वर्षा काल में हो रहे जलजन्य हादसों के पीछे शासकीय व्यवस्थाएं और मानवीय लापरवाही है जिम्मेदार


लेखक विचारक एवं वरिष्ठ पत्रकार मंदसौर
इस वर्ष मानसून सत्र में चहुं और प्रचुर वर्षा हो रही है लेकिन जलाशयों में अतिरिक्त जल भराव के कारण बाढ़ और अन्य जल आपदाओं का भी सामना कई स्थानों पर लोग कर रहे हैं। प्राय: यह देखा जाता है कि यह जलजन्य हादसे शासकीय व्यवस्थाओं की कमजोरी के तो एक बहुत बड़े कारण हैं ही किंतु मानवीय लापरवाही भी इन हादसों को और अधिक बढ़ा रही है।
यह देखा या जा रहा है कि जिन पुल पुलियाओं पर वर्षा का पानी जमा हो जाता है और जैसे ही कुछ जल स्तर कम होता है बहाव तो रहता ही है उसी दौरान लोग इतने उतावले रहते हैं कि अपनी जान की परवाह किए बिना पुल पुलियाओं पर बहते पानी में भी अपने वाहन निकलते हैं दुष्परिणाम यह होता है कि पानी के वेग से कई जगहों पर ऐसी दुर्घटनाएं और हादसे हुए हैं कि लोग वहां वाहन सहित पानी में बह गए। डूब गए, मर गए।
तो ऐसी स्थिति में जितनी दोषी शासन की व्यवस्थाएं हैं उतनी ही दोषी मानवीय लापरवाही भी है। कई स्थानों पर आम जनों की राहत के लिए नदियों,नालों तालाबों पर पुलियां बनाने के प्रस्ताव पास कर दिए जाते हैं भूमि पूजन भी हो जाता है मिडिया में सुर्खियां भी बटोर ली जाती है किंतु वर्षों तक काम शुरू नहीं होता और प्रचारात्मक सुर्खियां बटोरने के बाद भी वहां पर जब निर्माण नहीं होता है और फिर इस तरह की दुर्घटनाएं होती है तो तय बात है कि शासन की व्यवस्थाओं पर गंभीर सवाल उठते हैं जो लाजमी है।लेकिन देखा यह जाता है कि तमाम तरह की सूचना संकेत देने और पुलिस के पहरे के बावजूद भी लोग उनके समझाने के बाद भी नहीं मानते हैं और जब पुल या पुलिया पर पानी होता है तो उस पर से अपने दो पहिया चार पहिया वाहन निकाल लेते हैं कुछ वाहन सुरक्षित निकल जाते हैं अचानक तेज बहाव से कुछ वाहनों का संतुलन बिगड़ जाता है और पानी के तेज बहाव में वह बह जाते हैं। ऐसी दुर्घटनाएं पूरे देश में कई जगहों पर हो रही है।इस दिशा में शासन और जनता दोनों को ही गंभीर चिंतन मनन करना चाहिए।इन दुर्घटनाओं और जल जन्य हादसों को रोकने के लिए केवल शासकीय व्यवस्थाओं की ही नहीं बल्कि मानवीय जिम्मेदारियां भी जरूरी है।