आध्यात्मतालरतलाम

हर व्यक्ति सफल होना चाहता है, शिखर चाहता है,परन्तु विवेक का प्रयोग नहीं करता-पं. भीमा शंकर शर्मा शास्त्री

 

किशनगढ़ ताल

ठाकुर शंभू सिंह तंवर

समिपस्थ ग्राम मनुनिया महादेव में महादेव मंदिर परिसर में सप्त दिवसीय भागवत कथा में पंडित भीमा शंकर शर्मा शास्त्री ने भागवत कथा के पंचम दिवस की कथा में बनाता

गुरु’ शब्द दो अक्षरों से मिलकर बना है| ‘गु’ शब्द का अर्थ होता है- अंधकार तथा ‘रु’ का अर्थ है- तेज, प्रकाश। इस प्रकार ‘गुरु’ शब्द का अर्थ हुआ, वह व्यक्ति, जो अपने तेज से, अपने प्रकाश से सामने वाले के अज्ञान के अंधकार को दूर कर सके।

सच्चिदानंद में चित् का भाव है-विचारणा, चेतना। भावना भी इसी का स्वरूप हैं। हमारा अंत:करण इसे मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार के रूप में देखता है। मनोविज्ञानिक इसका वर्गीकरण चेतन, अचेतन और विशिष्ट चेतन के रूप में करते हैं।मृत्यु के बाद भी उसका अंत नहीं होता।

जड़ पदार्थ और प्राणि समुदाय के मध्य मौलिक अंतर एक ही है-चेतना का न होना। जड़ पदार्थो के परमाणु भी गतिशील रहते हैं। उनमें भी उत्पादन, अभिवर्धन और परिवर्तन की प्रक्रिया चलती रहती है, किंतु निजी ज्ञान का सर्वथा अभाव रहता हैं

हे अर्जुन! लोग जिस तरह से भी मुझे याद करते हैं, मैं भी उन्हें उसी तरह से याद करता हूं, क्योंकि सभी इंसान हर तरह से मेरे दिखाए रास्ते पर ही चलते हैं। धर्म कोई भी हो परमात्मा तो एक ही हैं और भक्त जिस भाव से उनको याद करता है, भगवान को भी वैसा ही अनुभव होने लगता है।

भगवान सभी रूपों में सबके भीतर मौजूद हैं। सृष्टि में ऐसा कुछ भी नहीं, जिसमें भगवान न हो। । इसलिए जो सच्चे ह्रदय से याद करते हैं, वे मोक्ष पाकर हमेशा के लिए उनके पास चले जाते हैं।

आसक्ति का अभाव ही तो मुक्ति है | दुख का कारण हमारी अनंत इच्छाएं (आसक्ति) ही तो हैं। जब इच्छाएं पूरी नहीं होतीं तब हम दुखी हो जाते हैं। प्रयास करके इच्छाओं को कम करना चाहिए। साधकों को इस जीवन में ही सचेत होकर निरंतर आत्म-चिंतन करना चाहिए।

जीवन की समापन बेला आने से पहले ही प्रभु प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करें।जीवन में सत्कर्मों को अपनाएं। पाप कर्मों से विमुख हो जाएं। कर्म सिद्धांत अटूट है। किए गए अपराधों के दुष्परिणामों को तो भुगतना ही होगा। इसलिए प्रयास करना चाहिए कि गलत आचरण न हो। भक्ति, ध्यान का मार्ग अपनाएं। आराधना द्वारा भगवान को अपना बनाएं। आपकी मुक्ति सुनिश्चित है।

गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि त्याग से तत्काल शांति की प्राप्ति होती है और जहां शांति होती है, वहीं सच्चा सुख होता है। त्याग की भावना अत्यंत पवित्र है। त्याग करने वाले पुरुषों ने ही संसार को प्रकाशमान किया है। जिसने भी जीवन में त्यागने की भावना को अंगीकार किया, उसने ही उच्च से उच्च मानदंड स्थापित किए हैं। सच्चा सुख व शांति त्यागने में है। हमे उन सभी आसक्तिओं को छोड़ना होगा, जो मानव जीवन को संकीर्णता की ओर ले जाने वाली होती है। त्याग से मनुष्य ईश्वर को प्राप्त कर सच्चे सुख व ।शांति का लाभ पाता है।

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