कल से 15 दिवसीय पितरों को प्रसन्न करने और पितृ दोष से मुक्ति पाने का अनुष्ठान श्राद्ध शुरू होगा

कल से 15 दिवसीय पितरों को प्रसन्न करने और पितृ दोष से मुक्ति पाने का अनुष्ठान श्राद्ध शुरू होगा
श्राद्ध तिथि पर सूर्योदय से दिन के 12 बजकर 24 मिनट की अवधि के बीच ही श्राद्ध करें। 2 – इसके लिए सुबह उठकर नहाएं, उसके बाद पूरे घर की सफाई करें। घर में गंगाजल और गौमूत्र भी छीड़कें। 3 – दक्षिण दिशा में मुंह रखकर बांए पैर को मोड़कर, बांए घुटने को जमीन पर टीका कर बैठ जाएं।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस समय में तर्पण, श्राद्ध कर्म आदि करने से जातक के पितरों की आत्मा को शांति प्राप्त होकर मोक्ष की प्राप्ति होती है, साथ ही उनका आशीर्वाद भी प्राप्त होता है।
पितृ पक्ष कल से शुरू हो रहा है जो 21 सितंबर तक चलेगा। यह 15 दिवसीय अनुष्ठान पितरों को प्रसन्न करने और पितृ दोष से मुक्ति पाने का अवसर है। इस दौरान तर्पण दान और श्राद्ध करने से पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
मालवा के ज्योतिष गुरु डॉ. अशोक शास्त्री ने बताया कि पिता सहित पितरों को खुश रखने व पितृ दोष से मुक्ति पाने वाला 15 दिवसीय पितृ पक्ष 7 सितंबर रविवार से शुरू हो रहा है। जातक सर्व प्रथम अगस्त्य ऋषि का तर्पण करते हैं। पितृ पक्ष पितरों को खुश व संतुष्ट करने का पक्ष है।
पितृ पक्ष में माता पिता व पितरों को तर्पण करने से जीवन में चल रहे पितृ दोष या कुंडली में स्थित पितृ दोष के कारण उत्पन्न या संभावित पारिवारिक, शारीरिक, मानसिक, आर्थिक परेशानियों का दोष निवारण होता है, इसलिए पितृदोष दोष निवारण, उत्तम नौकरी आजीविका, रोजी रोजगार, सुख सौभाग्य, संतति संतान आदि तमाम विषमताओं से मुक्ति के लिए प्रत्येक जातक को पितृ तर्पण, पितृ दान, पितृ भोजन अवश्य कराना चाहिए। इससे पितर खुश व आनंदित होते हैं तथा उनके शुभ आशीर्वाद से सर्व सफलता प्राप्त होती है।
डॉ . अशोक शास्त्री ने बताया कि भाद्रपद पूर्णिमा को दोपहर बाद ऋषि तर्पण किया जाएगा। इस बार सात सितंबर को अगस्त ऋषि तर्पण के साथ पितृ पक्ष की शुरुआत हो रही है जो आगामी 21 सितंबर रविवार तक चलेगी। पहले दिन अगस्त ऋषि को तर्पण किया जाएगा।
दूसरे दिन यानी आठ सितंबर से पितृ तिथियों पर तर्पण, दान आदि करते हुए सभी जातक अपने अपने पिता कि पुण्य तिथि को उनकी तिथि मनाएंगे, लेकिन वैसे जातक जिनको पिता के मृत्यु की तिथि याद नहीं है या उनकी मृत्यु को लेकर किसी प्रकार का संशय है तो 21 सितंबर रविवार को अमावस्या श्राद्ध में भूले-बिसरे व अज्ञात तिथि वाले सभी पितरों का तर्पण व दान करेंगे।
08 सितंबर- प्रतिपदा श्राद्ध
09 सितंबर – द्वितीया श्राद्ध
10 सितंबर – तृतीया श्राद्ध
11 सितंबर – चतुर्थी श्राद्ध
12 सितंबर – पंचमी श्राद्ध
13 सितंबर – षष्ठी व सप्तमी श्राद्ध
14 सितंबर – अष्टमी का तर्पण
15 सितंबर – मातृ नवमी श्राद्ध होगा
16 सितंबर – दशमी
17 सितंबर – एकादशी
18 सितंबर – द्वादशी
19 सितंबर – त्रयोदशी
20 सितंबर- चतुर्दशी
21 सितंबर – पितृ विसर्जन व अमावस्या श्राद्ध
पितृ पक्ष के अष्टमी तिथि को जीवित्पुत्रिका व्रत
पितृ पक्ष के दौरान ही सभी पितरों की प्रसन्नता के लिए जीवित्पुत्रिका व्रत भी किया जाता है। जीवित्पुत्रिका व्रत में मातृ पक्ष के पितरों को पानी दिया जाता है। जीवित्पुत्रिका व्रत आश्विन शुक्ल पक्ष के अष्टमी तिथि को किया जाता है।
13 सितंबर को जीवित्पुत्रिका व्रत का नहाय खाय व 14 को जीमूतवाहन पूजन (जितिया) व्रत किया जाएगा। 15 सितंबर नवमी तिथि को प्रातः 5:27 बजे से 6:27 बजे के बीच ओरी (चौखट) टिक कर व्रत का पारण कर लेना व्रतियों के लिए श्रेयष्कर होगा।
आश्विन कृष्ण पक्ष श्राद्ध पक्ष (पितृ पक्ष) कहलाता है। इस पक्ष में पूर्वजों की श्राद्ध तिथि के अनुसार, पितरों की शांति के लिए श्रद्धा भाव रखते हुए विधि-विधान से श्राद्ध करना चाहिए।
