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मध्य प्रदेश में जो पुलिसकर्मी करते हैं साइबर क्राइम की जांच, वो ही हो रहे ठगों का शिकार

मध्य प्रदेश में जो पुलिसकर्मी करते हैं साइबर क्राइम की जांच, वो ही हो रहे ठगों का शिकार

 

भोपाल। साइबर अपराध की जांच करने वाले पुलिसकर्मी भी उनका शिकार हो रहे हैं। ठगों की हर चाल से वाकिफ होने के बावजूद पुलिसकर्मी उनके झांसे में फंसकर बैंक में जमा अपने रुपयों से हाथ धो रहे हैं। ठग उन्हें भारी मुनाफा या लाटरी का लालच देते हैं और मनोवैज्ञानिक रूप से उन्हें जाल में फंसा रहे हैं। साइबर सेल में दिसंबर अंत और जनवरी में शहर के दो थानों में पदस्थ पुलिसकर्मी से ठगी की शिकायतें पहुंची हैं। साइबर ठगों और पुलिस के बीच जिस तरह का संघर्ष चल रहा है, वह ‘तू डाल-डालल मैं पात-पात’ वाली कहावत को ही चरितार्थ करता नजर आ रहा है।

ठगी के नए तरीके और तकनीक अपना रहे

पुलिस साइबर ठगों को पकड़ने के लिए जिस तरह नवीनतम तकनीकों का सहारा लेती है और लोगों को साइबर ठगी से बचने के लिए जागरूक करती है, वहीं इसके उलट साइबर ठग भी नवीन तकनीकों से हर पल लैस होते रहते हैं और लोगों के भय, लालच, मुनाफे की चाह जैसे विकारों का उपयोग करते हुए उनके मनोविज्ञान से बखूबी खेलते हैं।

कभी किसी को ईडी या सीबीआइ या नार्कोटिक्स ब्यूरो के नाम पर धमकाते हैं तो किसी को लाटरी, सट्टे से शीघ्र कमाई के लिए ललचाते हैं। किसी को शेयर बाजार में निवेश के नाम पर फर्जी वेबसाइटों के माध्यम से उकसाते हैं।

जिन पर लोगों को बचाने की जिम्मेदारी, वो ही ठगी का शिकार

कभी-कभी डिजिटल अरेस्ट के नाम पर आतंकित करते हुए लोगों की जमा पूंजी को मिनटों में हथिया लेते हैं। परंतु आश्चर्य की बात है कि लोगों में साइबर ठगों से बचने के प्रति जागरूकता लाने की जिम्मेदारी है, या साइबर ठगों को पकड़कर सींखचों के पीछे पहुंचाने का दायित्व है, जब वे ही लोग ठगी का शिकार होने लगें तो आश्चर्य होना स्वाभाविक है। पिछले दिनों भोपाल में ऐसे ही दो प्रकरण सामने आए, जिनमें एक पुलिस आरक्षक और एक निरीक्षक भी क्रमश: 50 हजार रुपए और 80 हजार रुपये गवां बैठे। इस बारे में साइबर सेल के अधिकारी कहते हैं कि ठगी की घटना किसी के साथ भी हो सकती है। इस बचने के लिए अतिरिक्त सतर्कता रखना आवश्यक है।

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