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संसार में जो कुछ भी दृष्टिगोचर हो रहा वह सब ब्रह्म का ही स्वरूप है- स्वामी मणी महेश चैतन्यजी महाराज

चैतन्य आश्रम रूपी पेड़ लगाया स्वामी चैतन्य देव ने और सत्संग रूपी अमृत फल का लाभ ले रहे है हम सब- पू. पं. दशरथभाई जी
ब्रह्मलीन स्वामी श्री चैतन्यदेव का मनाया 62वां पुण्यतिथि महोत्सव
मन्दसौर। विश्व वन्द्य भगवान श्री पशुपतिनाथ के प्रतिष्ठाता स्वामी प्रत्यक्षानंदजी के पूज्य गुरूदेव ब्रह्मलीन स्वामी श्री चैतन्यदेवजी महाराज का 62वां पुण्यतिथि महोत्सव श्री चैतन्य आश्रम मेनपुरिया में आश्रम के पूज्य युवाचार्य संत स्वामीश्री मणी महेश चैतन्यजी महाराज, स्वामी शिवचैतन्य जी महाराज व राष्ट्रीय भागवत प्रवक्ता मानस मर्मज्ञ पं. दशरथभाईजी के सानिध्य में सम्पन्न हुआ। प्रारंभ में हवन हुआ। हवन के पश्चात् स्वामी श्री चैतन्यजी के श्रीविग्रह (प्रतीमा) का पूजन अभिषेक आरती की गई। पूजन विधि पं. प्रद्युम्न शर्मा, सोम पाठक, पुजारी दिनेश व्यास धारियाखेड़ी ने सम्पन्न कराई।
मंचासीन संतों का पुष्पहारों से सम्मान श्री चैतन्य आश्रम लोक न्यास अध्यक्ष प्रहलाद काबरा, उपाध्यक्ष डॉ. घनश्याम बटवाल, दयाराम दग्धी, ट्रस्टीगण ब्रजेश जोशी, ओमनारायण शर्मा, बंसीलाल टॉक, ओंकारलाल माली,अजय सिखवाल, महेश गर्ग, डॉ. रविन्द्र पाण्डेय, राजारामजी सुंदरकाण्ड मण्डली भालोट आदि ने कर आशीर्वाद लिया।
स्वागत उद्बोधन डॉ. घनश्याम बटवाल ने दिया। श्री ब्रजेश जोशी ने स्वामी चेतन्य देव के जीवन दर्शन के साथ ही चैतन्य आश्रम के महत्व पर प्रकाश डालते हुए इस क्षेत्र में संतों की सुविधाजनक आश्रम स्थली बताते हुए कहा कि जहां एक ओर भगवान पशुपतिनाथ लोक निर्माण जारी है, दर्शनार्थियों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है उसी क्रम में अब वह दिन दूर नहीं जब चैतन्य आश्रम में भी दर्शनार्थियों की भीड़ उमड़ने लगेगी। 11-11 संतों से सेवित इस तपोभूमि का विकास में हमारा भी सहयोग अपेक्षनीय है।
पं. दशरथभाईजी ने कहा कि स्वामी चैतन्यदेव ने जो चैतन्य आश्रम रूपी पेड़ लगाया आज इस पेड़ के सत्संग रूपी अमृतफल का लाभ हम सब ले रहे है। आपने कहा कि चरण उसी के वंदनीय होते है जिनका आचरण पवित्र और शुद्ध होता है। जिन चैतन्य देव की तपस्थली-पावन साधना भूमि से भगवान पशुपतिनाथ की प्रतिष्ठा स्थापना हुई वै भगवान पशुपतिनाथ अपने 24 नेत्रों से भक्तों को देखते है जबकि अन्यत्र केवल 3 नेत्रों से भक्तों का कल्याण करते है।
जिन महापुरूषों का जिस दिन पुण्यतिथि महोत्सव हम मनाते है यदि प्रतिदिन दिन में एक बार भी उनका स्मरण कर लिया जाये तो वह दिवस हमारे लिये सुकून भरा पवित्र दिवस बन जायेगा।
स्वामी चैतन्यदेवजी का शरीर हमारे बीच चाहे नहीं हो परन्तु उनकी सूक्ष्म आत्म ज्योति आश्रम के कण-कण में समाहित है और जो श्रद्धा विश्वास पूर्वक आश्रम में दर्शनार्थ आते है उन्हें इसकी अनुभूति अवश्य होती है और परम सुख शान्ति का अहसास होता है।
स्वामी मणी महेशचैतन्यजी महाराज ने कहा कि संतों के देहावसान होने पर मृत्यु होना अथवा स्वर्गवास होना आदि नहीं कहा जाता बल्कि ब्रह्मलीन होना कहा जाता अर्थात संसार में हमें जो कुछ भी दृष्टिगोचर हो रहा है वह ब्रह्म ईश्वर का ही स्वरूप है और महापुरूष भी शरीर लागने के बाद स्वयं ब्रह्म रूप हो जाते है। इसलिये जीते जी और ब्रह्मलीन होने के पश्चात हम जो गुरू प्रतिमा का पूजन अभिषेक करते है वह भौतिक शरीर प्रतीमा का नहीं ब्रह्म की ही पूजा करते है। जो गुरू को केवल भौतिक शरीर मानकर पूजन करते है उन्हें सच्चा आनन्द अपने आत्म स्वरूप ज्ञान का लाभ नहीं मिल पाता।