श्राद्ध करने कि 16 आसान विधि
1 .सुबह उठकर स्नान कर देव स्थान व पितृ स्थान को गाय के गोबर लिपकर व गंगाजल से पवित्र करें।
2 . घर आंगन में रंगोली बनाएं।
3. महिलाएं शुद्ध होकर पितरों के लिए भोजन बनाएं।
4. श्राद्ध का अधिकारी श्रेष्ठ ब्राह्मण (या कुल के अधिकारी जैसे दामाद, भतीजा आदि) को न्यौता देकर बुलाएं।
5. ब्राह्मण से पितरों की पूजा एवं तर्पण आदि कराएं।
6. पितरों के निमित्त अग्नि में गाय का दूध, दही, घी एवं खीर अर्पित करें।
7 . गाय, कुत्ता, कौआ व अतिथि के लिए भोजन से चार ग्रास निकालें।
8. ब्राह्मण को आदरपूर्वक भोजन कराएं, मुखशुद्धि, वस्त्र, दक्षिणा आदि से सम्मान करें।
9 . ब्राह्मण स्वस्तिवाचन तथा वैदिक पाठ करें एवं गृहस्थ एवं पितर के प्रति शुभकामनाएं व्यक्त करें।
10. घर में किए गए श्राद्ध का पुण्य तीर्थ-स्थल पर किए गए श्राद्ध से आठ गुना अधिक मिलता है।
11. आर्थिक कारण या अन्य कारणों से यदि कोई व्यक्ति बड़ा श्राद्ध नहीं कर सकता लेकिन अपने पितरों की शांति के लिए वास्तव में कुछ करना चाहता है, तो उसे पूर्ण श्रद्धा भाव से अपने सामर्थ्य अनुसार उपलब्ध अन्न, साग-पात-फल और जो संभव हो सके उतनी दक्षिणा किसी ब्राह्मण को आदर भाव से दे देनी चाहिए।
12. यदि किसी परिस्थिति में यह भी संभव न हो तो 7-8 मुट्ठी तिल, जल सहित किसी योग्य ब्राह्मण को दान कर देने चाहिए। इससे भी श्राद्ध का पुण्य प्राप्त होता है।
13. हिन्दू धर्म में गाय को विशेष महत्व दिया गया है। किसी गाय को भरपेट घास खिलाने से भी पितृ प्रसन्न होते हैं।
14. यदि उपरोक्त में से कुछ भी संभव न हो तो किसी एकांत स्थान पर मध्याह्न समय में सूर्य की ओर दोनों हाथ उठाकर अपने पूर्वजों और सूर्य देव से प्रार्थना करनी चाहिए।
15. प्रार्थना में कहना चाहिए कि, ‘हे प्रभु मैंने अपने हाथ आपके समक्ष फैला दिए हैं, मैं अपने पितरों की मुक्ति के लिए आपसे प्रार्थना करता हूं, मेरे पितर मेरी श्रद्धा भक्ति से संतुष्ट हो’। ऐसा करने से व्यक्ति को पितृ ऋण से मुक्ति मिलती है।
16. जो भी श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करता है उसकी बुद्धि, पुष्टि, स्मरणशक्ति, धारणाशक्ति, पुत्र-पौत्रादि एवं ऐश्वर्य की वृद्धि होती। वह पर्व का पूर्ण फल भोगता है।
पितृपक्ष में श्राद्ध के भोजन को कौए को खिलाने का काफी महत्व होता है। 15 दिनों तक चलने वाले पितृ पक्ष में श्राद्ध का भोजन कौएं, ब्राह्मण गाय को खिलाने की परंपरा है। तो आइए जानते हैं पितृपक्ष में कौए को क्यों दिया जाता है अन्न और जल।
क्या है इसका महत्व
श्राद्ध के समय लोग अपने पूर्वजों को याद करके यज्ञ करते हैं और कौए को अन्न जल अर्पित करते हैं। दरअसल, कौए को यम का प्रतीक माना जाता है। गरुण पुराण के अनुसार, अगर कौआ श्राद्ध को भोजन ग्रहण कर लें तो पितरों की आत्मा को शांति मिलती है। साथ ही ऐसा होने से यम भी खुश होते हैं और उनका संदेश उनके पितरों तक पहुंचाते है।
गरुण पुराण में बताया गया है कि कौवे को यम का वरदान प्राप्त है। यम ने कौवे को वरदान दिया था तुमको दिया गया भोजन पूर्वजों की आत्मा को शांति देगा। पितृ पक्ष में ब्राह्मणों को भोजन कराने के साथ साथ कौवे को भोजन करना भी बेहद जरूरी होता है। कहा जाता है कि इस दौरान पितर कौवे के रूप में भी हमारे पास आ सकते हैं।
इसको लेकर एक और मान्यता प्रचलित है कहा जाता है कि एक बार कौवे ने माता सीता के पैरों में चोंच मार दी थी। इसे देखकर श्री राम ने अपने बाण से उसकी आंखों पर वार कर दिया और कौए की आंख फूट गई। कौवे को जब इसका पछतावा हुआ तो उसने श्रीराम से क्षमा मांगी तब भगवान राम ने आशीर्वाद स्वरुप कहा कि तुमको खिलाया गया भोजन पितरों को तृप्त करेगा। भगवान राम के पास जो कौवा के रूप धारण करके पहुंचा था वह देवराज इंद्र के पुत्र जयंती थे। तभी से कौवे को भोजन खिलाने का विशेष महत्व है।