तुलसी जयंती पर विशेष- सांप को रस्सी समझने वाले महात्मा तुलसीदास का सच
तुलसी जयंती पर विशेष- सांप को रस्सी समझने वाले महात्मा तुलसीदास का सच
–लेखक रमेश चंद्र चंद्रे
शिक्षाविद मंदसौर मध्यप्रदेश
गोस्वामी तुलसीदास का जन्म अभुक्त नक्षत्र में हुआ था। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले बालक का पिता बालक का मुंह नहीं देखता। ऐसा कहा जाता है कि इसमें बालक का चेहरा देखने से परिवार में अनिष्ट की संभावनाएं बनती है।
उस काल में ज्योतिषियों द्वारा तुलसीदास जी के पिता को कुछ ज्यादा ही भ्रमित कर दिया गया, इस कारण केवल 6 वर्ष की आयु में ही तुलसीदास जी को घर से बाहर निकाल दिया, इस उम्र में तुलसीदास को जिन्हें उस समय भोला कहा जाता था, इतना ज्ञान था कि, एक वयस्क को जितना होना चाहिए इसलिए उनके बारे में गांव में यह चर्चा होती थी कि, इस उम्र में इसे इतना ज्ञान प्राप्त है जैसे किसी 32 दांत वाले मनुष्य को होता है।
घर से निकाल देने के बाद तुलसीदास सीधे अयोध्या की ओर चल पड़े और वहां उन्होंने अपने गुरु से शिक्षा प्राप्त करने के बाद वाराणसी की ओर प्रस्थान किया।
गोस्वामी तुलसीदास जी के लिए आमतौर पर यह प्रचारित किया गया है कि वह पत्नी के प्रेम में इतने आसक्त हो गए थे की भरी बारिश में नदी में बहते हुए मुर्दे को नाव समझ बैठे और सांप को रस्सी समझ उसे पकड़ कर ससुराल के भवन में पहुंच गए।
उक्त बात कोरी बकवास के सिवा कुछ नहीं है क्योंकि तुलसीदास जी इतने विद्वान व्यक्ति थे कि वे मात्र 6 वर्ष की आयु में अयोध्या में अपने गुरु के पास रहकर और उसके बाद लगातार 29 वर्ष की आयु तक बनारस में उन्होंने वेद और पुराणों का अध्ययन करते हुए संस्कृत, हिंदी तथा कुछ कुछ उर्दू भाषा का भी ज्ञान प्राप्त किया क्योंकि उस समय सामान्य बोलचाल में उर्दू का प्रयोग भी होता था ।
29 वर्ष की आयु में तुलसीदास जी का विवाह रत्नावली नाम की कन्या से हुआ अधिक उम्र में विवाह होने के कारण पत्नी के प्रति आकर्षण स्वाभाविक था वर्षाकाल का समय था और तुलसीदास जी की पत्नी मायके में थी उसकी अधिक याद आने के कारण वह भरी बारिश में ससुराल की और चल दिए तथा उन्होंने तैरकर नदी पार की ना कि मुर्दे को नाव समझकर एवं पिछले रास्ते से वट वृक्ष की जड़ को पकड़कर रत्नावली के कक्ष में पहुंच गए ना कि सांप को रस्सी समझ कर, किंतु रत्नावली को इस ढंग से उनका आना अच्छा नहीं लगा क्योंकि एक जमाई को अपने ससुराल में इस तरीके से नहीं आना चाहिए। उसने बहुत समझाया कि आप जाओ किंतु तुलसीदास जी अपनी पत्नी को अपने साथ चलने के लिए राज़ी करते रहे पर वह नहीं मानी और पत्नी से कहा कि मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता इस अत्यधिक आसक्ति होने के कारण पत्नी ने तुलसीदास जी को कहा कि- ‘‘जितना प्रेम मेरे हाड़ मांस के पिंजर शरीर से कर रहे हो उतना ही प्रेम कभी आप प्रभु श्रीराम से करते तो तुम्हारा यह जीवन बहुत सफल हो जाता।’’
पत्नी का उक्त कथन सुनकर तुलसीदास जी को आत्मज्ञान की प्राप्ति हो गई क्योंकि वह पहले से ही बहुत ज्ञानी तथा विद्वान थे। इसलिए पत्नी की बात उनके हृदय में उतर गई और वह तुरंत अपने पिता के गांव की ओर चल पड़े, वहां जाने पर उन्हें पता लगा कि उनके पिताजी नहीं रहे तो उनका श्राद्ध और पिंड दान करके वह वापस काशी चल गए एवं तथा वहां 6 वर्षों तक उन्होंने अध्ययन किया उसके बाद प्रभु श्री राम की कृपा से अयोध्या में श्री रामचरितमानस की रचना की। इसके साथ ही अनेक ग्रंथ उनके द्वारा लिखे गए। उस काल में भी उनकी सफलता से अन्य विद्वानों को ईर्ष्या होने लगी और वाल्मीकि रामायण की तुलना में तुलसी रामायण को स्वीकार नहीं करना इस प्रकार का अभियान चलाया गया किंतु अंततः वे सब हार गए और जनसाधारण में रामचरितमानस लोकप्रिय हो गई इसके बाद उन्होंने विनय पत्रिका, कवितावली, दोहावली अनेक प्रमुख ग्रंथ सहित हनुमान चालीसा की रचना की।
आज श्रावण शुक्ल सप्तमी को महात्मा गोस्वामी तुलसीदास जी के जन्मदिवस पर श्रद्धा सुमन समर्पित करते हैं।