आलेख/ विचारमंदसौरमध्यप्रदेश
चीते पालने की बजाय क्यों न गोपालन पर ओर अधिक ध्यान दिया जाये
अहिंसा परमोधर्म, परसपरो पग्रहो जीवानाम
(भरत कोठारी- डायरेक्ट, श्री गोपालकृष्ण गौशाला मंदसौर )
अहिंसा सबसे बड़ा धर्म है और सभी जीवों का सभी जीवों पर एक दूसरे का उपकार है। सभी जीव प्राणी मात्र एक दूसरे के काम आते है।
एक प्रदेश स्तरीय समाचार पत्र में प्रकाशित समाचार को पढ़कर मन में भाव आये कि जो प्राणी (चीते) अभी है ही नहीं उसकी चिंता हो रही है और जो अभी हाजर अवारा सड़कों पर घुम रहे है, भूखे प्यासे (गौवंश) उनको व्यवस्तीत रखने, अवेरने की सरकार के पास कोई प्लानिंग नहीं बन रही है या नहीं है। आज समाचार पत्र में पढ़ा की कुछ ही चिते (जो कि भारत में है ही नहीं बाहर से लाये जायेंगे) उनको पालने के लिये हजारों चीतल, हिरण को उनके भोजन हेतु लाया जायगा। सैकड़ों बीघा जमीन को सुरक्षित कर मांसाहारी जीवों की पालने का नया काम कर रहे है।
मन में बहुत दुख हुआ। हम शाकाहारी प्राणी, शाकाहारी जीवों को पालने लिये इतनी जमीन पर घास, चारे कोई बाजरा की खेती करवाकर हमारा गोधन सुरक्षित कर सकते है जिससे उनके खाने की व्यवस्था हो जायेगी।
चीते पालने से हमारे समाज को, परिवार को, देश को क्या लाभ होगा? यह सोचनीय है।
गांधीसागर अभ्यारण में चीते पालना ही जरूरी है क्या ? ये चीते गांव की ओर आयेंगे और गांवों में निवासरत लोगों व वहां के मवेशियों को खायेंगे। कई परेशानियां खड़ी करेंगे। क्या चीते पालने से ही हमारे अभ्यारण्य की शोभा बढ़ेगी।
जो जीव (जानवर) हमारे यहां है ही नहीं, बाहर से लाकर पालना उनके लिये डॉक्टर रखना, देखभाल के लिये ट्रफ लगाना, सिक्यूरिटी के लिये इलेक्ट्रीक फेन्सींग बाड़ा बनाना, अन्य उच्च अधिकारी रखना कुल 10-12 चीतों के लिये कितने जीवों की हिंसा करवाना और सरकारी खजाने से कितना रूपया इनकी व्यवस्था में लगाना, ये सब कहां तक उचित है।
एक और ग्रामीण क्षेत्रों मेें मनुष्य के लिये चिकित्सक उपलब्ध नहीं है। दूसरी और इन चीतों के लिये चिकित्सक की व्यवस्था की जा रही है। जो अनुचित ही मानी जायेगी। चिता प्रोजेक्ट गांधीसागर अभ्यारण में आने से क्या मंदसौर जिले का नाम ऊंचा हो जायेगा ?
