सेमलिया काजी में अली या हुसैन की सदाओं के साथ गांव में निकले ताजिया जुलूस

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सेमलिया काजी (शाहरुख रज़ा)–
मोहर्रम पर इमाम हुसैन की शहादत को मुस्लिम समाज ने किया याद, या अली या हुसैन की सदाओं के साथ गांव में निकले ताजिया जुलूस ।
सेमलिया काजी गांव में मुहर्रम का जुलूस शुक्रवार की शाम को दरगाह से शुरू होकर नई आबादी बस स्टैंड होता हुआ वापस दरगाह परिसर चौकी में पहुंचा । शनिवार को दोपहर 2 बजे से ही बेंड बाजो के साथ दरगाह से शुरू होकर जुलूस नई आबादी बस स्टैंड होता हुआ देर रात करीब 3 बजे कर्बला पहुंचा जंहा ताजिये ठंडे हुए जुलूस के दौरान समाजजनों ओर युवाओ द्वारा जगह जगह छबील व लंगर का प्रोग्राम रखा और स्वागत किया गया साथ ही हुसैनी कोमी एकता कमेटी द्वारा ग्राम पंचायत सरपंच प्रतिनिधि भरतदास बैरागी व पंचायत के पंच व वरिष्ठजनों का स्वागत किया गया । जुलूस बेंड बाजो के साथ निकाला गया जुलूस में जोधपुर के क़व्वाल फिरोज साबरी ने इमाम हुसेन की शहादत के कलाम पेश किए । साथ ही जुलूस में अफजपुर थाना प्रभारी समरथ सिनम क्षेत्र भृमण पर रहे । Asi प्रेमदास व Asi कैलाशचन्द्र बहुगुणा उपस्थित रहे ।
कर्बला की जंग में हज़रत इमाम हुसैन ने इस्लाम की रक्षा के लिए अपने परिवार और 72 साथियों के साथ शहादत दी। यह जंग इराक के कर्बला में यजीद की सेना और हजरत इमाम हुसैन के बीच हुई थी।
कर्बला के मैदान में शहीद हो गये थे हजरत इमाम हुसैन
इस्लाम धर्म की मान्यता के मुताबिक, हजरत इमाम हुसैन अपने 72 साथियों के साथ मोहर्रम माह के 10वें दिन कर्बला के मैदान में शहीद हो गये थे। उनकी शहादत और कुर्बानी के तौर पर इस दिन को याद किया जाता है। कहा जाता है कि इस्लाम के पांचवे खलीफा मुआविया का बेटा यजीद वंशानुगत आधार पर खलीफा बना। यजीद चाहता था कि हजरत अली के बेटे इमाम हुसैन भी उसके खेमे में शामिल हो जाएं। हालांकि इमाम हुसैन को यह मंजूर न था। उन्होंने यजीद के खिलाफ जंग का ऐलान कर दिया। इस जंग में वह अपने बेटे, घरवाले और अन्य साथियों के साथ शहीद हो गये।
युद्ध के दौरान 6 माह के अली असगर ने प्यास से दम तोड़ा
युद्ध के दौरान एक वक्त ऐसा भी आया तब सिर्फ हुसैन अकेले रह गये, लेकिन तभी अचानक उनके खेमे में शोर सुनाई दिया। उनका छह महीने का बेटा अली असगर प्यास से बेहाल था। हुसैन उसे हाथों में उठाकर मैदान-ए-कर्बला में ले आये। उन्होंने यजीद की फौज से बेटे को पानी पिलाने के लिए कहा, लेकिन फौज नहीं मानी और बेटे ने हुसैन के हाथों में तड़प कर दम तोड़ दिया। इसके बाद भूखे-प्यासे हजरत इमाम हुसैन का भी कत्ल कर दिया। इसे आशुर यानी मातम का दिन कहा जाता है। इराक की राजधानी बगदाद के दक्षिण पश्चिम के कर्बला में इमाम हुसैन और इमाम अब्बास के तीर्थ स्थल हैं।