दुधाखेड़ी माताजी में लगेगा भक्तों का मेला,भक्तों का मानना है कि यहां आने लकवा रोगी ठीक हो जाते और मनोकामना पूरी होती
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03 अक्टूबर से नवरात्र होगी आरंभ
भानपुरा। तहसील क्षेत्र के करीब 12 किमी दूर ग्राम बाबुल्दा के समीप व गरोठ से 15 किमी सड़क मार्ग से लगे केशरबाई महारानी दुधाखेड़ी माता जी के नाम से प्रसिद्ध मंदिर है।नवरात्रि के समय दुधाखेड़ी देवी के नौ रूप देखने को मिलते हैं।रोज नए रूप में देवी अपने भक्तों को दर्शन देती हैं।
भक्तों का कहना है कि इस प्रसिद्ध मंदिर की मान्यता है कि जो भी लकवा पैरालिसिस से ग्रसित रोगी यहां पर आते हैं और कुछ दिन ठहरते हैं तो रोग दूर हो जाते हैं। दुधाखेड़ी माताजी पहुंचने के लिए भवानी मंडी से भी कई लोग पहुंचते हैं यह प्रसिद्ध मंदिर राजस्थान और मध्य प्रदेश के बीच बना है कई मान्यताओं से परिपूर्ण मंदिर में नौ दिनों तक भक्तों का तांता लगा हुआ रहता है काफी संख्या में दूर दराज से माता के भक्त आकर दुधाखेड़ी माता जी के दर्शन करते हैं यहां पर आने से भक्तों की मनोकामना पूर्ण होती है हजारों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। ऐसी लोगों की मान्यता है कि यहां लकवा के मरीज ठीक हो जाते हैं।
माताजी को लेकर रोचक कहानी है। कहते हैं एक लकड़हारा पेड़ काट रहा था। तभी एक पेड़ से दूध की धारा बह निकली और देवी वहां पर प्रकट हुईं उसी समय से इस जगह का नाम दुधाखेड़ी माताजी पड़ गया। यह मंदिर लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है।इसमें देवी पंचमुखी रूप में विराजित हैं। प्रतिमा के पास ही एक अखण्ड ज्योत जल रही है।ऐतिहासिक दृष्टि से यहां 13 वीं सदी से निरंतर पूजा-अर्चना का प्रमाण मिलता है। इसके साथ ही मराठा काल में लोक माता अहिल्याबाई ने धर्मशाला बनवाई।कोटा के मुहासिब आला, झाला जालिम सिंह की यह आराध्या देवी रहीं।इन्होंने यहां धर्मशाला और ग्वालियर के राजा सिंधिया ने भी यहां धर्मशाला बनवाई।मंदिर में पहले बलि भी दी जाती थी लेकिन तकरीबन 40 साल पहले आकाशीय बिजली गिरने से बलि प्रथा हमेशा के लिए बंद हो गई।उसके बाद श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ती चली गई। यहां दोनों नवरात्रि के समय मेला लगता है। धार्मिक पर्यटन की दृष्टि से मालवा अंचल का यह धर्म संस्कृति का अनुपम स्थल है।