एक गलत संगत जीवन बर्बाद कर देती है और एक अच्छी संगत जीवन बना देती है- पं. डॉ मिथिलेश जी नागर

एक गलत संगत जीवन बर्बाद कर देती है और एक अच्छी संगत जीवन बना देती है- पं डॉ मिथिलेश जी नागर
सीतामऊ । देवाधिदेव महादेव कि कथा का पुण्य रसपान जिस व्यक्ति ने किया उसका जीवन सुधर जाता है। कथा कई श्रोता सुनते हैं। कथा सुनकर मन में परिवर्तन नहीं आए तो कथा सुनना व्यर्थ है।एक श्रोता दुसरा सुनकर उतारने वाला तीसरा सुनकर उतार कर अमल करने वाले होते हैं जो कथा सुनकर उतार कर अमल करने लगता है तो उसे शिव तत्व कि प्राप्ति हो जाती है। वहीं व्यक्ति ही पात्र श्रोता है उक्त उद्गार पं श्री मिथलेश जी नागर ने श्री रामेश्वरम बालाजी धाम के पास पुरानी गौशाला में आयोजित शिवपुराण कथा का श्रवण कराते हुए कही।
श्री नागर ने कहा कि पाणी जल से हम तन को शुद्ध कर सकते हैं। पर शिवमहापुराण कथा अपने शरीर के अंदर के मेल को साफ करतीं हैं जिस मनुष्य ने पाणी और संत कि वाणी दो कि कद्र कर ली उसकी उसका जीवन धन्य हो गया।
पं डॉ नागर ने कहा कि कथा के श्रवण करने से मन शुद्ध पवित्र हो जाता है। कथा मनोरंजन का साधन नहीं कथा मन का मंजन करने का साधन है।
देवराज एक पापी ब्राह्मण था, जिसने अपने जीवन में कई पाप किए थे उस देवराज ने संतों कि वाणी और पानी दोनों कि कद्र कर ली उसका जीवन धन्य हो गया।
जो कथा नहीं श्रवण कर रहे जो नास्तिक है जो केवल मंदिर देवालय जाते वो भी अपना जीवन व्यापन कर रहे।पर जो कथा श्रवण कर ज्ञान का अमृत अपने अंदर उतार लेता है।वह ऊंचाईयों पर पहुंच जाता है।
पंडित श्री नागर जी ने मां के प्रति आदर भाव को लेकर कहा की मां कभी श्राफ नहीं देती है। एक माता तो तुलसी, दूसरी भारत माता तीसरी गौ माता और चौथीं जन्म देने वाली माता है श्री नागर जी ने कहा कि जो व्यवहार हम अपने लिए पसंद नहीं करते हैं उसे व्यवहार को हम दूसरों के साथ कभी नहीं करना चाहिए हमारे जीवन में गुरु माता-पिता का हमारे ऊपर बहुत बड़ा ऋण है। पंडित श्री नागर जी ने गौ माता की सेवा को लेकर कहा कि हम गाय को गौ माता कहते हैं। आज गाय माता को कोई पालना पसंद नहीं करता है हम जो कहते हैं उसे आचरण में नहीं लाते हैं और इसी का परिणाम है कि गाय माता मारी मारी फिर रही है।परंतु हमारे कथनी और करनी में अंतर हैं।
कमाई ऐसी करो कि अंतिम समय में आपके साथ किया जाएगा धन विभव कुटुंब परिवार सारा ही रह जाता है अगर साथ कोई चलता है तो वह आपका धर्म और कर्म साथ चलता है।
पं श्री नागर जी ने कहा कि अगर आपसे पूछा जाए कि आपको ब्रह्म चाहिए या माया तो अधिकांश माया की ओर आकर्षित होते हैं इसलिए कमाई ऐसी करों की अंतिम समय में आपके साथ जावे नहीं तो हजार लोग जन्म ले रहे हैं और हजारों रोज मर रहे हैं उनका कोई अस्तित्व नहीं होता है कुछ समय बाद परिवारजन भी उन्हें भूल जाते हैं याद उन्हें को किया जाता है जिन्होंने समाज को कुछ दिया है इसलिए अपने कर्म के साथ धर्म भी किया करो। अगर आपके कर्म धर्म मय है तो वह पूजा बन जाती है। गुरु के मायने रानी को मीराबाई बना दिया। जिसे हम आज भी याद करते हैं जब आप समर्थ हैं तो सभी आपके साथ हैं और जब आप निर्बल हो जाए तो आपके साथ कोई नहीं होगा ।
