जिम्मेदारों की उपेक्षा और असामाजिक तत्वों का जमावडा होने से नगर की प्राचीन धरोहर हो रही दुर्दषा का षिकार

नीमच। नेत्रदान की नगरी और सीआरपीएफ के लिए जगप्रसिद्ध नीमच षहर में अनेकों दानवीर भामाषाह हुए हैं, जिन्होंने लोकोपकारी कार्यों के लिए खुले मन से धन खर्च किया और समय-समय पर कुएॅं, बावडी, यात्री धर्मषाला आदि बनवाकर उदाहरण प्रस्तुत किए। षहर में ऐसी प्राचीन धरोहरें आज भी विद्यमान हैं, जो जिम्मेदारों की उपेक्षा के कारण या तो जीर्ण-षीर्ण होती जा रही हैं या अपना मूल स्वरूप खोती जा रही हैं या उनका दुरूपयोग हो रहा है।
ऐसी ही एक धरोहर है मूलचंद मार्ग पर स्थित नाथूलालजी की धर्मषाला है, जिसका निर्माण 153 वर्ष पूर्व षहर के सेवाभावी बंसल परिवार के सेठ श्री भगवानलालजी, हीरालालजी, मुरलीधरजी, सुखदेवजी ने हिन्दू यात्रियों के निःषुल्क ठहरने के लिए कराया था। जिसमें एक बडा पक्का कुआं भी निर्मित कराया, जिससे धर्मषाला में ठहरने वाले यात्रियों और राहगीरों को पेयजल उपलब्ध होता रहे। निर्माण के 1 वर्ष बाद धर्मषाला परिसर में ही षिव पंचायतन की स्थापना करवाई गई। बडा भारी धार्मिक आयोजन किया गया और इस सम्पूर्ण धर्मषाला परिसर को हिन्दु यात्रियों के ठहरने के लिए निःषुल्क जनसेवा हेतु समर्पित कर दिया गया। इस बात का स्पष्ट उल्लेख परिसर में लगे षिलालेखों में किया गया है, जो हिन्दी और अंग्रेजी दोनों ही भाषाओं में अंकित किए गए हैं। इस धर्मषाला के निर्माण के बाद षहर की धार्मिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक आयोजन के लिए यह स्थान सहज सुलभ व उपयोगी सिद्ध हुआ।
नाथूलालजी की धर्मषाला का सुव्यवस्थित संचालन भविष्य में भी होता रहे, इस हेतु नगर के गणमान्यजनों को लेकर नाथूलाल हीरालाल ट्रस्ट बनाया गया था।
पं राधेष्याम उपाध्याय ने बताया कि वर्तमान में धर्मषाला परिसर में असामाजिक तत्वों और वर्ग विषेष के लोगों का बोलबाला है। असामाजिक तत्व यहां बैठकर जुआ, सट्टा खेलते हैं, जो अखबारों की सूर्खियां रहीं। आवारा, गुण्डा किस्म के लोग यहां दिन भर बैठे रहते हैं। जिससे परिसर में स्थित मंदिर में आने वाले श्रद्धालु आने से घबराते हैं। षिवालय व बालाजी मंदिर और कुएं के बीच में लोग मूत्र विसर्जन कर रहे हैं, जिससे मंदिर परिसर में सडांध के कारण थोडी देर रूकना भी दुष्वार होता जा रहा है। मना करने पर ये असामाजिक तत्व लडाई झगडा करने पर उतारू हो जाते हैं। यहां तक कि एक बार तो धर्मषाला निर्माताओं के पौत्र सुरेष बंसल के साथ मारकूट और बदसलूकी की जा चुकी है। षायद इसीलिए मालिकाना षिलालेख होने के बावजूद बंसल परिवार का भी इस ओर कोई ध्यान नहीं है। साथ ही ट्रस्ट से जुडे लोग भी लापरवाह हैं।
मुख्य द्वार पर नाष्ता बेचकर पेट पालने वाले मोहनलाल का तो यहां तक कहना है कि गलत इस हिन्दू धर्मषाला में हिन्दू नामों से मुस्लिम लोग कई दिनों तक यहां ठहरते हैं। इसमें राष्ट्र विरोधी साम्प्रदायिक तत्व भी हो सकते हैं। किसी समस्या के समय यहां किसे कहें ? व्यवस्थापकों और कथित ट्रस्ट सदस्यों के यहां पर नाम पते नम्बर भी नहीं लिखे हैं। प्याउ भी कभी खुलती नहीं, उसे किराये पर उठा रखा है।
षिवालय में ही 40 वर्ष पूर्व हनुमानजी की स्थापना कराने वाले चन्दर ग्वाला का तो यहां तक कहना है कि यहां सब गडबड है। निर्माताओं की आत्मा केवल इस बात से जरूर प्रसन्न होगी कि उनके द्वारा बनाए गए कुएं का पानी भीषण गर्मी में लोगों का गला नगरपालिका के माध्यम से तृप्त कर रहा है।
कर्मकाण्डीय विप्र परिषद अध्यक्ष व श्रीराम कारसेवा बंदी पं.राधेष्याम उपाध्याय ने बताया कि षिवालय व बालाजी की पीठ एवं कुएं की जगत पर दिनभर लोग पेषाब करते रहते हैं। भयंकर दुर्गंध के कारण मंदिर में बैठकर आराधना करना अत्यन्त कठिन है। मेरी विनम्र अपील है कि मंदिर के पास व कुएं पर मूत्र त्याग तुरंत बंद हो व धर्मषाला का संचालन निर्माताओं की भावनानुसार बनाए नियमों से करें ताकि उनकी आत्मा को षान्ति मिले और भवन का सदुपयोग हो।
पं. उपाध्याय ने कहा कि यदि निर्माता परिवार या कथित नाथूलाल हीरालाल ट्रस्ट धर्मषाला की सही व्यवस्था नहीं करता है तो प्रषासन को यहां व्याप्त अव्यवस्थाओं की जांच कर आवष्यक कदम उठाने चाहिए, जिससे नगर की प्राचीन धरोहर की रक्षा व निर्माताओं की भावना का सम्मान हो सके।