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प्राथमिक स्कूलों में नामांकन में गिरावट की वजह क्या है ,जिम्मेदारी तय होगी?

प्राथमिक स्कूलों में नामांकन में गिरावट की वजह क्या है ,जिम्मेदारी तय होगी ?

 

डॉक्टर प्रद्युम्न भट्ट, शिक्षाविद् भानपुरा

भारत में प्राथमिक शिक्षा के लक्ष्य को बार बार दोहराते हुए कहा जाता हैं। बालक का सर्वांगीण विकास ही प्राथमिक शिक्षा का मूल लक्ष्य हैं लेकिन आज प्राथमिक शिक्षा में नामांकन में हो रही चिंतनीय गिरावट साफ संकेत दे रही हैं कि प्राथमिक शिक्षा, गुणवत्ता, उत्कृष्टता से बहुत दूर हो जाने से सर्वांगीण विकास का नारा अर्थ हीन रह गया हैं।एक समाचार बहुत चिंता में डालदेने वाला है कि मध्य प्रदेश में इस वर्ष दो हजार सरकारी प्राथमिक स्कूलों में नामांकन शून्य रहा ।बेरोजगारी का विस्फोट का युग चल रहा हजारों प्रतिभाशाली लोग कड़ी मेहनत कर सरकारी प्राथमिक शिक्षक बनने की दौड़ में शामिल हैं उधर यह आंकड़े चिंता उत्पन्न कर रहे हैं इतना ही नहीं मंदसौर जिले में 14से 30 प्रतिशत की गिरावट नामांकनों में सरकारी तौर पर दर्ज हुई है साफ है सरकारी प्राथमिक शिक्षा पर सवाल गहराते नजर आ रहे हैं। सतही तोर पर निरीक्षण की कमजोरी बड़ा कारण है।सब प्रभारी चल रहे ,जिला शिक्षाधिकारी प्रभारी हैं उनका मूल पद का भी दायित्व हैं, डी पी सी का काम कोई अलग देख रहा है विकासखंड शिक्षा अधिकारी कई जगह प्रभारी है प्राचार्य भी प्रभारी हैं। कई जगह प्रधान अध्यापक भी प्रभारी है ।सभी केवल समय बिताना ही सफलता मान लेते हैं।सबसे पहले प्रभारियों की फोज कम की जावे,संकुल प्राचार्य तो कम से कम योग्य स्थाई पद का व्यक्ति हो जो अनुभवी भी हो और जो व्यक्ति निष्ट होने की बजाय शासन के प्रति निष्ठावान हो।क्षमता वान हो। बी आरसी /बी ई ओ पद पर वह व्यक्ति हो जिसने शासकीय शिक्षा महाविद्यालय से नियमित रहकर शिक्षा स्नातक किया होया शिक्षा में रहकर उल्लेखनीय कार्यकिया हो ।शासन की एक योजना जिसमे कोई पालक अपने पुत्र को निजी विद्यालय में लेजाता है तो 25 परसेंट सीटों का व्यय शासन देता है इस योजना ने सरकारी प्राथमिक शिक्षा को बहुत नुकसान पहुंचाया यद्यपि शासन का सरकारी स्कूलों को नुकसान पहुंचाने का उद्देश्य नही था।साथ ही सबसे बड़ी वजह सामने आती है कि ग्रामों में ग्राम के बच्चो से प्यार करने वाला उनकी ही बोली में उनसे बात कर स्कूल तक लाने वाला पुरोधा अब बचा ही नहीं।ग्राम के बच्चो से लगाव खत्म होना सरकारी प्राथमिक शिक्षा में नामांकन कम होने का बड़ा कारण है।याद रहे सरकारी स्कूलों में ड्रेस भोजन किताबें सब निःशुल्क है फिर भी नमांकन में गिरावट बता रही है कि मर्ज गंभीर है।जल्द ही प्राथमिक स्कूल सरकारी तंत्र के अधीन चल रहे वे बंद होने के कगार पर आजाएंगे। इसकी रोक थाम करनी है तो समर्पित सेवा भावी शिक्षकों को आगे आना होगा।अन्य राज्यों से आने वाले शिक्षकों को भी उन बच्चों के पालकों से जुड़ाव प्रत्यक्ष संपर्क रखना होगा जो अभी नही के बराबर हैं।मुझे याद आता हूं 2004 से 06के बीच कलेक्टर श्री हीरालाल त्रिवेदी और कलेक्टर मैडम एम गीता ने डीईओ बी ई ओ जेसी संस्थाओं को कसावट के साथ मैदान में उतारा था तब नामांकन भी बड़े थे और परिणाम भी जिले के मध्य प्रदेश में टॉप टेन में रहे थे।राजनेतिक इच्छा शक्ति भी स्कुलो को बेहतर बनाने में अपनी भूमिका का श्रेष्ठ निर्वहन कर सकती है आज भी जिले में ऐसे स्कूल है जिन्हे क्रमोन्ननत हुए पंद्रह साल हो चुके लेकिन ने उन स्कूलों में नामांकन दो सो प्रतिशत बढ़ गया लेकिन भवन वही जर्जर क्षति ग्रस्त बाउंड्री तक नही रात को परिसर में पशु खड़े रहते है सुबह बच्चे गोबर मुत्रवाले परिसर में शिक्षा प्राप्त करते है।जिम्मेदारी कुछ तो तय ही एस एम दी सी को मजबूत बनाया जाय।जन प्रतिनिधि सकारात्मक रूप से अपने अपने गांव के बच्चों के हित के लिए चिंतन करें शिक्षक समय पर स्कूल पहुंचे।बदलाव जरूर होगा।

 

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