आगामी 4 जून को लोकसभा चुनाव के नतीजे घोषित होने के बाद चाहे जो भी सत्ता में आए, कुछ ऐसे मुद्दे हैं, जिन्हें अब नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। उम्मीद है कि नई सरकार कुछ कटु सच्चाइयों पर अधिक ध्यान देगी। भारत तेजी से बढ़ने वाली प्रमुख अर्थव्यवस्था है। हम अक्सर जनसांख्यिकीय लाभांश के बारे में बातें करते हैं। देश के युवा कार्यबल में आर्थिक विकास, नवाचार और उत्पादकता को बढ़ाने की क्षमता है। लेकिन अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ते उन उच्च शिक्षित युवाओं के लिए पर्याप्त संख्या में उचित रोजगार सृजित नहीं कर पा रही है, जो सुरक्षित, ऊंचे वेतन वाली व्हाइट कॉलर जॉब की उम्मीद रखते हैं। रोजगार पाने का मतलब अक्सर कम वेतन वाला, अनिश्चित काम करना होता है।
पिछले हफ्ते के एक खबर पर ध्यान डाला जाए तो पता चलता है कि स्थिति कितनी गंभीर है। एक राष्ट्रीय अखबार की खबर के अनुसार, IIT कानपुर के एक पूर्व छात्र धीरज सिंह द्वारा दाखिल आरटीआई आवेदन से प्राप्त जानकारी के अनुसार, देश के 23 आईआईटी के करीब 38% छात्र अब तक बेरोजगार हैं। समाचार में सिंह के हवाले से बताया गया है कि इस वर्ष सभी 23 में 7,000 छात्रों को आईआईटी कैंपस के माध्यम से नियुक्ति नहीं मिलि है। सिर्फ दो साल पहले यह आंकड़ा इसके लगभग आधा (3,400) था। सिंह ने बताया कि जहां अधिक छात्र रोजगार के लिए आवेदन कर रहे हैं, वहीं दो साल में बेरोजगार छात्रों की संख्या 2.3 गुना बढ़ गई है।
यदि यह कोई अकेला मामला होता, तो इसे नजरअंदाज किया जा सकता था, लेकिन भारत में शिक्षित युवाओं के बीच बेरोजगारी पिछले कुछ समय से बड़ी चिंता का विषय रही है। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन एवं दिल्ली स्थित थिंक टैंक मानव विकास संस्थान द्वारा संयुक्त रूप से प्रकाशित इंडिया एंप्लॉयमेंट रिपोर्ट, 2024 के अनुसार, भारत के बेरोजगार कार्यबल में 83 फीसदी युवा हैं और कुल बेरोजगार आबादी में माध्यमिक या उच्च शिक्षा प्राप्त युवाओं की हिस्सेदारी वर्ष 2000 में 35.2% थी, जो 2022 में बढ़कर 65.7% हो गई।
वर्ष 2023 के लिए परिशिष्ट के साथ मुख्यतः 2000 और 2022 के बीच के आवधिक श्रमबल सर्वेक्षण और नेशनल सैंपल सर्वे के आंकड़ों के विश्लेषण पर आधरित यह रिपोर्ट बताती है कि शिक्षित युवाओं में बेरोजगारी का स्तर काफी ऊंचा है। शिक्षा के स्तर के साथ युवा बेरोजगारी दर बढ़ी है। स्नातक या उससे ज्यादा शिक्षित युवाओं में बेरोजगारी की दर सबसे ज्यादा है और शिक्षित पुरुषों के मुकाबले शिक्षित महिलाओं में बेरोजगारी दर ज्यादा है। क्या भारत के श्रम बाजार में उनके लिए अवसर हैं, लेकिन शिक्षित युवाओं के लिए बेहतर गुणवत्ता वाली पर्याप्त नौकरी नहीं है? आंकड़े इसी तरफ इशारा करते हैं। सबसे ज्यादा परेशानी वाली बात यह है कि गरीब परिवारों के शिक्षित युवा विशेष रूप से कठिन परिस्थितियों में हैं।
