आलेख/ विचारमंदसौरमध्यप्रदेश
16 दिसंबर विजय दिवस, रा.स्व.संघ की शाखाओं में दंड प्रहार दिवस

विश्व भर की शाखों में स्वयंसेवक लगाएंगे करोड़ों दंड प्रहार
1971 में पाकिस्तान के विरुद्ध युद्ध लड़कर भारत को 16 दिसंबर के दिन विजय प्राप्त हुई थी और पृथक बांग्लादेश के निर्माण की मुहिम शुरू की गई इस दिन को प्रतिवर्ष भारत “विजय दिवस” के रूप में मनाता है किंतु इस दिवस को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ संपूर्ण भारत सहित संपूर्ण विश्व में अपनी शाखाओं में “प्रहार दिवस” के रूप में मनाता है तथा 3 दिसंबर से 16 दिसंबर तक प्रत्येक संघ सेवक शाखा स्थल पर लकड़ी के दंड से अधिकतम प्रहार लगाकर रिकॉर्ड कायम करता है, ताकि शत्रु पर विजय प्राप्त करने का स्वप्न उनके हृदय में जागृत रहे।
पाकिस्तान के विरुद्ध बांग्लादेश के लिए युद्ध करने के कारणों को जानने के लिए हमें बांग्लादेश की पृष्ठभूमि का ज्ञान होना जरूरी है।
बांग्लादेश में सभ्यता का इतिहास काफी पुराना रहा है। आज के भारत का अधिकांश पूर्वी क्षेत्र कभी बंगाल के नाम से जाना जाता था। बौद्ध ग्रंथो के अनुसार इस क्षेत्र में आधुनिक सभ्यता की शुरुआत ईसा पूर्व 700 वर्ष पहले में आरंभ हुई, यह माना जाता है। यहाँ की प्रारंभिक सभ्यता पर बौद्ध और हिन्दू धर्म का प्रभाव स्पष्ट देखा जा सकता है। उत्तरी बांग्लादेश में स्थापत्य के ऐसे हजारों अवशेष अभी भी मौज़ूद हैं जिन्हें मंदिर या मठ कहा जाता है।
भारत का विभाजन होने के फलस्वरुप बंगाल भी दो हिस्सों में बँट गया। इसका हिन्दू बहुल इलाका भारत के साथ रहा और पश्चिम बंगाल के नाम से जाना जाता है तथा मुस्लिम बहुल इलाका पूर्वी बंगाल पाकिस्तान का हिस्सा बना जो पूर्वी पाकिस्तान के नाम से जाना गया। जमींदारी प्रथा ने इस क्षेत्र को बुरी तरह झकझोर रखा था जिसके खिलाफ १९५० में एक बड़ा आंदोलन शुरु हुआ और १९५२ के बांग्ला भाषा आंदोलन के साथ जुड़कर यह बांग्लादेशी गणतंत्र की दिशा में एक बड़ा आंदोलन बन गया। इस आंदोलन के फलस्वरुप बांग्ला भाषियों को उनका भाषाई अधिकार मिला। १९५५ में पाकिस्तान सरकार ने पूर्वी बंगाल का नाम बदलकर पूर्वी पाकिस्तान कर दिया था।
पाकिस्तान के द्वारा पूर्वी पाकिस्तान की इसलिए उपेक्षा की जाती थी कि वहां से हिंदुओं को भगाना उसका लक्ष्य था इस कारण इसके दमन की शुरुआत यहीं से हुई
पाकिस्तानी शासक
याहया खां के आदेश पर वहां का लोकप्रिय संगठन “आवामी लीग” और उनके नेताओं पर अत्याचार किया जाने लगा, जिसके फलस्वरूप बंगबंधु कहे जाने वाले शेख मुजीब रहमान के नेतृत्व में पूर्वी बंगाल, जिसे उस समय पूर्वी पाकिस्तान कहा जाता था में स्वाधीनता आंदोलन की शुरुआत हुई
बांग्लादेश में खून की नदियां बहने लगी पाकिस्तानी सेना ने हिंदू मुसलमान दोनों ही पर बहुत अत्याचार किए, जिसके कारण 1971 में ही लाखों बंगाली मारे गए तथा दस लाख बंगालियों को भारत में शरण लेना पड़ी उस समय यहां तक की पाकिस्तान के विमानों ने भारत अधिकृत पश्चिम बंगाल पर भी गोलाबारी करना शुरू कर दी थी। जिससे क्रुद्ध होकर तथा बांग्लादेशियों के निवेदन पर तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने पाकिस्तान के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी जिसके परिणाम स्वरूप भारत-पाकिस्तान का भयंकर युद्ध हुआ तथा 16 दिसंबर 1971 को भारतीय सेना के सामने पाकिस्तान के 93000 सैनिकों ने आत्मसमर्पण किया, जिनको युद्ध बंदी बनाकर भारत के विभिन्न कैंपों में रखा गया तथा *बांग्लादेश को एक आजाद मुल्क भारत के द्वारा घोषित किया गया* जिसके प्रथम राष्ट्रपति शेख मुजीब रहमान को बनाया गया था।
इस युद्ध में करीब 3900 भारतीय सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए जबकि 9851 घायल हुए पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तानी बलों के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल एके नियाजी ने भारत के पूर्वी सैन्य कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया था।
इसलिए 16 दिसंबर 1971 को युद्ध में पाकिस्तान पर भारत की जीत के कारण विजय दिवस मनाया जाता है यह युद्ध भारत के लिए ऐतिहासिक और हर देशवासी के मन को उत्साह से भरने वाला सिद्ध हुआ था
भारत की एकता और अखंडता को अक्षुण्य बनाए रखने की भावनाओं को बलवान और जागृत बनाए रखने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लाखों स्वयंसेवक 3 दिसंबर से प्रतिदिन अपनी शाखाओं पर दंड से प्रहार लगाते हैं तथा 16 दिसंबर को यह दंड प्रहार यज्ञ समाप्त होता है
यहां इस बात का ध्यान रखना आवश्यक है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की कोई भी गतिविधि के पीछे एक सोचा समझा संकल्प होता है।
अब फिर ऐसा एक अवसर उपस्थित हो सकता है जब भारत को बांग्लादेश में सीधा-सीधा हस्तक्षेप करना पड़े।
-रमेशचन्द्र चन्द्रे
शिक्षाविद एवं समाजसेवी मंदसौर