गोस्वामी तुलसीदासजी ने गुरू ने शरीर के किसी अंग की नहीं यहां तक की चरणों की भी नहीं चरणरज की महिमा का वर्णन किया है। ‘‘जो गुरू चरण रेणु सिर धरही। ते जनु सकल विभव (वैभव) वश करही’’
स्वामीजी ने वर्तमान प्रदूषित पर्यावरण को दूर करने के लिये वृक्षारोपण को अनिवार्य बताते हुए कहा कि एक वृक्ष लगाना 100 यज्ञ करने के समान है।
संचालन योग गुरू बंशीलाल टांक ने किया व आभार एडवोकेट अजय सिखवाल ने माना। अंत में प्रसादी भण्डारा हुआ जिसका बड़ी संख्या में भक्तों ने लाभ लिया।
मंचासीन संतों का पुष्पहारों से सम्मान श्री चैतन्य आश्रम लोक न्यास अध्यक्ष प्रहलाद काबरा, उपाध्यक्ष डॉ. घनश्याम बटवाल, दयाराम दग्धी, ट्रस्टीगण ब्रजेश जोशी, ओमनारायण शर्मा, बंसीलाल टॉक, ओंकारलाल माली,अजय सिखवाल, महेश गर्ग, डॉ. रविन्द्र पाण्डेय, राजारामजी सुंदरकाण्ड मण्डली भालोट आदि ने कर आशीर्वाद लिया।
स्वागत उद्बोधन डॉ. घनश्याम बटवाल ने दिया। श्री ब्रजेश जोशी ने स्वामी चेतन्य देव के जीवन दर्शन के साथ ही चैतन्य आश्रम के महत्व पर प्रकाश डालते हुए इस क्षेत्र में संतों की सुविधाजनक आश्रम स्थली बताते हुए कहा कि जहां एक ओर भगवान पशुपतिनाथ लोक निर्माण जारी है, दर्शनार्थियों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है उसी क्रम में अब वह दिन दूर नहीं जब चैतन्य आश्रम में भी दर्शनार्थियों की भीड़ उमड़ने लगेगी। 11-11 संतों से सेवित इस तपोभूमि का विकास में हमारा भी सहयोग अपेक्षनीय है।
पं. दशरथभाईजी ने कहा कि स्वामी चैतन्यदेव ने जो चैतन्य आश्रम रूपी पेड़ लगाया आज इस पेड़ के सत्संग रूपी अमृतफल का लाभ हम सब ले रहे है। आपने कहा कि चरण उसी के वंदनीय होते है जिनका आचरण पवित्र और शुद्ध होता है। जिन चैतन्य देव की तपस्थली-पावन साधना भूमि से भगवान पशुपतिनाथ की प्रतिष्ठा स्थापना हुई वै भगवान पशुपतिनाथ अपने 24 नेत्रों से भक्तों को देखते है जबकि अन्यत्र केवल 3 नेत्रों से भक्तों का कल्याण करते है।
जिन महापुरूषों का जिस दिन पुण्यतिथि महोत्सव हम मनाते है यदि प्रतिदिन दिन में एक बार भी उनका स्मरण कर लिया जाये तो वह दिवस हमारे लिये सुकून भरा पवित्र दिवस बन जायेगा।
स्वामी चैतन्यदेवजी का शरीर हमारे बीच चाहे नहीं हो परन्तु उनकी सूक्ष्म आत्म ज्योति आश्रम के कण-कण में समाहित है और जो श्रद्धा विश्वास पूर्वक आश्रम में दर्शनार्थ आते है उन्हें इसकी अनुभूति अवश्य होती है और परम सुख शान्ति का अहसास होता है।
स्वामी मणी महेशचैतन्यजी महाराज ने कहा कि संतों के देहावसान होने पर मृत्यु होना अथवा स्वर्गवास होना आदि नहीं कहा जाता बल्कि ब्रह्मलीन होना कहा जाता अर्थात संसार में हमें जो कुछ भी दृष्टिगोचर हो रहा है वह ब्रह्म ईश्वर का ही स्वरूप है और महापुरूष भी शरीर लागने के बाद स्वयं ब्रह्म रूप हो जाते है। इसलिये जीते जी और ब्रह्मलीन होने के पश्चात हम जो गुरू प्रतिमा का पूजन अभिषेक करते है वह भौतिक शरीर प्रतीमा का नहीं ब्रह्म की ही पूजा करते है। जो गुरू को केवल भौतिक शरीर मानकर पूजन करते है उन्हें सच्चा आनन्द अपने आत्म स्वरूप ज्ञान का लाभ नहीं मिल पाता।
गोस्वामी तुलसीदासजी ने गुरू ने शरीर के किसी अंग की नहीं यहां तक की चरणों की भी नहीं चरणरज की महिमा का वर्णन किया है। ‘‘जो गुरू चरण रेणु सिर धरही। ते जनु सकल विभव (वैभव) वश करही’’
स्वामीजी ने वर्तमान प्रदूषित पर्यावरण को दूर करने के लिये वृक्षारोपण को अनिवार्य बताते हुए कहा कि एक वृक्ष लगाना 100 यज्ञ करने के समान है।
संचालन योग गुरू बंशीलाल टांक ने किया व आभार एडवोकेट अजय सिखवाल ने माना। अंत में प्रसादी भण्डारा हुआ जिसका बड़ी संख्या में भक्तों ने लाभ लिया।