मोदी और शाह के प्रत्येक अप्रत्याशित और चौंकाने वाले निर्णयों के पीछे होती है सुनियोजित रणनीति – चाणक्य का विशेष विश्लेषण
ताल ब्यूरो चीफ –शिवशक्ति शर्मा
– उत्तराखंड, गुजरात, राजस्थान और हरियाणा में पहली बार के विधायकों को मुख्यमंत्री बनाने का भाजपा को जबरदस्त लाभ मिला
राज्यसभा का टिकट वितरण, राज्यपालों की नियुक्ति की संगठन के पदों पर नियुक्ति यहां तक कि पद्म पुरस्कारों का चयन भी सुनियोजित रणनीति के तहत किया जाता है।
– देश के दो राज्यों में पहली बार आदिवासी मुख्यमंत्री, उड़ीसा और छत्तीसगढ़ को भी इसका फायदा मिल रहा है ।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह हमेशा महत्वपूर्ण पदों के लिए अप्रत्याशित और चकित करने वाले फैसले लेते हैं। आज यह सवाल इसलिए क्योंकि महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री के पद का फैसला नहीं हुआ है,तो क्या ऐसा ही फैसला महाराष्ट्र में भी होने वाला है ? हालांकि प्रबल संभावना यही है कि देवेंद्र फडणवीस को महाराष्ट्र की कमान दी जाएगी लेकिन मोदी और शाह की जोड़ी इस राज्य में भी कोई चौंकाने वाला फैसला ले सकती है। इस संबंध में भाजपा के एक नेता ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की जोड़ी अप्रत्याशित और चौंकाने वाले फैसले जरूर लेती है लेकिन इसके पीछे एक सुनियोजित रणनीति काम कर रही होती है जिसका लाभ देश और पार्टी को मिलता है। जैसे उत्तराखंड में पहली बार के विधायक पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री पद की कमान तब सौंपी गई जब वह खुद चुनाव हार गए थे। इस निर्णय का उत्तराखंड में जबरदस्त फायदा मिला, पार्टी वहां लगातार तीन चुनाव से धामी के नेतृत्व में जीत रही है। इसी तरह गुजरात में पूरे मंत्रिमंडल को एक साथ बदलना और पहले टर्म के विधायक भूपेंद्र पटेल को मुख्यमंत्री बनाने का फैसला भी इस महत्वपूर्ण आर्थिक राज्य के लिए बेहद लाभकारी साबित हुआ। भाजपा वहां अब तीन चौथाई से अधिक बहुमत के साथ शासन कर रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की जोड़ी ने ऐसा ही फैसला मध्य प्रदेश और राजस्थान में किया था। इन दोनों राज्यों में पिछले वर्ष दिसंबर में क्रमशः डॉक्टर मोहन यादव और भजनलाल शर्मा को मुख्यमंत्री पद की कमान दी गई। ऐसा ही निर्णय नायब सिंह सैनी को हरियाणा में लाकर किया गया। यह सभी निर्णय पार्टी के लिए बेहद लाभकारी साबित हुए। 2017 में पांच बार के सांसद योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री पद पर लाकर इसी तरह राजनीतिक पर्यवेक्षकों को चकित किया गया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की जोड़ी प्रत्येक राजनीतिक पद पर नियुक्ति करते समय भविष्य की रणनीति का ख्याल करती है। 2022 में जब एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनाया गया तो सभी को आश्चर्य हुआ, लेकिन उसका फायदा क्या हुआ यह अब महायुति के मिले एक तरफा बहुमत से पता चलता है। भाजपा की यह शीर्ष जोड़ी राज्यपालों की नियुक्ति, राज्यसभा का टिकट वितरण, संगठन के पदों के फैसले यहां तक कि पद्म पुरस्कारों का चयन भी सोच समझकर करती है। यह भी सुनिश्चित किया जाता है कि किस समाज का राज्यपाल किस राज्य में नियुक्त किया जाना है। जैसे मध्य प्रदेश में भील आदिवासी समाज के मंगू भाई पटेल को राज्यपाल बनाकर लाया गया। जाहिर है महाराष्ट्र में यदि कोई अप्रत्याशित फैसला होता है तो इसके पीछे भी दीर्घकालिक रणनीति काम कर रही होगी यह माना जाना चाहिए। वैसे महाराष्ट्र का फैसला आज शाम तक स्पष्ट हो जाएगा, इसकी संभावना है।
