आलेख/ विचारमंदसौर जिलाशामगढ़

युवाओं कि दिशा भ्रम,‌फायनेंस का बढ़ता प्रचलन, बर्बाद कर रहा युवाओं को !

युवाओं का दिशा भ्रम,‌फायनेंस का बढ़ता प्रचलन, बर्बाद कर रहा युवाओं को !

-ओमप्रकाश संघवी 

संपादक शामगढ़ जिला मंदसौर 

ब्याज पर रुपया देने वाले लोगो को सरकार व समाज-‘सूदखोर’ व ‘ब्याजखोर’ कहकर अपनानित करते है, बदनाम करते, लेकिन कुकरमुत्तो की तरह फैल रही फायनेंस कंपनियो को मनमाना ब्याज वसूल ने व और मनमानी पेनेल्टियाँ लगाने पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है। बहुत कम कागज व बहुत कम औपचारिकताओं एवं छिपी हुई शर्तों के चलते आसानी से मिलने वाले ऋण ने युवाओं को लालच में डाल दिया, जिसका परिणाम परिवार भुगत रहे हैं। बैंक, सोसायटी एवं फायनेंस कंपनियां आदि संस्थाओं से एक ही व्यक्ति लोन लेकर जाल में निरंतर फंस जा रहा है। किश्त चुकाने के लिये, लोन लेने वालों का भविष्य क्या होगा, भगवान ही जाने।

हमने, गत अंक में क्रिकेट सट्टा, मोबाईल गेम व वायदा बाजार में बर्बाद हो रहे युवाओं को सचेत किया था, आज हम फायनेंस कम्पनियों के क्रियाक लाप उजागर कर रहें हैं, जिसमें युवा उलझते चले जा रहे हैं।

सरकारी बैंक व बड़ी नीजि बैंक उत्पादकता पर लोन देती है, जिसमें व्यक्ति आर्थिक रुप से संपन्न हो। बैंक यह देखती है कि, जिसे लोन दिया, उसका आमदनी का जरिया क्या और कितना हैं। लोन देने के लिये बैंक प्रोजेक्ट रिपोर्ट देखती है, लेकिन आर. बी. आई. के नियमो के अधीन ही नॉन बैंकिंग फायनेंस कंपनियां (NBFC) अपनी कंपनी चलाने के लिये कंजूमर लोन देती है, ऋण बांटने के लिये युवाओं की टीम बनाती है, और रिकवरी (वसूली) के लिये उनकी टीम ‘साम-दाम-दण्ड-भेद’ की नीति अपनाकर ‘पठानी वसूली’ करने पर आमादा भी होती है। अब जब ऐसी कंपनियां-आमदनी अठन्नी- खर्चा रुपय्या वालो को मात्र आधार कार्ड के आधार पर उधार दे देती, और यह नही देखेगी कि इसकी रिकवरी कैसे होगी, तो विवाद तो बढ़ेंगे ही। ये फायनेंस कंपनियाँ गैर जरुरी वस्तुओं पर लोन देकर युवाओं को आधुनिकता के भ्रम जाल में भी उलझा रही है। बड़े-बड़े मोबाईल खरीदकर युवा अपना पैसा और समय तो बर्बाद कर रहा है, कर्जदार बनकर अपना सुख-चैन भी खो रहा है। मोबाईल या अन्य वस्तुओं की भांति मोटर साईकल पर-आधार कार्ड लाओं और गाड़ी ले जाओं-की तर्ज पर लोन आसानी से दिये जा रहे हैं। 1 लाख की गाड़ी खरीदने वाले को यह पता नहीं है कि ये कर्जा कैसे उतारेंगे? और फायनेंस कंपनियां भी इस बात को अनदेखा कर रही है। कंजूमर लोन के नाम पर धड़ाधड़ उधार पैसा दे देती है, और वसुली के लिये फौज खड़ी कर लेती है। गांवो में आये दिन विवाद खड़े हो रहे हैं। झगड़ो और मारपीट के मामले सामने आ रहे हैं। कर्जदार या तो छिपते फिरते हैं या झगड़े पर उतारू हो रहे हैं, जिसमें उनका परिवार भी परेशानी में आ रहा है। इस कारण बढ़ते तनाव में गलत धंधों एवं लत के उदाहरण भी सामने आ रहे है।

और… समूह लोन, महिलाएँ हो रही प्रताड़ित !

सारे देश की भांति समूह लोन का जाल क्षेत्र में भी फैल रहा है। महिलाओं को सशक्त बनाने के लिये समूह लोन की योजनाएँ यही फायनेंस कंपनियां चला रही है। छोटे-छोटे शहरो में गली-मोहल्ले में पचासो फायनेंस कंपनियां समूह लोन बांट रही है, लेकिन ये अनुत्पादक ऋण महिलाओं को सशक्त बनाने की बजाय परेशानी में डाल रहा है। शहर हो या गांव कई उदाहरण सामने आ रहे हैं। लोन की राशि पुरुषो के हाथ में चली जाती है, और ऋण अदायगी समय पर न होने पर महिलाओं को शर्मिन्दगी झेलना पड़ती है, और प्रताड़ित होना पड़ रहा है।

दबी जुबान से लोग बता रहे हैं कि कहीं-कहीं समूह लोन के वितरण से लेकर वसूली तक भ्रष्टाचार और कदाचार के मामले देखने को मिलते हैं। कहीं – कहीं तो समूह लोन परिवारो में दरार तक डाल रहा है, और ‘महिलाओं को

मजबूत’ बनाने के बजाय ‘मजबूर’ कर रहा है।

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