मध्यप्रदेश का एक ऐसा गांव जहां रंगपंचमी पर दहकते अंगारों पर निकलते आस्था के पुजारी और बिखेरते खुशियों के रंग

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मनोज जोगदिया
खाचरोद। के समीप गांव कुम्हार वाड़ी में हर एक पर्व का अपना अलग महत्व है. प्राचीन काल से निभाई जा रही एक खास परंपरा को आज विधि पूर्वक निभाया गया.
रंग, उमंग और उल्लास का पर्व रंग पंचमी पर डीजे की धुन पर युवाओं ने जमकर अबीर-गुलाल उड़ाया। रंग पंचमी पर इस बार भी डीजे के साथ पूरे गांव में गैर निकाली गई, दिनभर युवा रंगों से सराबोर दिखे।होली के दीवानों पर रंगों का खुमार ऐसा चढ़ा कि आज बिरज में होली है रे रसिया, रंग बरसे, होली में उड़े रे गुलाल, होली खेले रघुवीरा’ जैसे गानों पर जमकर धूम मचाई। हर बार की तरह नए के बजाय 70 से 80 के दशक के गानों की धूम रही। उन्हीं गानों पर युवाओं भी खूब थिरके।
दहकते अंगारों पर चली आस्था-
जब-जब बात आस्था की आती है। तब-तब लोग परंपराओं का निर्वहन करते हैं। और हर क्षेत्र में ये परंपराएं अलग होती हैं। होली पर ऐसी ही परंपरा खाचरोद तहसील के गांव में है। जहां जलती हुई आग पर नंगे पैर चला जाता है। इसे चूल चलना कहते हैं और कई गांवों में आज भी इस परंपरा का निर्वहन हो रहा है। गांव कुम्हार वाड़ी में इस बार भी रंग पंचमी पर इस पंरपरा को निभाया गया। कालिका माता मंदिर पर अपनी मन्नत पूर्ण होने पर बड़ी संख्या में शिवभक्त हाथों में जल कलश लिए जयकारों के बीच श्रद्धालु धधकते अंगारों के ऊपर चलकर माता के दर्शन कर भगवान शिव को शीतल जल चढ़ाया जहां स्थानीय लोग और आसपास के ग्रामीण भी उपस्थित रहे।