वित्तीय वर्ष 2024 के दौरान भारत में 44 अरब अमेरिकी डॉलर का FDI आया, पिछले साल की तुलना में 3% कम, FY2024-25 में वृद्धि दर 7% रहने का अनुमान
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश यानी FDI का इक्विटी प्रवाह 2023-24 में 3.49% घटकर 44.42 बिलियन अमेरिकी डॉलर रह गया। इसका कारण सेवा, कंप्यूटर हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर, दूरसंचार, ऑटो और फार्मा जैसे क्षेत्रों में निवेश का कम रहना है। 2022-23 के दौरान एफडीआई का प्रवाह 46.03 बिलियन अमेरिकी डॉलर था। हालांकि, आंकड़ों के अनुसार वित्तीय वर्ष 2023-24 में जनवरी से मार्च के बीच एफडीआई का प्रवाह 33.4% बढ़ा। इस दौरान 12.38 अरब डॉलर का विदेशी निवेश आया, एक साल पहले की समान अवधि में यह आंकड़ा 9.28 अरब डॉलर था।
उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग यानी DPIIT के आंकड़ों से पता चला है कि कुल FD- जिसमें इक्विटी प्रवाह, पुनर्निवेशित आय और अन्य पूंजी शामिल हैं- 2023-24 के दौरान एक प्रतिशत घटकर 70.95 अरब अमेरिकी डॉलर हो गया, जबकि 2022-23 में यह 71.35 बिलियन अमेरिकी डॉलर था। वर्ष 2021-22 में देश को अब तक का सबसे अधिक 84.83 बिलियन अमेरिकी डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश प्राप्त हुआ था। पिछले वित्त वर्ष के दौरान भारत में मॉरीशस, सिंगापुर, अमेरिका, ब्रिटेन, संयुक्त अरब अमीरात, केमैन आइलैंड, जर्मनी और साइप्रस सहित प्रमुख देशों से एफडीआई का प्रवाह घटा, जबकि नीदरलैंड और जापान से इसके प्रवाह में वृद्धि हुई।
क्षेत्रवार आधार पर आकलन से पता चलता है कि सेवा क्षेत्र, कंप्यूटर सॉफ्टवेयर व हार्डवेयर, ट्रेडिंग, दूरसंचार, वाहन, फार्मा और रसायन क्षेत्र से जुड़े कारोबार में विदेशी निवेश का प्रवाह घटा है। इसके विपरीत, निर्माण (बुनियादी ढांचा) गतिविधियों, विकास और बिजली क्षेत्रों में समीक्षाधीन अवधि के दौरान प्रवाह में अच्छी वृद्धि दिखी। भारत में एफडीआई इक्विटी प्रवाह 2022-23 के दौरान 22% कम हो गया था।
वहीं भारतीय रिजर्व बैंक ने वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए अपनी वार्षिक रिपोर्ट जारी की है। केंद्रीय बैंक ने अप्रैल से शुरू होने वाले चालू वित्त वर्ष यानी 2024-25 में भारतीय अर्थव्यवस्था के 7% की दर से बढ़ने की संभावना जताई है। आरबीआई ने आज जारी अपनी वार्षिक रिपोर्ट में कहा है कि मुद्रास्फीति के निर्धारित स्तर की ओर बढ़ने से खासतौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में उपभोग मांग में तेजी आएगी। रिपोर्ट के अनुसार बाह्य क्षेत्र की मजबूती और विदेशी मुद्रा भंडार, घरेलू आर्थिक गतिविधियों को वैश्विक प्रभावों से बचाएंगे। रिपोर्ट में यह कहा गया है कि भू-राजनीतिक तनाव, वैश्विक जिंस मूल्य में उतार-चढ़ाव, अनिश्चित मौसमी घटनाक्रम वृद्धि की संभावनाओं के लिए नकारात्मक जोखिम उत्पन्न करते हैं।
केंद्रीय बैंक ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था को एआई/एमएल प्रौद्योगिकियों को तेजी से अपनाने और बार-बार आने वाले जलवायु संबंधी झटकों से उत्पन्न चुनौतियों से निपटना होगा। आरबीआई के अनुसार भारतीय अर्थव्यवस्था अगले दशक में व्यापक आर्थिक और वित्तीय स्थिरता के परिदृश्य में वृद्धि की गति को बढ़ाने के लिए अच्छी स्थिति में है। आरबीआई ने अपनी रिपोर्ट में यह भी कहा है कि बैंकों और कॉरपोरेट जगत की मजबूत बैलेंस शीट से समर्थित ठोस निवेश मांग के दम पर जीडीपी वृद्धि मजबूत है।