रिपोर्ट बताती है कि ‘सबसे कम मासिक प्रति व्यक्ति व्यय क्वाइंटाइल (29.4%) में माध्यमिक या उच्च-माध्यमिक शिक्षा वाले युवाओं के बीच बेरोजगारी दर उच्चतम क्वाइंटाइल (25.8%) वाले युवाओं की तुलना में अधिक थी। यहां बता दें कि क्वाइंटाइल किसी आंकड़े को पांच बराबर भागों में विभाजित करती है। नतीजतन युवाओं के बीच उच्च बेरोजगारी दर आंशिक रूप से व्हाइट कॉलर जॉब की आकांक्षाओं के कारण हो सकती है, जो पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं हैं। सबसे गरीब युवा, जिनके पास गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, संसाधनों और सामाजिक पूंजी का अभाव है, वे अधिक पीड़ित हैं।’
चिंता की बात है कि हाशिये पर पड़े अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के उच्च शिक्षित युवाओं में बेरोजगारी दर अन्य पिछड़ा वर्ग या सामान्य श्रेणी के युवाओं की तुलना में ज्यादा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि सामाजिक रूप से हाशिये के युवाओं में उच्च बेरोजगारी उन चुनौतियों का संकेत देती है, जिनका सामना उन्हें बेहतर रोजगार की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए करना पड़ता है। यह प्रवृत्ति सामाजिक विषमताओं को कायम रखती है और सामाजिक रूप से ऊपर उठने में बाधा उत्पन्न करती है।
क्या उच्च शिक्षित युवाओं के लिए शिक्षा के स्तर और नौकरियों के बीच विसंगति समय के साथ बढ़ी है? इंडिया एंप्लॉयमेंट रिपोर्ट, 2024 इस बारे में कुछ संकेत देती है। यह बताती है कि उच्च शिक्षित युवाओं (पुरुष एवं महिला) का एक बड़ा हिस्सा, जिसमें तकनीकी शिक्षा प्राप्त युवा भी शामिल हैं, अपनी नौकरी से ज्यादा योग्यता रखते हैं। तकनीकी शिक्षा प्राप्त युवाओं में से भी 0.4% ऐसे व्यवसायों में लगे हुए थे, जो उनकी योग्यता के अनुरूप नहीं थे। हालांकि समग्र रूप से शिक्षा प्राप्ति में बढ़ोतरी हुई है, जिससे नौकरी की मांग रही है, जो (उच्च शिक्षित और कम शिक्षित युवाओं) में रोजगार दर को कम कर रही है और बेरोजगारी दर बढ़ा रही है। इसके चलते उच्च शिक्षित युवा भी कम कौशल वाले ब्ल्यू-कॉलर जॉब अपनाने लगते हैं।
एक और चिंतनीय विषय है कि तमाम उल्लेखनीय प्रगति के बावजूद उच्च शिक्षा प्राप्ति का स्तर अब भी निम्न बना हुआ है और गुणवत्ता चिंता का विषय है। गरीब राज्यों एवं हाशिये के समूहों में मध्य एवं माध्यमिक स्तर की शिक्षा के बाद ड्रॉप-आउट (स्कूल छोड़ने) की दर उच्च है। शिक्षा की गुणवत्ता लगातार चिंता का विषय है। स्कूली स्तर पर और सामान्य रूप से भी सीखने के स्तर में कमी आई है और उच्च शिक्षा संस्थानों द्वारा दी जाने वाली शिक्षा की गुणवत्ता खराब है। हम ऐसी स्थिति को जारी नहीं रहने दे सकते। रिपोर्ट बताती है कि योग्यताओं, आकांक्षाओं और नौकरियों के बीच विस्फोटक अंतर असंतोष बढ़ा रहा है। हालांकि ऐसे मामले अपेक्षाकृत पिछड़े राज्यों में आम रहे हैं, लेकिन अब आर्थिक रूप से ज्यादा गतिशील राज्यों में भी ऐसे मामले सामने आ रहे हैं। इसलिए अब सुदूर अतीत और सुदूर भविष्य पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय वर्तमान पर ध्यान देने का समय आ गया है।