आलेख/ विचारमंदसौरमध्यप्रदेश

आदि गुरु शंकराचार्य का अद्वैतवाद आज भी समाज में भेदभाव समाप्त करने में उतना ही प्रासंगिक है जितना अतीत में था

 


-पं. रविंद्र कुमार पाण्डेय

मंदसौर
भगवान शंकर के अवतार आदि शंकराचार्य जी केे आदर्शों, विचारों और दर्शन का समाज पर गहरा प्रभाव पड़ा है और सद्भाव और एकता का माहौल बनाने के लिए उनके सिद्धांतों को आम लोगों तक फैलाना जरूरी है। उन्होंने प्राचीन भारतीय सनातन परंपरा के विकास और धर्म के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आदि शंकराचार्य की शिक्षाओं ने हिंदू सनातन संस्कृति के भीतर विभिन्न धर्मों और संप्रदायों के बीच एकता और सद्भाव को बढ़ावा दिया। अद्वैत वेदांत में उनके योगदान और भगवद गीता और उपनिषद जैसे महत्वपूर्ण ग्रंथों पर उनकी टिप्पणियों के लिए उनकी प्रशंसा की जाती है। हिंदू धर्म से अलग हुए संप्रदायों की चुनौतियों का सामना करते हुए सनातन धर्म को पुनर्जीवित और पुनर्स्थापित करने में आदि शंकराचार्य के प्रयास सराहनीय हैं। उनकी शिक्षाएं आज की दुनिया में भी प्रासंगिक और प्रेरणादायक बनी हुई हैं। हमें आपके  सिद्धांतों को जन जन तक पहुंचाना है। जिससे समाज में समरसता एवं एकता का वातावरण निश्चित रूप से बनेगा।
प्राचीन भारतीय सनातन परंपरा के विकास और धर्म के प्रचार-प्रसार में आदि शंकराचार्य का महान योगदान है। सनातन के सूर्य, अद्वैत वेदांत के प्रणेता सनातन संस्कृति को सूत्रबद्ध तथा शास्त्र मंथन के अमृत से वैदिक चेतना को जागृत करने वाले आदि गुरु शंकराचार्य जी अल्पायु में ही आपने अपने ज्ञान से पूरे भारत में सनातन संस्कृति के वैभव का प्रचार किया। आध्यात्मिक चेतना का संचार व चारों दिशाओं में अद्वैत वेदांत के प्रणेता, सनातन के सूर्य, अद्वैत वेदांत के प्रणेता अज्ञान के कारण आत्मा सीमित लगती है, लेकिन जब अज्ञान का अंधेरा मिट जाता है, तब आत्मा के वास्तविक स्वरुप का ज्ञान हो जाता है, जैसे बादलों के हट जाने पर सूर्य दिखाई देने लगता है।
धर्मचक्रप्रवर्तक “श्री आदि शंकराचार्य जी” सम्पूर्ण भारत को एकता के सूत्र में बांधने के बाद विश्व मे एकता एकात्मता स्थायी रहे इसके लिये 4 मठ,10 अखाडे और पंच देव पूजा प्रारंभ कराने वाले आदिशंकराचार्य जी भारत के एक महान दार्शनिक एवं धर्मप्रवर्तक थे। उन्होने अद्वैत वेदान्त को ठोस आधार प्रदान किया। भगवद्गीता, उपनिषदों और वेदांतसूत्रों पर लिखी हुई इनकी टीकाएँ बहुत प्रसिद्ध हैं- जिसमें प्रमुख ब्रह्मसूत्र पर ब्रह्मसूत्रभाष्य नामक भाष्य, ऐतरेय उपनिषद, वृहदारण्यक उपनिषद, ईश उपनिषद (शुक्ल यजुर्वेद), तैत्तरीय उपनिषद (कृष्ण यजुर्वेद), श्वेताश्वतर उपनिषद (कृष्ण यजुर्वेद), कठोपनिषद (कृष्ण यजुर्वेद), केनोपनिषद (सामवेद) है।
भगवान शिव की पूजा के अनेक स्तोत्र की रचनाएं आपने की। मनुष्य की दरिद्रता गरिबी को दुर करने वाला कनकधारा स्तोत्रम्  आदि है।
हिन्दू धर्म से विखंडित हुए पंथ, सनातन धर्म को ही चुनौती देने लगे थे। ऐसे में आदि शंकराचार्य जी ने सनातन धर्म को पुनर्स्थापित करने का बहुत बड़ा कार्य किया था। भारत की महान आध्यात्मिक परम्परा के प्रतिनिधि, ब्रह्म और आत्मा के अद्वैत दर्शन के प्रणेता है जगदगुरू आदि शंकराचार्य जी।
 श्रुतिस्मृतिपुराणानाम् आलयं करुणालयम।
नमामि भगवत्पादं शङ्करं लोकशङ्करम।
भारत की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक चेतना को एकता के सूत्र में पिरोने वाले  शंकरो शंकरः साक्षात्। कलिकाल कलयुग में हिन्दू धर्म के पुनुःद्धारक कालजयी, दिग्विजयी, सर्वज्ञ,शिव स्वरूप आपकी जंयती पर कोटि कोटि नमन।
पं. रविन्द्र कुमार पाण्डेय

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