शामगढ़आध्यात्ममंदसौर जिला

भगवान को अपनों से ज्यादा अपने भक्तों की चिंता होती है वह सब दुख सहन करके भी भक्तों को दुखी नहीं देख सकता- संत दिव्येशराम महाराज

भगवान को अपनों से ज्यादा अपने भक्तों की चिंता होती है वह सब दुख सहन करके भी भक्तों को दुखी नहीं देख सकता- संत दिव्येशराम महाराज

शामगढ़। नगर में में रामस्नेही संप्रदाय के संत श्री दिवेश राम जी राम महाराज का पोरवाल मांगलिक भवन में ज्ञान गंगा प्रवाहित कर रहे हैं। संत श्री शिव पुराण सुनने का महत्व बताते हुए कहा तुम्हारा की एक गांव में बिंदुनाम धारी ब्राह्मण निवास करता था। उसकी पत्नी का नाम चंचुला था।

ब्राह्मण सिर्फ नाम के ब्राह्मण था उसके कर्म किसी चांडाल से कम नहीं था दूसरों का धन हरण करना व्यसन करना पर स्त्री का गमन करना था।

हमेशा दिन रात ब्राह्मण पर स्त्री पर बुरी नजर के साथ-साथ हर गलत काम करना उसका कर्तव्य होता था।उसकी पत्नी प्रारंभ में पतिव्रता थी किंतु पति के लक्षण ने उसे भी गलत रहा पर धकेल दिया वह भी सब गलत काम करने लगी l

एक दिन पति की बीमारी के बाद मृत्यु हो गई कर्म अनुसार यमराज के दूत उसको यमराज के पास ले गए यमराज ने उसकी कम पोती देखी नाना प्रकार की यातनाएं देकर उसे विंध्याचल पर्वत पर एक भयंकर चांडाल की योनि प्राप्त हुई।

समय के साथ पत्नी का जीवन भी गलत कामों में गुजर रहा था देव योग से संत का उस गांव में आगमन हुआ और उसे चंचुला का भी कथा में जाना हुआ कथा सुनने से उसका मन पवित्र हो गया निश्चित समय के बाद उसकी मृत्यु हुई मृत्यु के समय शिवलोक से शिव जी के गाना सुंदर पालकी लेकर उस चंचुला को शिव धाम ले गए। समय बितता गया शिव भक्ति में उसका मन लगने के कारण वह माता जगदंबा पार्वती जी की प्रमुख सेविका बन गई ।

कुछ समय बाद उसका मन उदास रहने लगा और अपने मन की बात मां पार्वती जी को कही और अपने पति की सारी विस्तृत जानकारी माता को बताइ माता ने अपनी दिव्य दृष्टि से पति के विषय में सारी जानकारी चंचुला को दी।और जगदंबा ने कहा यदि उनको शिव महापुराण की कथा सुनाई जाए तो उनका उद्धार हो सकता है चंचुला ने मां को कहा आप ही उनके उद्धार का प्रबंध करें।

माता पार्वती ने चंचुला के मन को दुखी देखकर अपने एक गंधर्व को बुलाया जिसका नाम दिगमरू था। उस गंधर्व ने उस राक्षस को कथा सुनाई जैसे ही कथा खत्म हुई उसका शरीर दिव्य हो गया तथा शिव धाम से आए हुए शिव गणो के साथ शिव धाम को चला गया। भागवत नाम का प्रभाव भगवती स्मरण कभी निष्फल नहीं जाता।

परमात्मा तो हमेशा जीव के समीप रहता है यदि आप एक कदम परमात्मा की ओर बढ़ाएंगे तो 10 कदम परमात्मा आपकी और अपने कदम बढ़ाएंगे। भगवान को अपनों से ज्यादा अपने भक्तों की चिंता होती है और वह सब दुख सहन करके भी भक्तों को दुखी नहीं देख सकता।

संत श्री ने हमारे पास मेंआगर में बहुत ही प्राचीन सिद्ध भगवान आशुतोष महादेव का बैजनाथ मंदिर स्थित है। कई वर्षों से यहां पर अखंड रामायण का पाठ हो रहा है जिसको लगभग 100 वर्ष हो गए होंगे।

रामायण की पाठ की एक बहुत ही रोचक एवं सत्य घटना भक्त और भगवान की है आगर में एक वकील जो बहुत ही धर्मिष्ट दयालु तथा भक्त थे।भगवान की भक्ति पूजा के साथ-साथ रामायण का पाठ प्रतिदिन करके ही अपना दैनिक जीवन की शुरुआत करते थेl

एक दिन बहुत ही जरूरी अदालत में तारीख थी किसी के जीवन मृत्यु का सवाल था किंतु देव योग से उस दिन वकील साहब भक्ति में इतने तल्लीन हो गए कि उन्हें समय का अंदाजा नहीं रहा l

उधर भगवान भोलेनाथ ने वकील का रूप धरकर अदालत में पहुंच गए बहुत ही तर्कयुक्त बातें करके उस व्यक्ति को अदालत में विजय दिलवा दी

इधर वकील साहब को होश आया और दौड़े दौड़े अदालत गए अदालत में उनका स्वागत किया गया वाला पहनाई गई तथा उनके द्वारा की गई बहस के विषय में उनकी प्रशंसा कर रहे थे किंतु वकील साहब सोच रहे थे मैं तो मंदिर में था फिर मेरा रूप धरकर यहां कौन आया वकील साहब को धीरे-धीरे सब बात समझ में आ गई और उन्होंने कहा मेरे जैसे कुछ व्यक्ति के लिए परमात्मा को वकील बनकर अदालत पर जाना पड़ा है l आज से मैं अपना पेशा छोड़कर हमेशा हमेशा के लिए परमात्मा की सेवा में अपना जीवन समर्पित कर दिया तब से वहां पर अखंड रामायण का पाठ चल रहा हैl

