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भगवान की निष्काम भक्ति हो सुदामा की तरह और माता पिता की सेवा हो श्रवण कुमार की तरह- पं. गोपालकृष्ण दीक्षित


सप्त दिवसीय भागवत कथा का हुआ समापन

मंदसौर । समीपस्थ ग्राम कुंचड़ौद में आयोजित सप्त दिवसीय संगीतमय श्रीमद् भागवतकथा समापन पर सुदामा चरित्र का वर्णन करते हुए व्यास पीठासीन भागवत प्रवक्ता पं. गोपालकृष्ण दीक्षित ने कहा सुदामा का जन्म लौकिक दृष्टि से चाहे निर्धन गरीब परिवार में क्यों ना हुआ परन्तु भगवद् भक्ति के संस्कार बचपन से ही सुदामा के मन अंतःकरण में दृढ़ बने हुए थे।
सुदामा का शिक्षण उज्जैन में सांदीपनीजी के आश्रम में मथुरा के युवराज श्री कृष्ण के साथ हुआ। कृष्ण-सुदामा की परस्पर दृढ़ मित्रता हो गई थी। शिक्षापरान्त कृष्ण द्वारका के राजा बन गये। सुदामा की शादी हो गई। गरीबी के कारण सुदामा को अपने परिवार का पालन पोषण करने में कठिनाई आने लगी तब धर्मपत्नी ने  जबरदस्ती सुदामा को अपने मित्र द्वारकाधीश के पास जाने की जिद करी। सुदामा ने यह सोचकर कि धन की तो उन्हें किंचित लालसा नहीं है परन्तु इसी बहाने बचपन के बाद भगवान कृष्ण के दर्शन हो जावेंगे और द्वारका पहुंचे। राजाधिराज भगवान कृष्ण ने जब सुदामा को फटेहाल दीन हीन दशा में नंगे पांव जंगलों से होकर कांटे से छलनी हुए पांवों को देखा तो भगवान कृष्ण ने अपने मित्र की ऐसी दशा देख रहा नहीं गया और बरबस कृष्ण की आंखों से झर झर इतने आंसू गिरे जिनसे सुदामा का पद प्रक्षालन हो गया। भगवान कृष्ण ने कहा कि सुदामा इतने कष्ट में परिवार सहित कष्ट में रहे मुझसे आकर क्यों नहीं मिले। जब सुदामा ने कहा सुख दुख पूर्व जन्म के कर्मों के अनुसार प्राप्त होता उससे घबराकर भगवान से दूर करने के लिये प्रार्थना नहीं करना चाहिए। धन की इच्छा से नहीं मैं तो आपके दर्शन के लिये आया हूूूं। सुदामा ने अपनी गरीबी दूर करने एक शब्द भी नहीं कहा और कुछ दिन द्वारका में रहकर अपने गांव लौट आये परन्तु भगवान ने सुदामा के अपने गांव पहुंचने से पहले ही ने अपनी माया को आदेश देकर सुदामा के पहुंचने के पहले ही पुरी सुदामा पुरी को धनधान्य आदि से सम्पन्न कर द्वारकापुरी में बदल लिया।
वर्तमान में जो युवा अपने माता पिता की सेवा से मुख मोड़कर उन्हें वृद्धाश्रम भेज देते है। इस संबंध में श्रवण कुमार का उदाहरण देकर पंडितजी कहा कि श्रवण कुमार ने अपने अंधे माता पिता की जिस प्रकार सेवा की और कावड़ में बिठाकर कंधे पर लादकर तीर्थयात्रा कराई जिससे लाखों वर्ष बीतने के बाद भी आज भी जो इस प्रकार माता पिता की सेवा करने वाले का श्रवण कुमार कह कर सम्मान किया जाता है सभी को माता पिता की सेवा कर उनका आशीर्वाद लेना चाहिए।
कथा में बड़ी संख्या में ग्रामवासी के अतिरिक्त पास के ग्रामवासियों ने कथा में समापन के अवसर पर भजन कीर्तन भक्ति नृत्य करते हुए भगवान से पर्याप्त वर्षा की प्रार्थना की। अंत में ंप्रसाद वितरण हुआ।
पौथी पूजन आरती मुख्य यजमान राधेश्याम मण्डोवरा परिवार और  योग गुरू बंशीलाल टांक, पूर्व जनपद सदस्य गोपाल गुजरिया आदि ने किया।

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