राष्ट्रपति पद के निर्णय से संथाल आदिवासी समाज में लाभ मिला
राष्ट्रपति पद पर उड़ीसा की संथाल आदिवासी नेता द्रौपदी मुर्मू को लाने की रणनीति का लाभ उडीसा, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान में भी मिला। झारखंड चुनाव में भी संथाल आदिवासी समाज बीजेपी के साथ दिखा। हालांकि अन्य गैर आदिवासी समुदाय हेमंत सोरेन के साथ चले गए। इसी तरह उपराष्ट्रपति के पद पर जाट समुदाय के जगदीप धनखड़ को लाने का फायदा भी भाजपा को पश्चिम उत्तर प्रदेश और हरियाणा में मिला। राजस्थान में अलग कारणों से जाट भाजपा से दूर हुए। इसी तरह छत्तीसगढ़ में विष्णु देव साय और उड़ीसा में मोहन मांझी को मुख्यमंत्री बनाने का लाभ आदिवासी समुदाय में मिल रहा है।
गैर राजनीति के पृष्ठभूमि के नेताओं को आगे बढ़ाया
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के चयन के पैटर्न को ध्यान में रखा जाए तो उन्होंने हमेशा गैर राजनीतिक पृष्ठभूमि के साधारण परिवार से आए प्रतिभाशाली नेताओं को आगे किया है। इनमें भूपेंद्र पटेल, पुष्कर सिंह धामी, विष्णु देव साय, मोहन मांझी, भजनलाल शर्मा, नायब सिंह सैनी, डॉ मोहन यादव, तेजस्वी सूर्या जैसे नेताओं का नाम लिया जा सकता है जो अत्यंत साधारण परिवार से आए और उन्होंने अपने जड़ों से खुद को दूर नहीं किया। पुष्कर सिंह धामी और नायब सिंह सैनी के साथ ही भूपेंद्र पटेल ऐसे मुख्यमंत्री हैं जिनके दरवाजे आम जनता और साधारण कार्यकर्ताओं के लिए हमेशा खुले रहते हैं। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव के बारे में भी यही कहा जा सकता है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू भी बेहद संघर्ष करके गरीबों से ऊपर आई हैं। इन सभी निर्णयों का प्रभाव निश्चित रूप से आम जनता और साधारण कार्यकर्ताओं पर पड़ता है। ऐसा नहीं है कि प्रधानमंत्री ने स्थापित राजनीतिक परिवारों के लोगों को नियुक्तियां नहीं दी लेकिन ऐसा उन्होंने राजनीतिक परिस्थितियों और आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर किया। जाहिर है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हमेशा संघ के प्रचारक की तरह संगठन की भावी आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए राजनीति की है।
आज अजीत पवार के निर्णय का मतलब समझ में आता है
जब अजीत पवार को भाजपा में शामिल किया गया तो पार्टी के कार्यकर्ताओंऔर राइट विंग के बुद्धिजीवियों ने इसकी कड़ी आलोचना की थी। अजीत पवार के कारण भाजपा के लिए वाशिंग मशीन शब्द का उपयोग किया जाना लगा। जब लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र में भाजपा के गठबंधन को करारी हार मिली तभी कहा गया कि आखिर भाजपा अजीत पवार को क्यों ढो रही है, लेकिन अब जब एकनाथ शिंदे अपना रंग दिखा रहे हैं तो अजीत पवार का महत्व समझ में आ रहा है। आज अजीत पवार की वजह से एकनाथ शिंदे ज्यादा बारगेनिंग करने की स्थिति में नहीं है। एकनाथ शिंदे को बैलेंस करने के लिए अजीत पवार का महत्व अब सभी को समझ में आ रहा है। जाहिर है नरेंद्र मोदी और अमित शाह के फैसले तुरंत समझ में नहीं आते, लेकिन उनके पीछे कोई ना कोई योजना जरूर रहती है।