भक्ति/ आस्थातालरतलाम

अजब गांव गजब की परंपरा : एक ऐसा गांव जहाँ के 200 घरों की दीवारों पर आज तक नहीं है पेंट

दिवाली पर घर के आगे रंगोली तक नहीं बनती

किशनगढ़ ताल

ठाकुर शंभू सिंह तंवर

तहसील मुख्यालय से 15 किलोमीटर दूर स्थित गांव कछालिया अपनी परंपराओं के लिए विख्यात है जहां दीपावली पर्व पर हर कोई अपने ऑफिस हो चाहे घर हो या दुकान उसको रंग रोगन के कार्य के लिये क़रीब १ महीने पहले से तैयारी में लग जाते है लेकिन इस गाँव की परंपराओं का पालन करने के लिए सभी ग्रामीण एकजुट है। इसी परंपरा का पालन करते हुए इन ग्रामीणों ने आज तक अपने घर का रंग रोगन नहीं किया , सुनने में थोड़ा अजीब लगेगा,लेकिन ये सच है।यहाँ केवल सरकारी कार्यालय को छोड़ कर पूरे गांव में कलर पेंट नहीं।

गांव कछालिया में 210 से अधिक मकान है, यहां की जनसंख्या 1450 होने के बावजूद परंपराओं का निर्वहन करते हुए ग्रामीणों ने अपने पक्के मकानो पर भी कलर नहीं कर रखा है।_

मंदिर के सामने अर्थी भी नहीं निकलती

मंदिर के पुजारी चेन पूरी गोस्वामी ने बताया की कछालिया गांव मे स्थित मंदिर काल भैरव मंदिर अति प्राचीन होकर विश्वसनीय है, यहां लोगों की अपनी मुरादे पूरी होती है सभी ग्रामीण भगवान काल भैरव की पूजा अर्चना करते हैं। मंदिर के सामने से कोई भी दूल्हा घोड़ी पर बैठकर नहीं निकलता है,ना ही कोई अर्थी मंदिर के सामने होकर निकलती है। गांव में कोई भी व्यक्ति अपने घर पर कलर करता है तो उसके घर में मौत होती है या फिर बीमार हो जाता है।

दिवाली पर घर के आगे नहीं बनती रंगोली

कुछ दिनों बाद दिवाली आने वाली है हर कोई अपने घरों के आगे रंगोली बनाकर सजावट करता है, लेकिन कछालिया गांव में किसी भी घर के आगे रंगोली नहीं बनाई जाती है। पूरे गांव में कोई भी व्यक्ति काला कपड़ा नहीं पहना है,ना ही गांव में कोई काला जूता पहननता है। घर के ऊपर कवेलू तक नहीं बिछाते हैं, ऐसा करने पर गांव के एक युवा की मौत भी हो चुकी है ऐसा ग्रामीण ही बताते हैं।

बिना छना पानी पीते हैं ग्रामीण

गांव कछालिया के कोई भी ग्रामीण अपने घरों पर पानी इस्तेमाल करते हैं वो बिना छना हुवा होता है, ग्रामीणों का कहना है कि अगर वो पानी छान लेते हैं तो उस पानी में कीड़े पड़ जाते हैं। इस कारण वो बिना चना पानी ही पीते हैं।_ये बातें भले ही किसी फिल्म की कहानी या पुरानी मान्यताओं के समान लगती है, लेकिन आलोट से 10 किलोमीटर दूर ग्राम कछालिया एक गांव ऐसा है जहां ये रिवाज परम्पराएं आज के इस आधुनिक युग में भी जारी हैं,जहां की मौजूदा धार्मिक मान्यताएं सोचने पर मजबूर कर देती है कि यहां कुछ तो है जो विज्ञान की दुनिया से परे है।_

ग्रामीणों से चर्चा की तो पता चला की यहां किसी तरह का अंधविश्वास नही है बल्कि सब लोग बाबा काल भैरव के सम्मान में सदियों से कर रहे हैं।काल भैरव को मान दिया जाता है यहां सिर्फ मंदिर में रंग रोगन किया जाएगा ना कि किसी और के घर में।

 

 

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