चिंताजनक: महिला सशक्तिकरण की अवधारणा पर पानी फेर रहे प्रतिनिधि

महिला सरपंच का सिर्फ नाम, पति, पुत्र या देवर प्रतिनिधि बनकर निपटा रहे काम
गोवर्धनलाल कुमावत
राजनगर।सीतामऊ जनपद की ज्यादातर ग्राम पंचायतों में सरपंच चुनी गई महिलाओं की शक्ति महज उनके नाम तक ही सीमित है। *महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए सरकार ने ग्राम पंचायत से लेकर संसद तक आरक्षण कर रखा है।
लेकिन ग्राम पंचायतों में चुनकर आई महिला सरपंचों के स्थान पर उनके पति या पुत्र ही महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहे हैं। मतलब साफ है कि आरक्षण की मजबूरी ने महिलाओं को सरपंच तो बना दिया है लेकिन असली सरपंच तो उनके प्रतिनिधि ही हैं महिलाओं की जगह उनके पति, देवर या फिर उनके पुत्र ही काम कर रहे हैं।
ग्रामीणों की माने तो अधिकांश ग्राम पंचायतों में तो उन्हें हस्ताक्षर करने तक का मौका नहीं दिया जाता जिन पंचायतों में सरपंच महिलाएं हैं वहां पूरा काम उनके पति, पुत्र, या देवर प्रतिनिधि बनकर देखते हैं चुनाव जीतने के बाद इनकी मुहर, हस्ताक्षर व पंचायतों से जुड़े अभिलेख भी प्रतिनिधि ही संभालते हैं।
अधिकांश महिला सरपंच के बजाए ग्रामीण प्रतिनिधि को ही सरपंच कहते हैं और समझते हैं। हद तो तब हो जाती है जब महिला सरपंच के प्रतिनिधियों से सरकारी कार्यालय में अधिकारी मिलते जुलते हैं मगर अधिकारी उनसे यह नहीं पूछते कि महिला सरपंच के स्थान पर आप क्यों आते हो ऐसे में महिला सशक्तिकरण की अवधारणा पर पानी फिर रहा है चुनाव से पूर्व महिला उम्मीदवारों ने कार्यकर्ताओं, रिश्तेदारों के साथ जोर-शोर से प्रचार-प्रसार किया था।
लेकिन पंचायत चुनाव के बाद अब तक कई मतदाताओं ने महिला सरपंचों की शक्ल नहीं देखी है ग्राम पंचायतों के ग्रामीणों का कहना है कि समस्याओं के निराकरण के लिए मोबाइल फोन लगाने पर महिला सरपंच के पति, पुत्र से ही बात होती है वे समस्याएं सुनकर निर्णय करते हैं काम होगा या नहीं होगा ग्रामीणों की माने तो महिला सरपंचों के पति-पुत्र ही ग्राम पंचायतों को बैठकों में ये ही देखे जाते हैं l