मंदसौरमध्यप्रदेश
अ.भा. साहित्य परिषद ने मुंशी प्रेमचंद की जन्म जयंती मनाई

प्रेमचन्द ने कहा था साहित्यकार समाज का पथ प्रदर्शक होता है विदूषक नहीं
‘‘स्वर सम्राट मो. रफी के नगमे गाकर किया पुण्य स्मरण
मन्दसौर। अखिल भारतीय साहित्य परिषद मंदसौर ने ‘‘साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद की जन्म जयंती’’ स्क्रीन प्ले राइटर संजय भारती के मुख्य आतिथ्य, डॉ. स्वप्निल ओझा, नरेन्द्र भावसार, नरेन्द्र त्रिवेदी, अजीजुल्लाह खान, दीपिका मावर, पुष्पेन्द्र भावसार, सतीश पाटीदार, मनीष कनोदिया, कृष्णकांत गुर्जर के सानिध्य में ‘‘भारतीय साहित्य में मुंशी प्रेमचंद का योगदान’’ विषय पर मुख्य वक्ता नन्दकिशोर राठौर के व्याख्यान के साथ मनाई
इस अवसर पर मुख्य वक्ता श्री राठौर ने कहा कि, भारतीय साहित्य जगत में मुंशी प्रेमचंद उर्दू एवं हिन्दी के सर्वाधिक लोकप्रिय कहानीकार, उपन्यासकार एवं विचारक के रूप में प्रसिद्ध है। यद्यपि आपने कहानियां अधिक लिखी पर आपको उपन्यास सम्राट के नाम से जाना जाता है। आपकी कहानियों में दलित, किसान एवं गरीबी का यथार्थ चित्रण देखने को मिलता है। जो उस समय की सामाजिक और राजनीतिक दशाओं को रेखांकित करता था। आपने उस समय में व्याप्त सामाजिक दशा के साथ कुरीतियों एवं शोषण के विरूद्ध अपनी आवाज को मुखर कर समाज और व्यवस्थाओं को सुधारने के लिये प्रयास किया क्योंकि वह मानते थे ‘‘साहित्यकार समाज का पथ प्रदर्शक होता है विदूषक नहीं’’। 31 जुलाई 1880 को जन्मे तथा 13 वर्ष की उम्र से लेखन कार्य करने वाले धनपत राय श्रीवास्तव ने उर्दू से लेखन कार्य आरंभ किया इनकी पांच कहानियों का संग्रह ‘‘सोजे वतन’’ नवाब राय के नाम से लिखा गया कहानियों में देश प्रेम एवं देश की जनता के दर्द को बयान करने के कारण तत्कालीन अंग्रेज हुकूमत ने सोजे वतन को जला दिया नवाब राय को बिना आज्ञा से आगे लिखने पर प्रतिबंध लगा दिया यहीं से नवाब राय प्रेमचंद बन गए बाद में कन्हैयालाल मुंशी के साथ इन्होंने हंस पत्रिका का संपादन किया और क्रेडिट नाम मुंशी प्रेमचंद लिखा गया तभी से इन्हें मुंशी प्रेमचंद के नाम से जाना जाने लगा आपकी रचनाओं में दलित किसान एवं गरीबों का यथार्थ चित्रण मिलता है इसीलिए लोग आपको विशेष पंथ से जोड़ने लगे जबकि प्रेमचंद की जीवनी कलम का सिपाही लिखने वाले उनके पुत्र बताते हैं कि प्रेमचंद ने दया नारायण निगम को लिखा की वह बोलशेविक उसूलों को मानने लगे हैं इसका मतलब सिर्फ यह है की जो शोषण के खिलाफ इंकलाब इस धरती पर आया है वह इसका अभिनंदन करते हैं लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं निकल जाना चाहिए कि वह विशेष पंथी हो गए हैं ऐसे में मुंशी प्रेमचंद जैसे साहित्यकार को किसी पथ विशेष से जोड़ना हमारी न समझी ही होगी।
इस अवसर पर बोलते हुए डॉ. ओझा ने कहा कि मुंशी प्रेमचंद ने तत्कालीन समय की परिस्थितियों के अनुसार सामाजिक, राजनीतिक एवं पारिवारिक मूल्यों की स्थापना हेतु दलित, किसान, मजदूर एवं महिला विषय पर अपनी कलम चलाई। आपकी उस दौरान की गई रचनाएं आज भी प्रासंगिक है। हम कह सकते है कि मुंशी प्रेमचंद कालजयी साहित्यकार है।
श्री नरेन्द्र भावसार ने कहा कि मुंशी प्रेमचंद जनसामान्य के साहित्यकार थे। उनकी भाषा सरल और सुबोध थी। उनकी कोई कहानी या रचना पढ़ते समय वहीं घटना आंखों के सामने चलचित्र सी घूमने लगती है।
दीपिका मावर ने उनकी कहानी ‘नमक का दरोगा’ की विवेचना की और प्रतिपादित किया कि बंशीधर की इमानदारी से उसको नौकरी से तो हटा दिया पर ठेकेदार अलादीन उसी को अपने यहां सम्पत्ति की पूरी जिम्मेदारी देना चाहता था।
