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मन हमेशा नकारात्मक को ही क्यों पकड़ता है, सकारात्मक को क्यों नहीं?-श्री श्री रविशंकर

मन हमेशा नकारात्मक को ही क्यों पकड़ता है, सकारात्मक को क्यों नहीं?-श्री श्री रविशंकर

 

 

ताल –ब्यूरो चीफ शिवशक्ति शर्मा

श्री श्री रवि शंकरजी : हाँ, यह उसका स्वभाव है| आप किसी की दस तारीफें करें और एक अपमान करें, तो मन उस अपमान को पकड़ के बैठ जाता है| जैसे ही आप इसके प्रति सजग हो जाते हैं, तो आप में परिवर्तन आ जाता है| जब आप इसके प्रति सजग नहीं होते, तब आप फँस जाते हैं और इसमें बह जाते हैं| लेकिन एक अच्छे वातावरण में, जहाँ उच्च प्राण शक्ति और उच्च ऊर्जा शक्ति है, वहां ऐसा नहीं होता|

गुरु आते हैं, आपकी प्राण शक्ति बढ़ाने के लिए| प्राण शक्ति और ऊर्जा शक्ति गुरु की भौतिक उपस्थिति में बढ़ जाती हैं| जब प्राण शक्ति ज्यादा होती है, तब नकारात्मकता कम होकर विलुप्त हो जाती है|

और यदि आप लंबे समय से निरंतर साधना कर रहें हैं, तब भी नकारात्मकता आपको छू नहीं सकती| आप इतने शक्तिशाली हों जाते हैं, कि आप जहाँ जाते हैं, वहां की प्राण शक्ति आप बनाते हैं!

अगर दिए की लौ बहुत ऊंची होती है, तो हवा उसे बुझा नहीं सकती| लेकिन अगर छोटी होती है तो हवा उसे बुझा देती है|

आपको ज़रूरत है ‘बुद्ध’, ‘संघ’ और ‘धर्म’ की| सर्वप्रथम आप बुद्ध या परम ज्ञानी के पास जाते हैं, आप उनके साथ बैठते हैं, ध्यान करते हैं| यह संघ के सामान है, एक समूह में ध्यान करना, उससे भी प्राण शक्ति बढ़ जाती है| जब ये दोनों ही उपलब्ध न हों, तब धर्म, यानि बिलकुल निष्पक्ष हो जाये| सब कुछ छोड़ दे, और अपनी ‘आत्मा’, अपने स्वभाव में रहे| यह भी प्राण शक्ति बढ़ाता है|तीन तरीकें हैं, और ये तीनों एक से हैं|

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