क्षत्राणियों ने लहरिया महोत्सव मनाया, अपनी पारम्परिक लहरियां पोशाके धारण कर शिरकत की

क्षत्राणियों ने लहरिया महोत्सव मनाया, अपनी पारम्परिक लहरियां पोशाके धारण कर शिरकत की
मंदसौर। सोमवार शाम स्थानीय क्षत्राणियों ने लहरिया महोत्सव में लगभग 110 स्थानीय महिलाओं व युवतियों ने अपनी पारम्परिक लहरियां पोशाकों में शिरकत की, जिससे आयोजन रंग-बिरंगा व उत्सवुअ भाव से भर गया। इस महोत्सव का मुख्य उद्देश्य प्राचीन सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करना बताया गया। मुख्य आयोजक श्रीमती तनुष्री नरुका व श्रीमती हीना झाला ने स्पष्ट किया कि यह महोत्सव मंदसौर में प्रत्येक वर्ष आयोजित किया जाता रहा है ताकि यह विरासत लुप्त नहीं बल्कि जीवंत रहे। यह महोत्सव प्रत्येक वर्ष आयोजित किया जाता है , ताकि हमारी सांस्कृतिक विरासत लुप्त न हो, बल्कि जीवंत बनी रहे, श्रीमती तनुष्री नरुका सांस्कृतिक व ऐतिहासिक महत्ता: लहरिया राजस्थान की पारंपरिक टाई-डाई टेक्नीक है, जिसका नाम लहर या लहरा (तरंगों) से आया है—यह रेगिस्तान की रेत पर हवा से बनने वाले तरंगों की तरह नजर आने वाले पैटर्नों को दशार्ती है । इतिहासकारों के अनुसार, लहरिया कला कुछझ्रकुछ रूपों में 500 साल से भी अधिक समय से अस्तित्व में है, इस तकनीक के शुरूआती नमूने 17वीं सदी से मिलते हैं। यह रंग-तरंगों वाली कला विशेषकर सावन व तीज जैसे वर्षा-उत्सवों के मौसम में पहनी जाती है, क्योंकि इसमें प्रकृति की हरियाली व जीवनशक्ति की झलक मिलती है—रंगों की लहरों में जीवन का उत्सव होता है। राजस्थानी संस्कृति में यह एक अहम प्रतीक मानी जाती है और मध्यप्रदेश सहित पूरे देश में इसे स्नेह से अपनाया जाता है ेलहरिया क्वीनह्ण सहित विजेता प्रतिभागियों को ह्लयुविना क्रिएशनह्व द्वारा लहरिया पोशाकें उपहार स्वरूप प्रदान की गईं, जिससे उनकी रचनात्मक प्रतिभा को सम्मान मिला।