धर्म संस्कृतिमध्यप्रदेशसीतामऊ

एक ऐसा मंदिर जिनकी आस्था भक्तों को खींच लाती है अपने पास

 

देव विश्वकर्मा

मध्य प्रदेश का जिला मन्दसौर अपनी मीठी बोली खानपान व धार्मिक रीति रिवाज के चलते अपनी खास पहचान रखता है मन्दसौर में सैकड़ों वर्ष पुराने कई मंदिर व शिलालेख मौजूद है जो यह बताते हैं कि वह कितने प्राचीन हैं. मन्दसौर से 50 किलोमीटर दूर बिशनिया गुराडिया गौड भाट खेड़ी गांव के बिच एक हनुमान जी का मंदिर है जिसे बैकुंठ धाम किशनगढ़ बालाजी के नाम से जाना जाता हैं

इस मंदिर का इतिहास सैकड़ों वर्ष पुराना है खास तौर से इस मंदिर का इतिहास व मान्यता आस्था का केंद्र बनी हुई है. जिले भर से श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं और माथा टेक कर अपनी मुराद मांगते हैं श्रद्धालुओं का मानना है कि यहां पर माथा टेक कर कुछ भी मांगते हैं वह पूरा होता है हनुमान जी को चढ़ने वाला प्रसाद में खासतौर से गुड और चना चढ़कर भक्त उसकी दिल की इच्छा पूरी करते हैं

बालाजी करते हैं भक्तों की मन्नत पूरी 

वैकुंड धाम किशनगढ़ बालाजी के भक्त शंभू लाल डांगी गुराडिया गौड वाले बालाजी के मंदिर कि सेवा एवं देख रेख कर रही है. उन्होंने बताया इस मंदिर की इतिहास और इसकी मान्यता के बारे में किशनगढ़ बालाजी मंदिर में हनुमान जी की प्रतिमा के बारे में कहा जाता है कि यह सैकड़ों वर्ष पहले इस जगह एक बड़ा गांव हुआ करता था जो कि कहीं वर्षों पहले उज्जड हो गया और यह मूर्ति अलीग रही लोग यहां पर पूजा पाठ करते और जो भी मांगते पूरा होने लगा तो धीरे-धीरे मंदिर का विस्तार हुआ

सैकड़ों वर्ष पहले इस प्रतिमा को पास के गांव में ले जाने के लिए कोशिश की गई क्यु की यहां पर जमीन से दो सौ पिट ऊंचाई टेगरी पर खंडरसा जंगल बन गया था जो दिन के उजाले में भी आने पर यहां पर डर लगने लगा था लेकिन इस चमत्कारी प्रतिमा का किसी को पता नहीं था कि यहां पर जो प्रतिमा लगी हुई है. इस प्रतिमा में हनुमान जी का एक पाव तो जमीन के ऊपर है और दूसरा पांव जमीन के अंदर यानी पाताल लोक तक काफी कोशिश की गई आखिर का हार कर यहीं पर मंदिर बना और यह माना जाता है कि हनुमान जी यहां से जाना नहीं चाहते थे इसलिए वह यहीं रुक गए आज भी श्रद्धालु जिले भर से यहां पहुंचते हैं यहां पर कहीं रसमय तत्व भी है मंदिर में समिति ने बताया कि इस गांव का इतिहास बहुत पुराना है कई बार इस गांव के टिले पर खुदाई हो चुकी है आस पास गांव के लोगों का मानना है कि यहां पर पुराने जेवरात जैसी सभ्यता और प्रतिमा यहां मौजूद है जिसका प्रमाण यहां पर सब देखे जा सकते हैं सैकड़ों वर्ष पुरानी शिलालेख व कई सारी प्रतिमाएं मौजूद है वही एक स्तंभ मौजूद है जो बिना किसी केमिकल के पत्थर की एक शीला के ऊपर दूसरी शीला रखी गई है वह ना तो गिरती है ना हिलती है उसके पास एक पूरा महल बना हुआ था जिसके कुछ अंश जमीन के ऊपर तक दिखाई देते हैं और मंदिर के पास नीचे ही एक बड़ा सा झरना है जिसमें बारह माह प्रेयजल रहता रहता है जिसे कुंड का नाम दिया गया है मान्यता यह भी है कि इस कुंड में नहाने से मात्र ही कई बीमारियों का खत्म हो जाती है और अब सालों साल बीतने के बाद अब इस जगह पर इतना सुंदर दृश्य बन गया कि जो भी यहां पर आता है वह इस जगह को निहारता रह जाता है और यहां से जाने की कल्पना भी नहीं करता

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