भारत एक धर्म सापेक्ष देश है इसकी व्यापक व्याख्या होना चाहिए- रविंद्र पाडेय

मन्दसौर। धर्मनिरपेक्षता अर्थ, धर्मेण हीनाः पशुभिः समानाः।
अर्थ धर्म से हीन व्यक्ति पशु के समान है तो हमारा देश धर्म निरपेक्ष कैसे हो सकता । संविधान में यह शब्द बाद में जोडा गया जो हटाना चाहिए। धर्म मनुष्य का नैतिक मार्गदर्शन करता है।
उक्त बात कहते हुए धार्मिक संस्थाओं से जुड़े रविन्द्र पाण्डेय ने कहा कि धर्म नैतिक और सामाजिक मूल्यों को स्थापित करने में मार्गदर्शन करता है। जो व्यक्तियों को यह समझने में मार्गदर्शन करता हैं कि क्या उचित है और क्या अनुचित है। यह विषय बहुत विस्तृत है विश्व के सबसे प्राचीन ग्रंथो के अनुसार ‘यतो धर्मस्ततो जयः’ जहाँ धर्म है, वहाँ विजय है। यक्ष प्रसिद्ध श्लोक का भाग है जो महाभारत से लिया गया है जो हमारे देश के सर्वाेच्च न्यायालय का ध्येय वाक्य भी है। ‘अहिंसा परमो धर्मः, धर्म हिंसा तथैव च’ का अर्थ है कि अहिंसा परम धर्म है, लेकिन धर्म की रक्षा के लिए हिंसा भी अनुचित नहीं है। यह भी श्लोक महाभारत के अनुशासन पर्व में है जो हमारे लिए मार्गदर्शन है
जब हम ‘धर्म सापेक्ष’ कहते हैं, तो हम उस स्थिति या विचार को संदर्भित करते हैं जो धर्म से प्रभावित है। उदाहरण के लिए, ष्धर्म सापेक्ष नैतिकताष् का मतलब है कि नैतिकता के नियम धर्म से निर्धारित होते हैं।
श्री पाण्डेय ने बताया कि धर्म के दस लक्षण इस प्रकार हैं-
‘धृतिः क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रहः। धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम्।।’’
धैर्य (धृति), क्षमा, संयम (दम), अस्तेय (चोरी न करना), शौच (पवित्रता), इंद्रियनिग्रह (इंद्रियों पर नियंत्रण), धी (बुद्धि), विद्या (ज्ञान), सत्य और अक्रोध (क्रोध न करना) धैर्य (धृति)।
कठिनाइयों और संकटों में भी शांत और स्थिर रहना हमारा गौरवपूर्ण अतीत और ज्ञान संपूर्ण विश्व को का मार्गदर्शन करता है इसलिए भारत विश्व गुरु कहलाया और हमारे ही देश में संविधान में देश को धर्म निरपेक्ष बना दिया जो उचित नहीं है भारत सरकार को इस शब्द को हटाकर संविधान में धर्म सापेक्ष शब्द को जोड़ना चाहिए और समाज में इसकी व्यापक व्याख्या होना चाहिए।