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गुर्जर या गुप्ता कौन बनेगा सांसद ?

4 जून को 14 लाख मतदाता अपना फैसला सुनाएंगे
(विक्रम विद्यार्थी)

यह देश का अठारहवां लोकसभा चुनाव है। भाजपा 12 बार तथा कांग्रेस 5 बार मंदसौर से चुनाव जीती है। आठ बार सांसद बनने का सौभाग्य भाजपा के डॉ. लक्ष्मीनारायण पाण्डे को मिला तो कांग्रेस प्रत्याशी एक-एक बार ही जीत पाए।
मंदसौर संसदीय क्षेत्र में कांग्रेस प्रत्याशी दिलीपसिंह गुर्जर पहली बार बाहर से नहीं आए। बंशीलाल गांधी, मीनाक्षी नटराजन दोनों रतलाम अपनी किस्मत आजमा चुके। सुश्री नटराजन एक बार चुनाव जीती, इनके अलावा डॉ. कैलाशनाथ काटजू, माणकलाल अग्रवाल, भंवरलाल नाहटा, बालकवि बैरागी भी एक-एक बार चुनाव जीते।
मंदसौर संसदीय क्षेत्र में भाजपा भी प्रवासी प्रत्याशी ला चुकी है। कांग्रेस पिछले विधानसभा चुनाव में 8 में से 7 सीटों पर हार गई। इस कारण कांग्रेस क्षेत्र में निराशा का वातावरण था। दूसरी तथा तीसरी पंक्ति के नेता जनता द्वारा पराजित करने के बाद, योग्य उम्मीदवार की चर्चा के बाद जाति का कार्ड खेलने के नाम गायरी, गुर्जर, धनगर जिसके मतदाता सवा तीन लाख से अधिक होने के कारण नागदा से चार बार के विधायक दिलीपसिंह गुर्जर के नाम पर सेहरा बंधा।
सुश्री नटराजन वर्ष 2019 में पौने चार लाख से पराजित हो गई थी। पिछले विधानसभा चुनाव वर्ष 2023 में कांग्रेस 1 लाख 75 हजार वोटों से पीछे रहने तथा कांग्रेस के बागी मल्हारगढ़ के श्यामलाल जोकचंद 58 हजार वोट ले गए थे तब कांग्रेस शिविर को महसूस हुआ कि यह लड़ाई सवा लाख वोट पर जाकर टिक सकती है।
कांग्रेस ने पहले भी जातिवाद का कार्ड खेला। बालकवि बैरागी पिछड़ा वर्ग, महेन्द्रसिंह कालूखेड़ा राजपूत, घनश्याम पाटीदार पाटीदार तथा नरेन्द्र नाहटा जैन कार्ड खेला किन्तु भाजपा के डॉ. पांडे के सामने जीत नहीं पाई। वर्ष 2024 में कांग्रेस ने पुनः पिछड़ा वर्ग के नाम गायरी गुर्जर धनगर कार्ड खेला। अब मामला इस बात पर टिक गया है कि गायरी एवं धनगर समाज के पौने 3 लाख मतदाताओं का दिल गुर्जर समाज के कथित नेता अपने व्यवहार मिलनसारिता, सद्भाव से जीत पाए होंगे ? इसका पता 4 जून को चल जाएगा। गायरी गुर्जर भाई भाई की हकीकत सामने आ जाएगी।
कांग्रेस का खोज तो पिछले साढ़े तीन दशकों में गया है। पहले गांधीवादी नेता पूर्व श्रमंमंत्री श्यामसुंदर पाटीदार 6-6 बार मंदसौर से विधानसभा चुनाव जीते। श्री भंवरलाल नाहटा भी वर्ष 1980 में लोकसभा चुनाव 2700 मतों से विषम परिस्थितियों में जीतकर बता चुके थे किंतु दुर्भाग्य यह रहा कि पुरानी पीढ़ी ने कांग्रेेस को मजबूत करने के लिये जो परिश्रम किया बावजूद मतभेदों के किया। आज के मौजूदा नेता ऐसा नहीं पा रहे हैं।
मोदी हवा के बावजूद श्री दिलीपसिंह गुर्जर ने अपने स्तर पर कांग्रेसजनों के सहयोग से परिश्रम तो किया। यह परिश्रम मतदान के रूप में बदल पाया कि नहीं इसका उत्तर 4 जून को मिल जाएगा। इंडिया गठबंधन कांग्रेस के घोषणा पत्र मतों को बदलने में कितने निर्णायक सिद्ध होंगे यह आने वाला समय सिद्ध करेगा। 4 जून का इंतजार 14 लाख से अधिक मतदाता कर रहे हैं।