पंडित श्री नागर जी ने नास्तिक चोर का उदाहरण देते हुए कहा कि चोर अपने घर से हर रोज चोरी करने जाता तो रास्ते में मंदिर पड़ता जैसे ही मंदिर आता वह वहां अपने कान बंद कर लेता एक दिन मंदिर के सामने उसके पांव में कांटा चुभ गया उसकी मुंह से जोर से दर्द कि आवाज निकली।कान से हाथ हटाकर कांटा चुभे पैर में कांटा निकालने लगा कान से हाथ हटाते ही मंदिर में चल रही कथा से आवाज आई ‘सदा सच बोलों’ चोर के ह्रदय में यह जीवन का मंत्र बनकर उतर गया। और चोर सच बोलने से राजा का मंत्री बन गया।
पंडित श्री नागर जी ने कहा कि अगर कोई भी सेवा भाव को लेकर काम करते हैं तो जीवन में डर डर कर नहीं नीडर होकर जीना सीख जाओं। अच्छा कार्य करने वाले को लोग कुछ भी बोलते रहते हैं
पंडित से नागर जी ने शिव महापुराण का मातम बताते हुए कहा कि एक नगर में विप्र बिंदुक रहता था उसकी पत्नी का नाम चंचला है। वह एक पतिव्रता स्त्री थी, जो सुंदर और धर्म का आचरण करने वाली थी। हालांकि, बिंदुग ब्राह्मण चोरी का धन लाता था, और चंचला उसका भोग करती थी। पति के संगत के असर से पत्नी भी बदल गई और उसने कभी भी शंकर जी के मंदिर में कोई पूजा या अर्चना नहीं की। बिंदुग ब्राह्मण के अत्याचार दुराचार से उसकी अकाल मृत्यु हुई और उसको पिशाच योनि प्राप्त हुई थी, और चंचुला अपने पड़ोसियों रिश्तेदारों के साथ यात्रा ग ई और उसने हरिद्वार गंगा में स्नान कर शिव महापुराण कथा का श्रवण कि और उसके शिवत्व जागृत हो गया।वह भगवान शिव धाम गई वहां जाने के बाद अपने पति को पिशाच योनि से मुक्त कराने को लेकर उसने शिव कथा श्रवण करके उसका उद्धार करवाया। कथा के प्रभाव से, चंचला के पति, बिंदुग, को पिशाच योनि से मुक्ति मिली और उसे शिव लोक प्राप्त हुआ। कथा के माध्यम से पंडित श्री नागर जी ने कहा कि अपने बेटे बेटियों कि संगत किसकी है क्या कर रहे यह ध्यान रखना चाहिए। एक गलत संगत जीवन बर्बाद कर देती है और एक अच्छी संगत जीवन बना देती है। आपने कहा कि इत्र बेचने वाले के पास बैठने पर इत्र की खुशबू आती है इसी प्रकार कुसंग और सुसंग करने वाले का प्रभाव भी मनुष्य पर पड़ता है।इसलिए हमें सुसंग और सत्संग के प्रभाव में रहकर जीवन को धन्य बनाना है। बेटे बेटियों में अच्छे संस्कार और धर्म से जुड़े इसके जिम्मेदारी माता-पिता की है आप अपनी औलाद को करोड रुपए की संपत्ति देने के बजाय उनको संस्कार दें यही आपकी सबसे बड़ी पूंजीहै। पंडित श्री नागर जी ने कहा कि मौत चार प्रकार कि होती है। उत्तम, मध्यम, सामान्य और अकाल मृत्यु, अकाल मृत्यु किसी अप्राकृतिक कारण से होने वाली मृत्यु को कहते हैं, उसमें दुर्घटना, आत्महत्या, या हत्या है।