हमारा तो जिम्मेदारों से अनुरोध है कि इस प्रोजेक्ट को बंद कर करोड़ों रूपये और हजारों जीवों को बचाया जा सकता है। सरकार से निवेदन है कि, आप ये रूपये, दिमाग, अधिकारी, चिकित्सक, मेहनत, शक्ति गौवंश को बचाने व उनके संरक्षण में लगा देवे तो दूध, गोबर, आदि भी मिलेगा। गोबर खाद का बड़ा उद्योग लगाया जा सकेगा तथा गौमाताओं को वध होने से बचाया जा सकेगा।
गाय पशुपालन विभाग या वन विभाग इनमें से कौन से विभाग के अंतर्गत आती है। यह भी स्पष्ट होना चाहिये।
किसी हजारों जान लेकर किसी को 10-12 की जान बचाना उचित नहीं है। सरकार, जनप्रतिनिधियों व अधिकारियों को गोपालन की ओर ध्यान देना चाहिये।
एक प्रदेश स्तरीय समाचार पत्र में प्रकाशित समाचार को पढ़कर मन में भाव आये कि जो प्राणी (चीते) अभी है ही नहीं उसकी चिंता हो रही है और जो अभी हाजर अवारा सड़कों पर घुम रहे है, भूखे प्यासे (गौवंश) उनको व्यवस्तीत रखने, अवेरने की सरकार के पास कोई प्लानिंग नहीं बन रही है या नहीं है। आज समाचार पत्र में पढ़ा की कुछ ही चिते (जो कि भारत में है ही नहीं बाहर से लाये जायेंगे) उनको पालने के लिये हजारों चीतल, हिरण को उनके भोजन हेतु लाया जायगा। सैकड़ों बीघा जमीन को सुरक्षित कर मांसाहारी जीवों की पालने का नया काम कर रहे है।
मन में बहुत दुख हुआ। हम शाकाहारी प्राणी, शाकाहारी जीवों को पालने लिये इतनी जमीन पर घास, चारे कोई बाजरा की खेती करवाकर हमारा गोधन सुरक्षित कर सकते है जिससे उनके खाने की व्यवस्था हो जायेगी।
चीते पालने से हमारे समाज को, परिवार को, देश को क्या लाभ होगा? यह सोचनीय है।
गांधीसागर अभ्यारण में चीते पालना ही जरूरी है क्या ? ये चीते गांव की ओर आयेंगे और गांवों में निवासरत लोगों व वहां के मवेशियों को खायेंगे। कई परेशानियां खड़ी करेंगे। क्या चीते पालने से ही हमारे अभ्यारण्य की शोभा बढ़ेगी।
जो जीव (जानवर) हमारे यहां है ही नहीं, बाहर से लाकर पालना उनके लिये डॉक्टर रखना, देखभाल के लिये ट्रफ लगाना, सिक्यूरिटी के लिये इलेक्ट्रीक फेन्सींग बाड़ा बनाना, अन्य उच्च अधिकारी रखना कुल 10-12 चीतों के लिये कितने जीवों की हिंसा करवाना और सरकारी खजाने से कितना रूपया इनकी व्यवस्था में लगाना, ये सब कहां तक उचित है।
एक और ग्रामीण क्षेत्रों मेें मनुष्य के लिये चिकित्सक उपलब्ध नहीं है। दूसरी और इन चीतों के लिये चिकित्सक की व्यवस्था की जा रही है। जो अनुचित ही मानी जायेगी। चिता प्रोजेक्ट गांधीसागर अभ्यारण में आने से क्या मंदसौर जिले का नाम ऊंचा हो जायेगा ?
हमारा तो जिम्मेदारों से अनुरोध है कि इस प्रोजेक्ट को बंद कर करोड़ों रूपये और हजारों जीवों को बचाया जा सकता है। सरकार से निवेदन है कि, आप ये रूपये, दिमाग, अधिकारी, चिकित्सक, मेहनत, शक्ति गौवंश को बचाने व उनके संरक्षण में लगा देवे तो दूध, गोबर, आदि भी मिलेगा। गोबर खाद का बड़ा उद्योग लगाया जा सकेगा तथा गौमाताओं को वध होने से बचाया जा सकेगा।
गाय पशुपालन विभाग या वन विभाग इनमें से कौन से विभाग के अंतर्गत आती है। यह भी स्पष्ट होना चाहिये।
किसी हजारों जान लेकर किसी को 10-12 की जान बचाना उचित नहीं है। सरकार, जनप्रतिनिधियों व अधिकारियों को गोपालन की ओर ध्यान देना चाहिये।