“आजादी केवल राजनैतिक नहीं, सांस्कृतिक और नैतिक भी हो”

स्वतंत्रता दिवस पर विशेष लेख
“आजादी केवल राजनैतिक नहीं, सांस्कृतिक और नैतिक भी हो”
15 अगस्त हमारे राष्ट्र के लिए गर्व और आत्मसम्मान का दिन है। इस दिन हम उन वीर बलिदानियों को स्मरण करते हैं जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर हमें गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराया। किंतु आज, जब हम स्वतंत्र भारत के 78वें वर्ष में प्रवेश कर चुके हैं, तो हमें यह विचार करना होगा कि क्या आजादी केवल विदेशी शासन से मुक्ति तक ही सीमित है? या फिर यह सांस्कृतिक, सामाजिक और नैतिक मूल्यों की रक्षा से भी जुड़ी है?
आधुनिक तकनीक ने हमारे जीवन को अभूतपूर्व रूप से परिवर्तित कर दिया है। मोबाइल फोन और इंटरनेट ने सूचनाओं की विशाल दुनिया को हमारी हथेली पर ला खड़ा किया है। लेकिन इसी तकनीक का दुरुपयोग करके ऐसे सामग्री का प्रसार किया जा रहा है जो हमारी संस्कृति, धर्म और नैतिकता पर आघात करते हैं। फर्जी खबरें, अश्लील सामग्री, नफरत फैलाने वाले संदेश और समाज को विघटित करने वाले वीडियो निरंतर प्रसारित किए जा रहे हैं। यह एक नई प्रकार की गुलामी है—मानसिक गुलामी।
यदि हम स्वतंत्रता दिवस की भावना को सही मायनों में जीना चाहते हैं, तो हमें इस मानसिक गुलामी से भी मुक्ति पाना अनिवार्य है। आजादी का अर्थ केवल बाहरी बंधनों से मुक्ति नहीं, बल्कि आंतरिक शुद्धता और सामाजिक जिम्मेदारी भी है। हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि मोबाइल और तकनीक का उपयोग केवल सकारात्मक कार्यों के लिए करें—ज्ञानार्जन, रोजगार के अवसर, सामाजिक एकता और रचनात्मक अभिव्यक्ति के लिए।
आज की चार बड़ी आवश्यकताएँ
युवा वर्ग की भूमिका सुनिश्चित हो –हमारे देश का युवा वर्ग ही कल का भविष्य है। किंतु आज का युवा मोबाइल की स्क्रीन में खोकर अनगिनत घंटों का समय व्यर्थ कर रहा है। यह महत्त्वपूर्ण समय राष्ट्र निर्माण, नए कौशल सीखने और समाज सुधार में लगाया जा सकता है। युवाओं को चाहिए कि वे सोशल मीडिया को केवल मनोरंजन के साधन के रूप में न देखें, बल्कि इसका विवेकपूर्ण उपयोग प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी, नवीन तकनीकों की जानकारी और समाजसेवा के लिए करें। जब युवा अपनी बुद्धिमत्ता और ऊर्जा को सही दिशा में लगाते हैं, तभी भारत विश्व में वास्तविक एवं प्रभावशाली नेतृत्व कर सकेगा।
माता-पिता और शिक्षकों का मार्गदर्शन-बच्चे वही सीखते हैं जो उन्हें प्रदर्शित किया जाता है और सिखाया जाता है। माता-पिता और शिक्षक यदि तकनीक का सुसंस्कृत एवं अनुशासित उपयोग करेंगे, तो बच्चे भी उसी मार्ग का अनुसरण करेंगे। हमें बच्चों को यह समझाना होगा कि मोबाइल उनके जीवन का स्वामी नहीं, बल्कि एक सहायक उपकरण है। घर और स्कूल में “डिजिटल अनुशासन” के नियम स्थापित करना आज की कठिनाईयों का सामना करने के लिए आवश्यक है।
समाज और सरकार की जिम्मेदारी- समाज और सरकार दोनों को मिलकर उन डिजिटल विषों को रोकना होगा जो हमारी संस्कृति और नैतिकता को खोखला कर रहे हैं। कानूनों को और अधिक कठोर बनाना होगा, ताकि अश्लील सामग्री, नफरत फैलाने वाले संदेश और भ्रामक खबरें फैलाने वालों को त्वरित सज़ा मिल सके। साथ ही, सकारात्मक और राष्ट्रहितकारी सामग्री को बढ़ावा देने के लिए नीतियाँ भी लागू करनी होंगी।
हर नागरिक का संकल्प हो- यह केवल सरकार या किसी संगठन का कार्य नहीं है—हर नागरिक की जिम्मेदारी है कि वह किसी भी प्रकार की नकारात्मक या विभाजनकारी सामग्री को साझा न करे। हमें यह विचार करना होगा कि हमारे द्वारा भेजा गया एक संदेश किसी के मन में नफरत या हिंसा का बीज न बोए। यदि हम अपने स्तर पर सजग और जागरूक रहेंगे, तो पूरा समाज स्वतः स्वस्थ और सुरक्षित बन जाएगा।
स्वतंत्रता दिवस पर हमें स्मरण रखना चाहिए कि असली आजादी वही है जिसमें हमारा मन, विचार और कर्म स्वच्छ, स्वस्थ और राष्ट्रहितकारी हों। आइए, इस 15 अगस्त हम सब मिलकर यह प्रण लें कि मोबाइल और तकनीक का प्रयोग समाज निर्माण के लिए करेंगे और उन बुराइयों से मुक्ति पाएंगे जो संस्कृति, धर्म और नैतिकता को कमजोर करती हैं।
“जय हिंद, जय भारत!”
लेखक – एड. राजेश पाठक ,
सदभावना पथिक ,मंदसौर