पर्यटन एवं दार्शनिक स्थलप्रतापगढ़राजस्थान

सीतामाता मेला 04 जून से, धार्मिक महत्व के साथ-साथ जैव विविधता और प्राकृतिक सौन्दर्य का अनुपम संगम

 

 सीतामाता वन्यजीव अभ्यारण्य, राजस्थान के टूरिज्म मैप में सीतामाता अभ्यारण्य को लाने हेतु बनेगी डॉक्यूमेंट्री

प्रतापगढ़ – जिला कलक्टर डॉ. अंजलि राजोरिया ने बताया की सीतामाता मेले का आयोजन 4 जून से 7 जून तक किया जाएगा। मेले के आयोजन के लिए अधिकारियों को आवश्यक दिशा निर्देश दे दिए गए है। उल्लेखनीय है की जिला प्रशासन सीतामाता अभ्यारण्य को राजस्थान में पर्यटकों के लिए पसंदीदा स्थल बनाने के लिए लगातार प्रयास कर रहा है। इसी कड़ी में जिला प्रशासन और वन विभाग द्वारा डॉक्यूमेंट्री बनाई जा रही है । ताकि सीतामाता के अनूठे पहलुओं को दिखाया जा सके। सागवान के वन, आर्द्र भूमि, बारहमासी जल धाराएं, सौम्य अविरल पहाड़, प्राकृतिक गहरे घाटियां और सागवान के मिश्रित वन, तेंदुआ, उड़न गिलहरी दक्षिणी राजस्थान में स्थित प्रतापगढ़ जिले को आकर्षण का केंद्र बनाती है। यहाँ के प्रमुख आकर्षण में से एक है सीतामाता वन्यजीव अभ्यारण्य।

सीतामाता का मंदिर है आस्था का बड़ा केंद्र
सीतामाता अभयारण्य जहां एक ओर इको-टूरिज़म के लिहाज से राज्य का एक महत्वपूर्ण स्थल है तो वहीं कई प्रकार की धार्मिक मान्यता भी अपने अंदर समेटे हुए है। अभयारण्य का भ्रमण करने आने वाले सैलानी सीतामाता मंदिर तक अवश्य ही आते हैं। कई किलोमीटर पैदल चलने और फिर कई सीढ़ियाँ चढ़ने के बाद दो पहाड़ों के मध्य सीतामाता का मंदिर आता है। यहाँ दर्शन करते श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता। यहाँ से सीतामाता अभयारण्य का एक विहंगम दृश्य भी दिखाई देता है।

प्राकृतिक सौंदर्यता का केंद्र है यह अभ्यारण्य
अभयारण्य प्रतापगढ़ जिले में, राजस्थान के दक्षिण-पश्चिम क्षेत्र में अवस्थित है, जहाँ भारत की तीन पर्वतमालाएं अरावली, विन्ध्याचल और मालवा का पठार आपस में मिल कर ऊंचे सागवान वनों की उत्तर-पश्चिमी सीमा बनाते हैं। यहाँ बहती जाखम नदी गर्मियों में भी इसे आकर्षक बनाए रखती है। यहाँ सागवान, सालर, तेंदू, आंवला, बांस और बेल आदि के वृक्ष भी पाए जाते है। यहाँ बहने वाली नदियों में जाखम और करमोई नदी प्रमुख हैं। सीतामाता वन्यजीव अभयारण्य में उड़न गिलहरी, तेंदुआ, लकड़बग्घा, सियार, जंगल बिल्ली, चार सींग वाले मृग, भारतीय पेंगोलिन और नीलगाय आदि प्रमुख वन्यजीव है। अभयारण्य का सबसे महत्वपूर्ण और विशिष्ट जानवर उड़न गिलहरी है, जिसे रात के दौरान पेड़ों के बीच ग्लाइडिंग करते आसानी से देखा जा सकता है। उड़न गिलहरियों को स्थानीय भाषा में आशोवा नाम से जाना जाता है इसका वैज्ञानिक नाम रेड फ्लाइंग स्किवरल पेटोरिस्टा एल्बी वेंटर है। भारत के कई भागों से कई प्रजातियों के पक्षी प्रजनन के लिए यहां माइग्रेट कर आते है।

धार्मिक दृष्टिकोण से भी है महत्व

यह अभ्यारण्य प्रकृति के अलावा धार्मिक दृष्टिकोण से भी अपना महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इस अभ्यारण्य का जुड़ाव पौराणिक घटनाओं से माना जाता है। यह मान्यता है कि सीतामाता वनवास की अवधि के दौरान यहीं रही थी।

आकर्षक है अभयारण्य की जैव विविधता
सीतामाता वन्यजीव अभयारण्य में सागवान, आम, महुआ, सफेद धोंक, चिरौंजी के वन भी पाए जाते है। यहाँ लीया नामक एक कन्दीय पौधा भी पाया जाता है। अन्य वृक्षों में यहाँ आंवला, इमली, बैर, बरगद, बिजपत्ता, सालर, गूलर आदि के वृक्ष भी पाए जाते है। सीतामाता औषधीय पौधों के लिए भी जाना जाता है। मुख्य औषधीय पौधों में चिरौंजी, जामुन, मूसली आदि पाए जाते है।

कई प्रजाति के जीव-जंतुओं की है यह आश्रय स्थली

सीतामाता के प्राकृतिक सौंदर्यता के क्षेत्र वन्यजीव अभयारण्य में उड़न गिलहरी, तेंदुआ, लकड़बग्घा, सियार, जंगल बिल्ली, चार सींग वाले मृग, भारतीय पेंगोलिन और नीलगाय आदि प्रमुख वन्यजीव है। अभयारण्य का सबसे महत्वपूर्ण और विशिष्ट जानवर उड़न गिलहरी है, जिसे रात के दौरान पेड़ों के बीच ग्लाइडिंग करते आसानी से देखा जा सकता है। उड़न गिलहरियों को स्थानीय भाषा में आशोवा नाम से जाना जाता है इसका वैज्ञानिक नाम रेड फ्लाइंग स्किवरल पेटोरिस्टा एल्बी वेंटर है। भारत के कई भागों से कई प्रजातियों के पक्षी प्रजनन के लिए यहां माइग्रेट कर आते है।
सीतामाता वन्यजीवों के दृष्टिकोण से एक महत्त्वपूर्ण अभयारण्यों में से एक है। यहाँ स्तनधारियों ,पक्षियों, सरीसृपों, मछलियों और उभयचरों की अनेक प्रजातियाँ पाई जाती है। यह अभयारण्य उड़न गिलहरी, तेंदुआ और चैसिंघा और पेंगोलिन के लिए जाना जाता है। साथ ही यहाँ बिल खोदने वाले मेंढक और वृक्षारोही सर्प भी पाए जाते है।

—–

“सीतामाता अभ्यारण्य प्रकृति के अलावा धार्मिक दृष्टिकोण से भी अपना महत्वपूर्ण स्थान रखता है। सीतामाता मेले का आयोजन 4 से 7 जून को किया जा रहा है। प्रकृति को सुरक्षित रखना हम सबकी सामूहिक जिम्मेदारी है, पर्यटक वन एवं वन्यजीव काे नुकसान नहीं पहुंचाएं और नदी-नालों को दूषित नहीं करें।
————————————————-
डॉ. अंजलि राजोरिया
जिला कलेक्टर

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
site-below-footer-wrap[data-section="section-below-footer-builder"] { margin-bottom: 40px;}