहा कि अपनी वाणी की इतना शीलता हो कि शब्दों से कोई आहत न हो। किसी को व्यथित न करना। जिसने तपस्या कर ली वो प्रभु कृपा से वंचित नही रहे सकता है। सुख को जानना हैं तो वाणी को संयम रखें। मीठी वाणी सबके ह्दय को अच्छा लगता है। भागवत से हमें यही एक चीज सीखना चाहिए। ओरे के शब्दों से अपनी शांति भंग न करें । संसार के लोग सुविधा को ही सुख मानते है। आपका नुकसान करने वाले बहुत खड़े हैं लेकिन बचाने वाला ईश्वर ही है।
रील में विश्वास है लेकिन रियल में नहीं-
आजकल रील में विश्वास हैं लेकिन रियल में नही। इस बार महाकुभ में वही हुआ। ऐसे कुछ उदाहरण भी बताए जो महाकुंभ में सबसे ज्यादा वायरल हुए। फिर चाहे व आईटीआई बाबा हो या फिर माला बेचने आई मोनालिसा। ज्ञान वैराग्य का बलवान बनना हैं श्रीमद भागवत जी श्रवण कराओ। मात्र एक श्लोक में भी भागवत जी का फल प्राप्त किया जा सकता है। चाइना की वस्तु का सिद्धान्त हैं चले तो चांद तक और नही चले तो शाम तक। हर रोज कथा नही होती हैं और न ही रोज ऐसा पंडाल सजेगा। 7 दिन के बाद मात्र ये 1 श्लोक से लाभ मिलेगा।
भजनों में बही भक्ति रस की बहार-
कथा वाचन के दौरान पं. शास्त्री द्वारा कई भजनों की संगीतमय प्रस्तुति से भक्ति रस की बहार की जा रही है। मंगलवार को उन्होंने तीनों लोको से न्यारी राधा रानी हमारी.., तेरी मंद-मंद मुस्कनिया पर मैं बलिहार संवारे.., थारे म्हारे गाड़ी तू जाने थारे काम जाने, भव सागर में मेरी नैया अटकी…मीरा ये कमाई कर गईं रे, रामनाम कृष्ण नाम की डोर पकड़कर …ऐसे कई भजनों को अपने मुखारविंद से प्रस्तुत किया तो श्रद्धालु भी भक्ति रस में डूब गए।

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