आलेख/ विचारइंदौरमध्यप्रदेश

4 साल 3 महीने 8 दिन बाद पत्रकारिता फिर पत्रकारों के बीच में, पत्रकारिता के शिखर पुरुष जीतू भाई सोनी का वनवास हुआ खत्म

 

पंडित प्रदीप मोदी

साहित्यकार/स्वतंत्र पत्रकार

30 नवंबर 2019 को प्रदेश की कमलनाथ सरकार पत्रकारिता के शिखर पुरुष जीतू भाई सोनी और उनके अखबार संझा लोकस्वामी पर हमलावर हुई थी। कारण सिर्फ इतना था कि जीतू भाई सोनी पत्रकारिता धर्म निभाते हुए अपने अखबार संझा लोकस्वामी में हनीट्रेप मामले को लेकर सच का खुलासा कर रहे थे,जिसे कमलनाथ सरकार द्वारा दबाने की कोशिश की जा रही थी।हनीट्रेप मामला ऐसा था, जिसमें बड़े-बड़े नौकरशाह और नेता लिप्त थे, इस मामले ने प्रदेश प्रशासन एवं सरकार को हिलाकर रख दिया था।

संझा लोकस्वामी अपनी प्रकृति के अनुसार सच अपने सुधी पाठकों तक पहुंचा रहा था और कमलनाथ सरकार असहज होती जा रही थी। अपनी तीन दशकीय पत्रकारिता में संझा लोकस्वामी एवं जीतू भाई सोनी खोजी पत्रकारिता के पर्याय बन गए थे। अन्य अखबारों के ग्राहक होते हैं, लेकिन संझा लोकस्वामी के पाठक हुआ करते थे और यह हो पाया था, जीतू भाई सोनी की समर्पित पत्रकारिता के कारण। जीतू भाई सोनी की तीन दशकीय पत्रकारिता को इंदौर ने देखा है,पढ़ा है और समझा है, जिससे यही पता चलता है कि यदि खबर से सम्बंधित दस्तावेज है तो फिर जीतू भाई सोनी के लिए खबर सिर्फ खबर होती थी।

यही कारण रहा कि जीतू भाई सोनी ने पत्रकारिता के माध्यम से ना जाने कितने अपराधी आतंकियों को सलाखों के पीछे पहुंचाया, समाज को नुकसान पहुंचाने वाले सफेदपोशों के नकाब नोचकर समाज के सामने नंगा किया, उनके काले व्यक्तित्व एवं निर्लज्ज चरित्र को उजागर किया। पत्रकारिता में जीतू भाई सोनी को तथा अखबारों की भीड़ में उनके अखबार संझा लोकस्वामी को जो सम्मान एवं स्थान प्राप्त हुआ करता था, वह स्थान,वह सम्मान कभी किसीको हासिल होते नहीं देखा। सोने का चम्मच लेकर पैदा हुए

जीतू भाई सोनी के लिए पत्रकारिता कभी भी दाल-रोटी का साधन नहीं रही, अपितु मिशन रही है और इस कालजयी पत्रकार ने अपने परिवार की बरबादी तक अपने पत्रकारिता मिशन को निभाया है, किसी प्रकार का कोई समझौता नहीं किया है। दलाल, एजेंट, पत्तलकारों के बीच संघर्ष करते पत्रकारों के लिए जीतू भाई सोनी और उनका अखबार, संझा लोकस्वामी, हमेशा प्रेरणा रहा है।

30 नवंबर 2019 से सच्चे पत्रकारों के प्रेरणास्रोत जीतू भाई सोनी को पत्रकारिता से जबरिया वनवास दिला दिया गया था। 30 नवंबर 2019 पत्रकारिता के लिए वह काला दिन था,जब सत्ता के मद में मदहोश लोगों ने सारे नियम-कायदे ताक पर रखकर एक सच्चे पत्रकार को परिवार सहित बरबाद कर दिया था, अफसोस इस बात का कि सारी पत्रकारिता और समाज ने यह बर्बरता मूक दर्शक बनकर देखी थी। पुलिस ने कथित रूप से कैम्प लगाकर जीतू भाई सोनी एवं उनके परिजनों के खिलाफ मुकदमे दर्ज किए थे, एक दो दिन के अंदर ही ढाई तीन दशक से पत्रकारिता कर रहे एक सम्मानित पत्रकार को माफिया घोषित कर दिया था, मकान, आफिस, अन्य प्रतिष्ठान जमींदोज कर दिए थे,

यही नहीं, एक प्रतिष्ठित पत्रकार को एक लाख साठ हजार का इनामी बताकर तत्कालीन कमलनाथ सरकार ने एनकाउंटर करने की तैयारी कर ली थी। उस समय इंदौर प्रेस क्लब सहित तमाम पत्रकार, मनमानी करते मदमस्त अधिकारियों से यह सवाल नहीं कर पाए थे कि दशकों से पत्रकारिता कर रहे जीतू भाई सोनी,दो चार दिन में माफिया कैसे हो गए? इतना कुछ घटित हो गया जीतू भाई सोनी के जीवन में, सत्ता की बर्बरता ने सामाजिक , पारिवारिक, आर्थिक रूप से तोड़कर रख दिया इस पत्रकार को, लेकिन सत्ता के मदमस्त हाथी उनके होंसले को नहीं तोड़ पाए। उन बुलंद होंसलों का ही ऐलान है संझा लोकस्वामी अखबार का पुनः समाज के बीच आकर खड़ा हो जाना।

इंदौर में पाठकों ने ठीक 4 साल 3 महीने 8 दिन बाद, 8 मार्च 2024 महाशिवरात्रि के दिन साधक पत्रकार जीतू भाई का सोनी का अखबार संझा लोकस्वामी पढ़ा। अपने पहले ही अंक में इस कालजयी पत्रकार ने कह दिया कि जहर का घूंट कहते हैं जिसे,वो मैं पी चुका हूं।खौफ खाकर मर जाते हैं लोग,वो हालात मैं हंसकर जी चुका हूं।पत्रकारिता के पर्याय जीतू भाई सोनी और उनका अखबार, एक बार फिर पत्रकारिता के बीच आ गए हैं, उज्जवल भविष्य की कामना के साथ बहुत-बहुत शुभकामना।

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