क्या चीन के साथ किया गया एमओयू आज कांग्रेस की राजनीतिक आत्महत्या का कारण बनता जा रहा है?

राजनीतिक विशेष विश्लेषण-
आत्मघात की ओर बढ़ रही है राहुल कांग्रेस !
-शिवशक्ति शर्मा ताल ब्यूरो चीफ
जब कोई राजनीतिक दल अपने ही देश की सरकार से ज़्यादा विदेशी ताकतों के प्रति सहानुभूति रखे, तो सवाल लाज़मी है—क्या वह विपक्ष में है, या राष्ट्रविरोधी फ्रेमवर्क में खुद को फँसा चुका है? राहुल गांधी और उनकी कांग्रेस पार्टी इस समय ऐसी ही ऐतिहासिक भूलों की श्रृंखला में उलझी हुई दिखाई देती है, जिनका अंत राजनीतिक आत्मघात पर हो सकता है।
कभी “भारत जोड़ो यात्रा” के ज़रिए देश को एक सूत्र में पिरोने का दावा करने वाले राहुल गांधी अब उन मुद्दों पर ट्विटर युद्ध में लगे हैं, जो भारत की आंतरिक सुरक्षा, सांस्कृतिक अस्मिता और विदेश नीति से सीधी टक्कर लेते हैं।राहुल गांधी और उनकी टीम द्वारा सिंदूर, राम मंदिर और हिंदू प्रतीकों पर बार-बार टिप्पणी करना अब भाजपा की राजनीति का जवाब नहीं, भारत की संस्कृति का अपमान बनता जा रहा है। जबकि पार्टी नेता प्रियंका गांधी वाड्रा ने जिस तरह से “हिंदूत्व बनाम हिंदू” जैसी बातें की हैं, उससे पार्टी के भीतर उनकी लोकप्रियता राहुल से ज्यादा बढ़ती नजर आ रही है। इधर वहीं राहुल कांग्रेस प्रवक्ताओं ने बार-बार “सांप्रदायिक सिंबल” बताकर मांग में सिंदूर, गौ पूजा, और कावड़ यात्रा पर तंज कसे हैं।क्या राहुल कांग्रेस इस सांस्कृतिक विमुखता से उबर सकती है? शायद नहीं। क्योंकि भारतीय जनमानस भावनाओं से चलता है, और जब पार्टी बार-बार इन भावनाओं को ठेस पहुंचाती है, तो यह केवल चुनाव नहीं हारती—अपनी साख भी खो देती है।
पाकिस्तान पर चुप्पी, भारत सरकार पर हमले: क्यों?
जब पाकिस्तान से आतंकी घुसपैठ होती है, या कराची से संचालित फंडिंग सामने आती है, तब कांग्रेस या तो चुप रहती है या भारत सरकार से सवाल करती है। चाहे सर्जिकल स्ट्राइक हो या बालाकोट एयर स्ट्राइक, राहुल गांधी ने हर बार सेना के शौर्य को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की।
क्या यह एक रणनीति है या विवशता? क्योंकि सच्चाई यह भी है कि राहुल गांधी ने अपनी दादी इंदिरा गांधी और पिता राजीव गांधी को आतंकी हमलों में खोया है। ऐसे में उनकी मन:स्थिति यह भी हो सकती है कि वे टकराव से डरते हों, लेकिन अगर डर ही नीति बन जाए, तो वह राजनीति नहीं, कायरता होती है।
नेशनल हेराल्ड केस: डरे हुए नेता की ढाल क्या राष्ट्रविरोध है?
राहुल गांधी के लिए आने वाला समय कानूनी संकटों से भरा हुआ है। नेशनल हेराल्ड केस में उनके और सोनिया गांधी के खिलाफ ईडी की पूछताछ, और आर्थिक अनियमितताओं के दस्तावेज धीरे-धीरे कोर्ट की प्रक्रिया में सामने आ रहे हैं।
ऐसे में एक तर्क यह भी हो सकता है कि चीन या पाकिस्तान के प्रति नरमी, और सरकार पर हमले का उद्देश्य राजनीतिक प्रतिशोध की कहानी गढ़ना है, ताकि जनता को भ्रमित किया जा सके।
लेकिन जनता अब सब जानती है। राहुल गांधी अगर सोचते हैं कि भारत का आम मतदाता विदेश नीति, सांस्कृतिक पहचान और सुरक्षा मुद्दों पर भावुक नहीं बल्कि मूर्ख है, तो यह उनकी सबसे बड़ी भूल है।
आज कांग्रेस भ्रम की स्थिति में है—वह न तो स्पष्ट रूप से राष्ट्रवाद के साथ है, न ही वैकल्पिक नीतियों के साथ। वह केवल सरकार विरोध में फंसी हुई पार्टी बनकर रह गई है।
राहुल गांधी का नेतृत्व न तो निर्णायक है, न विश्वसनीय। उनकी “मोदी हटाओ” रणनीति, दरअसल “कांग्रेस मिटाओ” में बदलती जा रही है।भारत अब 2025 में है। यह वह भारत है जो चंद्रयान भेज चुका है, ऑपरेशन ब्लैक फॉरेस्ट कर चुका है, और 15 अगस्त तक माओवाद खत्म करने का ऐलान कर चुका है। यह नया भारत है, जिसे मजबूती, स्पष्टता और नेतृत्व चाहिए।यदि राहुल गांधी अब भी सिंदूर पर हमला, चीन से संबंध, और पाकिस्तान से चुप्पी जैसे राजनीतिक प्रयोगों में उलझे रहे, तो आने वाले समय में कांग्रेस केवल इतिहास की किताबों में बचेगी,वह भी एक गलत उदाहरण के रूप में।भारत की राजनीति में विपक्ष का होना आवश्यक है। लेकिन राष्ट्रविरोध में उलझा विपक्ष, लोकतंत्र के लिए एक आत्मघाती संक्रमण बन जाता है।
राहुल गांधी को यह समझना होगा कि अगर वे समय रहते नहीं जागे, तो कांग्रेस का अंत वह खुद अपने हाथों लिख देंगे।
और इतिहास किसी को नहीं छोड़ता—न तो जो देशद्रोही होते हैं, न ही जो उनके साथ खड़े होते हैं।
चीन के साथ एमओयू: 2008 की गलती या आज की साजिश?
2008 में बीजिंग में कांग्रेस और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के बीच जो एमओयू साइन हुआ था, वह वर्षों तक दबी आवाज़ों में सवालों के घेरे में रहा। अब, जब डोकलाम, गलवान, और अरुणाचल में चीन की घुसपैठ खुले आम दिख रही है, तब यह सवाल और तीखा बन गया है—क्या राहुल गांधी की चीन नीति कांग्रेस के लिए अंतहीन आत्मघात बन चुकी है?
अभी हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी के सुरक्षा सलाहकारों ने बताया कि कांग्रेस की विदेश नीति “अज्ञात स्रोतों” से प्रेरित है, और राहुल गांधी अक्सर ऐसे मंचों पर चीन के पक्ष में बयान देते हैं, जहां राष्ट्रीय हित को नुकसान होता है।