श्राद्ध पक्ष के 15 दिनों तक बालिकाओं के द्वारा लोक संस्कृति की सुंदर परंपरा “संजा”
पारंपरिक संजा माता के पूजन त्योहार में घर के दरवाजे की दीवार पर गाय के गोबर से सुंदर कलाकृति उकेरी जाती है और उसे गेंदे, हार सिंगार, गुलतेवड़ी के फूलों से सजाया जाता है।शाम के 4 बजे से रात के 8-9 बजे तक घर के आसपास की सभी नन्हीं सखी सहेलियां और छोटे भाई भी इस आयोजन में व्यस्त,मस्त रहती है। इस छोटे से पाक्षिक आयोजन से अनेकानेक कलाकार जन्म लेते है , जिनमें एकाग्रता,तल्लीनता, कबाड़ से जुगाड, गायन, वादन,आपसी सहयोग,और सामाजिक समरसता के नन्हें अंकुरण बाल मन में रोपित हो जाते हैं। गीतों के माध्यम से सन्जा माता के प्रति समर्पण का भाव जागता है जो कालांतर में ईश वन्दना और प्रकृति रूपी परमात्मा से स्वतह ही जोड़ देता है।
मध्यप्रदेश के मालवा अंचल में लोक संस्कृति की सुंदर परंपरा है संजा,जो कि श्राद्ध पक्ष के 15 दिनों तक बालिकाओं के द्वारा मनाई जाती है। जिसमें घर की मिट्टी की दीवार पर गाय के गोबर से सुंदर कलाकृति उकेरी जाती है और उसे गेंदे, हार सिंगार, गुलतेवड़ी के फूलों से सजाया जाता है…..शाम के 4 बजे से रात के 8-9 बजे तक घर के आसपास की सभी नन्हीं सखी सहेलियां (और छोटे भाई भी) इस आयोजन में व्यस्त,मस्त रहती हैं।
इस छोटे से पाक्षिक आयोजन से अनेकानेक कलाकार जन्म लेते है , जिनमें एकाग्रता,तल्लीनता, कबाड़ से जुगाड, गायन, वादन,आपसी सहयोग,और सामाजिक समरसता के नन्हें अंकुरण बाल मन में रोपित हो जाते हैं।
गीतों के माध्यम से सन्जा माता के प्रति समर्पण का भाव जागता है जो कालांतर में ईश वन्दना और प्रकृति रूपी परमात्मा से स्वतह ही जोड़ देता है…
आइए हम इस मालवा की संस्कृति के नन्हें से आयोजन को सहेजे,सराहे और समाज के उस वर्ग को भी इससे परिचित करवाए जो इससे अनभिज्ञ है..
इसके सुंदर गीत के मुखड़े हैं…
संजा बई का लाडा जी लुगड़ो लाया जाड़ा जी,
छोटी सी गाड़ी लुडकती जाए , जीमे बैठा संजा बई,
काजल टीकी लो बई काजल टिकी लो,
संजा तू थारे घर जा की थारी बई मारेगी…… कूटेगी डेली में डचकोड़ेगी…..चांद गयो गुजरात, हिरणी का बड़ा बड़ा दांत, कि छोरा छोरी डरपेगा….
जय हो संजा माई की
मिट्टी के रंग लोक जीवन लोक संस्कृति लोक कलाएँ
लोककला है “संजा”- इस लोककला पर्व को कुँवारी लड़कीयाँ श्राद्ध पक्ष में हर वर्ष भादवा माह की पूर्णिमा से अश्विन माह की अमावस्या तक अच्छा वर पाने के लिए संजा पूजन एवं व्रत-उपवास के माध्यम से करती है । जिस प्रकार पार्वती जी ने भगवान शंकर को संजा वृत के द्वारा प्राप्त किया था ।