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आध्यात्मिक उत्कर्ष का पर्व- शिवरात्रि… – डॉ. रवीन्द्र कुमार सोहोनी

आध्यात्मिक उत्कर्ष का पर्व- शिवरात्रि… – डॉ. रवीन्द्र कुमार सोहोनी
हर चन्द्र माह के चौदहवें दिन या अमावस्या से एक दिन पहले शिवरात्रि होती है, एक कैलेण्डर वर्ष में आने वाली बारह शिवरात्रियों में से फरवरी मार्च में आने वाली शिवरात्रि आध्यात्मिक रूप से सबसे महत्वपूर्ण है।
इस रात पृथ्वी के उत्तरी गोलार्द्ध की स्थिति के फलस्वरूप मनुष्य के शरीर में ऊर्जा, प्राकृतिक एवं स्वाभाविक रूप से ऊपर की ओर विकसित होती है। इस दिन प्रकृति स्वयं मनुष्य को आध्यात्मिक उत्कर्ष की ओर पहुंचने के लिये न केवल प्रेरित करती है, अपितु सहायता भी करती है। इस कारण आध्यात्मिक मार्ग पर चलने वाले मनुष्य मात्र के लिये यह पर्व अत्यन्त महत्वपूर्ण है।
यह पर्व गृहस्थ जीवन व्यतीत करने वालों के लिये शिव-पार्वती के विवाह की वर्षगांठ का दिन हैं सांसारिक महत्वाकांक्षाएं रखने वाले व्यक्तियों के लिये शिवरात्रि का पर्व शिव द्वारा शत्रुओं के विरूद्ध विजय और उनके संहार का दिन है। साधु संतों, सन्यासियों, योगियों के लिये शिवरात्रि का दिन वह दिन है, जब शिव कैलाश पर्वत के साथ एकाकार हो गए थे।
‘शिव’ का अर्थ है आपका सबसे शुद्धतम, अन्तरतम सत्। ‘शिव’ का एक अर्थ श्रेष्ठ या उदार होता है तथा ‘रात्रि’ का अर्थ वह है जो आपको गोद में बैठाकर सुख और विश्राम प्रदान करें। इस प्रकार ‘शिवरात्रि’ का अक्षरशः अर्थ यह हुआ कि- ‘वह रात्रि जो तीनों गुणों में शिव तत्व अथवा दूसरे शब्दों में अन्तर्ज्ञान को प्रज्जवलित कर सके।’ मन, बुद्धि, चित्त (स्मृति) की भाँति ‘शिव’ तत्व भी तत्व के रूप में हमारे भीतर होता है। जीवन के तीन मूल आयाम है, जिन्हें कई रूपों में दर्शाया गया है। इन्हें इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना भी कहा जा सकता है। ये तीनों प्राणमय कोष मानव तंत्र के ऊर्जा शरीर में मौजूद तीन मूलभूत नाड़ियां है- बाईं, दाहिनी और मध्य। इन नाड़ियों से ही मनुष्य में प्राण का संचार होता है। तीन मूलभूत नाड़ियों से 72 हजार नाड़ियां निकलती है। प्राण अथवा ऊर्जा इन्हीं 72 हजार रास्तों से गुजरती है। इसमें इड़ा और पिंगला जीवन के बुनियादी द्वैत का प्रतीक है, इस द्वैत को हम सनातनी परम्परागत रूप से शिव और शक्ति का नाम देते है।
योगिक विज्ञान में भगवान शिव को रूद्र कहा जाता है। रूद्र का अर्थ है वह जो रौद्र या भयंकर रूप में हो इसीलिये शिव को संहारक कहा जाता है, वहीं शिव को दूसरी और सृष्टिकर्ता भी कहा जाता है क्योंकि नया सृजन तभी संभव है, जब पुराने का संहार हो। विशेषकर विगत् ढाई दशकों से कई पाश्चात्य वैज्ञानिकों ने ‘‘डार्क मैटर’ और ‘डार्क एनर्जी’ के विषय में शोध और बात करना आरंभ किया है। हमारे यहाँ योग विज्ञान में दोनों मौजूद है। डार्क मैटर भी और डार्क एनर्जी भी। यहां शिव को काला माना गया है अर्थात ‘डार्क मैटर’ और शक्ति को डार्क एनर्जी या काली कहा जाता है।
विगत् छह वर्षों से स्कॉटिश युनिवर्सिटी के कई वैज्ञानिक ‘डार्क मैटर‘ और ‘डार्क एनर्जी‘ पर शोध कर इस निर्णय पर पहुँचे है कि दोनों में कोई लिंक अवश्य है और दोनों एक दूसरे से जुड़ी हुई है।