इस अवसर पर स्व. मो. रफी सा. की पुण्य तिथि होने से राजकुमार अग्रवाल, हिमांशु वर्मा, मनीष कनोदिया, नंदकिशोर राठौर, सतीश पाटीदार, नरेन्द्र त्रिवेदी ने रफी सा. के नगमे गाकर उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित किये। संचालन नरेन्द्र भावसार ने किया व आभार नरेन्द्र त्रिवेदी ने माना।
इस अवसर पर मुख्य वक्ता श्री राठौर ने कहा कि, भारतीय साहित्य जगत में मुंशी प्रेमचंद उर्दू एवं हिन्दी के सर्वाधिक लोकप्रिय कहानीकार, उपन्यासकार एवं विचारक के रूप में प्रसिद्ध है। यद्यपि आपने कहानियां अधिक लिखी पर आपको उपन्यास सम्राट के नाम से जाना जाता है। आपकी कहानियों में दलित, किसान एवं गरीबी का यथार्थ चित्रण देखने को मिलता है। जो उस समय की सामाजिक और राजनीतिक दशाओं को रेखांकित करता था। आपने उस समय में व्याप्त सामाजिक दशा के साथ कुरीतियों एवं शोषण के विरूद्ध अपनी आवाज को मुखर कर समाज और व्यवस्थाओं को सुधारने के लिये प्रयास किया क्योंकि वह मानते थे ‘‘साहित्यकार समाज का पथ प्रदर्शक होता है विदूषक नहीं’’। 31 जुलाई 1880 को जन्मे तथा 13 वर्ष की उम्र से लेखन कार्य करने वाले धनपत राय श्रीवास्तव ने उर्दू से लेखन कार्य आरंभ किया इनकी पांच कहानियों का संग्रह ‘‘सोजे वतन’’ नवाब राय के नाम से लिखा गया कहानियों में देश प्रेम एवं देश की जनता के दर्द को बयान करने के कारण तत्कालीन अंग्रेज हुकूमत ने सोजे वतन को जला दिया नवाब राय को बिना आज्ञा से आगे लिखने पर प्रतिबंध लगा दिया यहीं से नवाब राय प्रेमचंद बन गए बाद में कन्हैयालाल मुंशी के साथ इन्होंने हंस पत्रिका का संपादन किया और क्रेडिट नाम मुंशी प्रेमचंद लिखा गया तभी से इन्हें मुंशी प्रेमचंद के नाम से जाना जाने लगा आपकी रचनाओं में दलित किसान एवं गरीबों का यथार्थ चित्रण मिलता है इसीलिए लोग आपको विशेष पंथ से जोड़ने लगे जबकि प्रेमचंद की जीवनी कलम का सिपाही लिखने वाले उनके पुत्र बताते हैं कि प्रेमचंद ने दया नारायण निगम को लिखा की वह बोलशेविक उसूलों को मानने लगे हैं इसका मतलब सिर्फ यह है की जो शोषण के खिलाफ इंकलाब इस धरती पर आया है वह इसका अभिनंदन करते हैं लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं निकल जाना चाहिए कि वह विशेष पंथी हो गए हैं ऐसे में मुंशी प्रेमचंद जैसे साहित्यकार को किसी पथ विशेष से जोड़ना हमारी न समझी ही होगी।
इस अवसर पर बोलते हुए डॉ. ओझा ने कहा कि मुंशी प्रेमचंद ने तत्कालीन समय की परिस्थितियों के अनुसार सामाजिक, राजनीतिक एवं पारिवारिक मूल्यों की स्थापना हेतु दलित, किसान, मजदूर एवं महिला विषय पर अपनी कलम चलाई। आपकी उस दौरान की गई रचनाएं आज भी प्रासंगिक है। हम कह सकते है कि मुंशी प्रेमचंद कालजयी साहित्यकार है।
श्री नरेन्द्र भावसार ने कहा कि मुंशी प्रेमचंद जनसामान्य के साहित्यकार थे। उनकी भाषा सरल और सुबोध थी। उनकी कोई कहानी या रचना पढ़ते समय वहीं घटना आंखों के सामने चलचित्र सी घूमने लगती है।
दीपिका मावर ने उनकी कहानी ‘नमक का दरोगा’ की विवेचना की और प्रतिपादित किया कि बंशीधर की इमानदारी से उसको नौकरी से तो हटा दिया पर ठेकेदार अलादीन उसी को अपने यहां सम्पत्ति की पूरी जिम्मेदारी देना चाहता था।
इस अवसर पर स्व. मो. रफी सा. की पुण्य तिथि होने से राजकुमार अग्रवाल, हिमांशु वर्मा, मनीष कनोदिया, नंदकिशोर राठौर, सतीश पाटीदार, नरेन्द्र त्रिवेदी ने रफी सा. के नगमे गाकर उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित किये। संचालन नरेन्द्र भावसार ने किया व आभार नरेन्द्र त्रिवेदी ने माना।