डोल ग्यारस पर छोटे काशी में भगवान बाल गोपाल ने किया सरोवर में स्नान, दिए भक्तों को दर्शन

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राजवाड़ा से अमृत कालीन बेला में भगवान विराजें डोल में, गार्ड ऑफ़ ऑनर देकर भगवान को दी सलामी


धर्म कि नगरी छोटी काशी में प्राचीन रियासत के समय से प्रचलित परंपरा अनुसार इस वर्ष भी नगर के राजवाड़ा स्थित लक्ष्मीनाथ मंदिर, श्रीराम जानकी मंदिर से शुभ मुहूर्त शाम 5 बजे अमृत कालीन बेला में पालकी डोल में महाराज कुमार श्री पुरंजय सिंह राठौर के प्रतिनिधि रविन्द्र सिंह राठौर ,जियोस अनिल पांडेय नपं अध्यक्ष मनोज शुक्ला उपाध्यक्ष सुमित रावत एवं गणमान्य जनों कि उपस्थिति में पुजारी श्री प्रमोद मोड़ श्री भूपेन्द्र मोड़ द्वारा बाल गोपाल को विराजमान कराया गया इस अवसर पर परंपरा अनुसार पुलिस प्रशासन द्वारा गार्ड ऑफ़ ऑनर देकर भगवान को सलामी दी ।तत्पश्चात बेंड बाजें ढोल ढमाके ताशे कि मधुर ध्वनि के साथ भगवान बाल गोपाल कि डोल लेकर नगर कि प्रस्थान प्रारंभ हुआ इस अवसर पर नगर के सदर बाजार जगदीश मंदिर श्री कृष्ण मंदिर राम मोहल्ला स्थित राम मंदिर आजाद चौक स्थित गोवर्धन नाथ मंदिर हाथी मोहल्ला स्थित चारभुजा नाथ मंदिर, नंदवाना घाटी सेन समाज बलभद्र जी मंदिर, बलाई मोहल्ला स्थित विष्णु मंदिर रविदास मोहल्ला स्थित श्री राम जानकी मंदिर सहित नगर के लगभग 15 से अधिक स्थान से बाल गोपाल मंदिरों से पालकी में विराजमान होकर नगर में भ्रमण करते हुए सैकड़ों कि संख्या में भक्त दर्शनार्थी भजन कीर्तन तथा आलकी और पालकी जय कन्हैया लाल जै जै श्रीकृष्णा आदि जयकारों शंखनाद के साथ तालाब किनारे पर पहुंचे जहां पर भगवान को स्नान कराया नव पोशाक धारण करवाकर भगवान कि महा आरती कर महा प्रसादी का वितरण किया गया। इसके पश्चात पुनः तालाब से प्रस्थान कर अपने अपने मंदिर स्थलों पर पहुंचे जहां वेवाण से बाल गोपाल को झुलें में विराजमान कर आरती कर सर्वे भवन्तु सुखिन कि कामना कि गई।



डोल ग्यारस का महत्व –
उल्लेखनीय है कि श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के बाद आने वाली एकादशी को डोल ग्यारस कहा जाता है. माता यशोदा ने श्रीकृष्ण के जन्म के अठारहवें दिन उनकी जल घट पूजा की थी. इस दिन को ‘डोल ग्यारस’ के रूप में मनाया जाता है. जलवा पूजा के बाद ही अनुष्ठान शुरू होते हैं. कुछ जगहों पर इसे सूरज पूजा कहा जाता है तो कुछ जगहों पर इसे दश्तन पूजा कहा जाता है. जलवा पूजा को कुआं पूजा भी कहा जाता है।चातुर्मास के दौरान भगवान विष्णु क्षीर सागर में योग निद्रा में चले जाते हैं. इस दौरान भगवान शिव को सृष्टि के संचालन का कार्य सौंपा गया है. इन 4 महीनों में लगभग 8 एकादशियां आती हैं और प्रत्येक एकादशियों का विशेष महत्व होता है. जहां तक डोल ग्यारस की बात है तो इस दौरान भगवान विष्णु अपना करवट बदलते हैं. इसी कारण से इसे परिवर्तिनी एकादशी कहा जाता है।