परमात्मा अपने भक्त के अधीन है इसका प्रत्यक्ष उदाहरण भक्त नरसिंह जिसका मायरा भरने के लिए स्वयं परमात्मा सेठ का स्वरुप बनकर प्रकट हुए

सेठ रामलाल जो घलपट मैं निवास करते थे भगवत भक्ति के कारण वह द्वारका जी में आरती के कारणजल रहे पर्दे यहां पर बैठकर बुझा सकते हैं हजारों गरीबों की मदद अकाल के समय की जब अनाज खत्म होने आ गया उन्होंने भगवान को याद किया सुबह ही अन्य के भंडार लेकर गधे घोड़े ऊंट घलपट आ गए l

ईश्वर की भक्ति कभी निरर्थक नहीं जाती l बड़ा ही सुंदर दृष्टांत देते हुए संत श्री ने कहा एक व्यक्ति गरीब किसान था. उसके खेत में फसल पकने का समय हुआ और उसने पक्षियों से फसल की रक्षा के लिए खेत के वृक्ष के ऊपर अपना डेरा डाल दिया

सुबह से शाम तक वहगोपन से पक्षियों को भगाया करता था l देव योग से वह खेत को पानी पिला रहा था अपने कार्सिया से उसने मिट्टी को पलटना चाहा तो वहां पर उसे उसे वहां पर कुछ वस्तु होने का आभास हुआ उसने मिट्टी हटाई वहां से एक मटका निकाल उसमें कई चमकीले पत्थर थे बड़ा खुश हुआ चलो अच्छा हुआ एक साथ इतने पत्थर मिल गए अब पक्षियों को भगाने में परेशानी नहीं होगी

वह उन पत्थरों को गोपन में रखकर फेंकता रहा l उसकी पत्नी उसका खाना लेकर खेत पर आई साथ में बच्चा भी आ गया बच्चा खेत में खेल रहा था पत्नी पति को खाना खिला रही थी और उसे चिंता थी कल खाना कैसे बनेगा क्योंकि घर में राशन पानी सब खत्म हो गया था

पति को बिना कुछ कहे वह अपने बच्चों को लेकर घर जाने लगी तो उसने देखा उसका बच्चा खेत से कोई चमकीला पत्थर लेकर आया है और उसे खेल रहा है पत्नी ने भी कोई ध्यान नहीं दिया l

राशन की चिंता में पत्नी थी घर में कुछ भी नहीं था अचानक उसका ध्यान उस चमकीले पत्थर पर पड़ा उसने हिम्मत करके उस पत्थर को लेकर बाजार में गई सबसे पहले सब्जी वाले के पास उसने उसको देखा और सोचा मैं इसको रख लेती हूं सब्जी तोलने में काम आएगा और उसने उसकी कीमत दो वक्त की सब्जी के बराबर लगे उसकी पत्नी ने सोचा सब्जी से काम नहीं चलेगा वह पास की बनिए की दुकान पर गई और वह पत्थर दिखा कर कहा इसके बदले मुझे क्या मिल सकता है बनिया ने वह चमकीला पत्थर देखा और सोच चलो कुछ ना कुछ काम आएगा और उसने एक महीने की राशन के बदले उस पत्थर को रखने की बात कही एकाएक उसकी आंखों में चमक आ गई कहां दो वक्त की सब्जी कहां एक महीने का राशन धीरे-धीरे वह उसकी कीमत करते करती एक जौहरी के पास पहुंची जौहरी ने उसकी कीमत ₹100000 बात कर उस पत्थर को खरीद लियाl

उसकी पत्नी बड़ी प्रसन्न हुई एक लाख रूपए लेकर उसने सारा जरूरी काम किया अच्छे-अच्छे वस्त्र के साथ आभूषण भी खरीदे और वह दूसरे दिन पति का खाना लेकर खेत पर गई पत्नी को उस स्वरूप में देखकर पति को आश्चर्य हुआ पत्नी ने सारी घटना बताई वह दौड़ा दौड़ा पूरे खेत में उसके द्वारा फेके गए उन पत्थरों को ढूंढता रहा उसे एक भी नहीं मिला पश्चाताप करता रहाl

यह जो चमकीले पत्थर हैं यह आपकी अनमोल सांस है जिसकी कोई कीमत नहीं है यह जो खेत है यह संसार है और जौहरी संत हैl

हम अपनी अमूल्य सांस इस जीवन के चक्र में नष्ट कर देते हैं जिनकी कीमत हमें पता नहीं है कोई संत रूपी जौहरी जब हमारे जीवन में आता है तब हमें मानव जीवन की कीमत बताता है तब तक हीरे रूपी सांस हम खत्म कर चुके होते हैंl

कहने का तात्पर्य हर सांस की कीमत का धन भी नहीं चुका सकता आपको जो सांस मिली है उसका सदुपयोग भगवत भक्ति संत सेवा मानव सेवा में करो पता नहीं इस शरीर से शिव रूपी हंस कब उड़ जाएगा माटी का पुतला माटी में मिल जाएगाl

सुख दुख हर परिस्थिति में ईश्वर को याद करने वाला कभी भी सांसारिक संकट में परेशानी में सांसारिक दुख में अपने आप को नहीं पता है ईश्वर का नाम ही संकटमोचन है वह इस दुनिया की छोड़ो उस दुनिया में भी तुमको भवसागर पार लगा देगा l

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