महाशिवरात्रि उन बहुत थोड़े हिन्दू त्यौहारों में हैं जो कृष्ण पक्ष में आते हैं। कृष्ण पक्ष को बहुत पवित्र नहीं माना जाता है, किन्तु शिवरात्रि की रात्रि वह रात्रि है जिस दिन शिव करोड़ों-करोड़ वर्ष की ध्यान तपस्या से स्थिरता को प्राप्त होकर अस्तित्व की एकात्मकता में स्थापित हो गए। कुछ लोग शिवरात्रि से जुड़ी एक चोर की कहानी सुनाते हैं जिसमें चोर गलती से रातभर बिल्व पत्र के वृक्ष के नीचे अवस्थित शिवलिंग पर बिल्व पत्र डालता रहता है और अपने समस्त पापकर्मों से मुक्त हो जाता है।
दक्षिण भारत में प्रचलित कथा यह है कि उस रात्रि को शिव ने सृष्टि के कल्याण के लिये विषपान किया था। माँ पार्वती नहीं चाहती थी कि गरल शिव के गले के नीचे उतरे तो उन्होंने शिव का कंठ पकड़ लिया था। देवता नहीं चाहते थे कि शिव गरल को बाहर निकाले तो उन सभी ने शिव की स्तुति प्रारंभ की। पूरी रात शिव की स्तुति करते रहे और शिव ने इस गरल को कंठ में ही धारण कर लिया तथा सृष्टि की रक्षा की।
इस कारण भी इस रात्रि को जागकर शिव की कृपा पाने की कामना की जाती है। निन्यानवें प्रतिशत सनातनी गृहस्थों की मान्यता है कि माँ पार्वती ने कठिन तपस्या कर भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न किया और शिवरात्रि के दिन ही माँ पार्वती और शिवजी का विवाह हुआ था।
शिव सुन्दर है, शिव सत्य सनातन है, शिव कल्याणकारी हैं, शिव शुभकारी है, शिव अविनाशी हैं, शिव अनन्त है, शिव अगोचर है, शिव अजन्मे हैं, इसीलिए सभी देव, दानव, मानव, जीव-जन्तु, पशु-पक्षी, चर-अचर, आकाश-पाताल और सप्तपुरियों में महादेव का आत्मचिंतन कर हम सभी धन्यता को प्राप्त होते हैं।
इस अखिल ब्रह्माण्ड के प्रथम पंचाक्षरी मंत्र ‘ऊँ नमः शिवाय’ से शिव की कृपा इस सृष्टि पर बनी रहे इस मंगल कामना के साथ, शिवरात्रि की अनन्त शुभकामनाएँ।
इति शुभम्।
इस रात पृथ्वी के उत्तरी गोलार्द्ध की स्थिति के फलस्वरूप मनुष्य के शरीर में ऊर्जा, प्राकृतिक एवं स्वाभाविक रूप से ऊपर की ओर विकसित होती है। इस दिन प्रकृति स्वयं मनुष्य को आध्यात्मिक उत्कर्ष की ओर पहुंचने के लिये न केवल प्रेरित करती है, अपितु सहायता भी करती है। इस कारण आध्यात्मिक मार्ग पर चलने वाले मनुष्य मात्र के लिये यह पर्व अत्यन्त महत्वपूर्ण है।
यह पर्व गृहस्थ जीवन व्यतीत करने वालों के लिये शिव-पार्वती के विवाह की वर्षगांठ का दिन हैं सांसारिक महत्वाकांक्षाएं रखने वाले व्यक्तियों के लिये शिवरात्रि का पर्व शिव द्वारा शत्रुओं के विरूद्ध विजय और उनके संहार का दिन है। साधु संतों, सन्यासियों, योगियों के लिये शिवरात्रि का दिन वह दिन है, जब शिव कैलाश पर्वत के साथ एकाकार हो गए थे।
‘शिव’ का अर्थ है आपका सबसे शुद्धतम, अन्तरतम सत्। ‘शिव’ का एक अर्थ श्रेष्ठ या उदार होता है तथा ‘रात्रि’ का अर्थ वह है जो आपको गोद में बैठाकर सुख और विश्राम प्रदान करें। इस प्रकार ‘शिवरात्रि’ का अक्षरशः अर्थ यह हुआ कि- ‘वह रात्रि जो तीनों गुणों में शिव तत्व अथवा दूसरे शब्दों में अन्तर्ज्ञान को प्रज्जवलित कर सके।’ मन, बुद्धि, चित्त (स्मृति) की भाँति ‘शिव’ तत्व भी तत्व के रूप में हमारे भीतर होता है। जीवन के तीन मूल आयाम है, जिन्हें कई रूपों में दर्शाया गया है। इन्हें इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना भी कहा जा सकता है। ये तीनों प्राणमय कोष मानव तंत्र के ऊर्जा शरीर में मौजूद तीन मूलभूत नाड़ियां है- बाईं, दाहिनी और मध्य। इन नाड़ियों से ही मनुष्य में प्राण का संचार होता है। तीन मूलभूत नाड़ियों से 72 हजार नाड़ियां निकलती है। प्राण अथवा ऊर्जा इन्हीं 72 हजार रास्तों से गुजरती है। इसमें इड़ा और पिंगला जीवन के बुनियादी द्वैत का प्रतीक है, इस द्वैत को हम सनातनी परम्परागत रूप से शिव और शक्ति का नाम देते है।
योगिक विज्ञान में भगवान शिव को रूद्र कहा जाता है। रूद्र का अर्थ है वह जो रौद्र या भयंकर रूप में हो इसीलिये शिव को संहारक कहा जाता है, वहीं शिव को दूसरी और सृष्टिकर्ता भी कहा जाता है क्योंकि नया सृजन तभी संभव है, जब पुराने का संहार हो। विशेषकर विगत् ढाई दशकों से कई पाश्चात्य वैज्ञानिकों ने ‘‘डार्क मैटर’ और ‘डार्क एनर्जी’ के विषय में शोध और बात करना आरंभ किया है। हमारे यहाँ योग विज्ञान में दोनों मौजूद है। डार्क मैटर भी और डार्क एनर्जी भी। यहां शिव को काला माना गया है अर्थात ‘डार्क मैटर’ और शक्ति को डार्क एनर्जी या काली कहा जाता है।
विगत् छह वर्षों से स्कॉटिश युनिवर्सिटी के कई वैज्ञानिक ‘डार्क मैटर‘ और ‘डार्क एनर्जी‘ पर शोध कर इस निर्णय पर पहुँचे है कि दोनों में कोई लिंक अवश्य है और दोनों एक दूसरे से जुड़ी हुई है।
महाशिवरात्रि उन बहुत थोड़े हिन्दू त्यौहारों में हैं जो कृष्ण पक्ष में आते हैं। कृष्ण पक्ष को बहुत पवित्र नहीं माना जाता है, किन्तु शिवरात्रि की रात्रि वह रात्रि है जिस दिन शिव करोड़ों-करोड़ वर्ष की ध्यान तपस्या से स्थिरता को प्राप्त होकर अस्तित्व की एकात्मकता में स्थापित हो गए। कुछ लोग शिवरात्रि से जुड़ी एक चोर की कहानी सुनाते हैं जिसमें चोर गलती से रातभर बिल्व पत्र के वृक्ष के नीचे अवस्थित शिवलिंग पर बिल्व पत्र डालता रहता है और अपने समस्त पापकर्मों से मुक्त हो जाता है।
दक्षिण भारत में प्रचलित कथा यह है कि उस रात्रि को शिव ने सृष्टि के कल्याण के लिये विषपान किया था। माँ पार्वती नहीं चाहती थी कि गरल शिव के गले के नीचे उतरे तो उन्होंने शिव का कंठ पकड़ लिया था। देवता नहीं चाहते थे कि शिव गरल को बाहर निकाले तो उन सभी ने शिव की स्तुति प्रारंभ की। पूरी रात शिव की स्तुति करते रहे और शिव ने इस गरल को कंठ में ही धारण कर लिया तथा सृष्टि की रक्षा की।
इस कारण भी इस रात्रि को जागकर शिव की कृपा पाने की कामना की जाती है। निन्यानवें प्रतिशत सनातनी गृहस्थों की मान्यता है कि माँ पार्वती ने कठिन तपस्या कर भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न किया और शिवरात्रि के दिन ही माँ पार्वती और शिवजी का विवाह हुआ था।
शिव सुन्दर है, शिव सत्य सनातन है, शिव कल्याणकारी हैं, शिव शुभकारी है, शिव अविनाशी हैं, शिव अनन्त है, शिव अगोचर है, शिव अजन्मे हैं, इसीलिए सभी देव, दानव, मानव, जीव-जन्तु, पशु-पक्षी, चर-अचर, आकाश-पाताल और सप्तपुरियों में महादेव का आत्मचिंतन कर हम सभी धन्यता को प्राप्त होते हैं।
इस अखिल ब्रह्माण्ड के प्रथम पंचाक्षरी मंत्र ‘ऊँ नमः शिवाय’ से शिव की कृपा इस सृष्टि पर बनी रहे इस मंगल कामना के साथ, शिवरात्रि की अनन्त शुभकामनाएँ।
इति शुभम्।