जावद । राम इसलिए भगवान के रूप में स्वीकार किए गए क्योंकि वे जीवन को सुखी समृद्ध व संरक्षित रखने के पक्ष धर रहे ।उनका संघर्ष मानवतावादी व आततायियो से मानव की रक्षा के लिए था ।उनका राम राज्य सत्ता के लिए संघर्ष नही था अपितु प्रजा के लिए सत्ता के बलिदान तक का आदर्श प्रस्तुत करता है।
मानस मर्मज्ञ ,गीता अध्येता श्री जगदीश शर्मा अधिवक्ता ने उपरोक्त विचार महात्मा गांधी विचार मंच जावद के तत्वावधान में राम नवमी के पावन पर्व दिए अपने व्याख्यान में व्यक्त किए । महात्मा गांधी विचार मंच ने भगवान श्री राम के व्यक्तित्व की विराटता पर सिंहावलोकन पर यह अभिनव आयोजन रखा ।जिसमे नगर के प्रबुद्ध जनों ने भागीदारी की ।
श्री जगदीश शर्मा ने कहा कि भगवान राम व कृष्ण के व्यक्तित्व की चर्चा महात्मा गांधी के विचार व व्यवहार को देखे बगैर अधूरी है ।महात्मा गांधी के हाथ में गीता व दिल में राम रचे बसे थे ।गीता दर्शन से प्रेरित हो कर उन्होंने एक कर्म योगी की तरह अहिंसा के सहारे देश को आजादी दिलाई ।तो जब उन्हें गोली मारी तो हे राम ! उच्चारण उनके मुख से निकला । गांधी विचार मंच से राम की विराटता का दर्शन करना बड़ी बात है।
भगवान राम का जीवन ईश्वरीय है वे सौद्देश्य धरती पर आए । बचपन में गुरु विश्वामित्र के आग्रह पर राजा दशरथ को उन्हें व लक्ष्मण को सौपना पड़ा ।यह पहला संघर्ष था जो उन्होंने साधनारत तपस्वी मुनियों की साधना की रक्षा के लिए गुरु विश्वामित्र को समर्पित किया ।राम बचपन में अपने छोटे भाइयों भरत लक्ष्मण व शत्रुघ्न के प्रति अनन्य स्नेह भाव से भरे रहे । यही कारण था कि लक्ष्मण ने भाई राम के साथ चौदह वर्ष वनवास जाना स्वीकार किया तो भरत ने माता केकई द्वारा वचन के फलस्वरूप मिले राज्य को स्वीकार नंही किया ।राम ने जीवन में माता केकई के प्रति कभी अपने मातृ भाव को कम नहीं होने दिया । रावण से युद्ध लड़ा रावण का अंत हो गया किंतु राम का रावण के प्रति भाव उसे उसके अपराध के लिए दंडित करने तक ही सीमित रहा ।
श्री शर्मा ने कहा की रामेश्वर में प्राणप्रतिष्ठा के दौरान रावण को पुरोहित के रूप में बुलाना उनके हाथों प्राण प्रतिष्ठा कराना राम चरित्र की बड़ी घटना है। राम ने जीवन को जाति वर्ण ऊंच नीच के भेद से मुक्त रखा ।निषाद राज केवट शबरी से उनका संपर्क सद्भाव उनके मानवीय गुण को व्यक्त करता है। राम राज कुल में जन्मे किंतु जीवन भर राजा वाला सत्ता भाव स्थापित नही होने दिया ।प्रजा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता ने राज धर्म को नई परिभाषा दी ।
सीता का त्याग उनका राज धर्म ही था ।
श्री जगदीश शर्मा ने कहा भारतीय जन मानस में भगवान राम व उनकी धार्मिक परंपरा में गहरी आस्था रही है ।इस आस्था में जीवन की श्रेष्ठता निहित है।राम को स्वीकार करने का अर्थ है अन्य की मान्यताओं, भावो को स्वीकार करने वाला एक अनुशासित जीवन स्वीकार करना ।राम का नाम आनंद की वर्षा करता है । यह जीवन को हर्ष व उल्लास से भर देता है ।
व्याख्यान में पूर्व विधायक श्री नंदकिशोर पटेल पूर्व जनपद अध्यक्ष श्री सत्यनारायण पाटीदार ।प्रमुख समाज सेवी श्री ब्रजेश मितल श्री ओमप्रकाश राव श्री मनोहर अम्ब श्री राधेश्याम अग्रवाल श्री ज्ञानचंद गोयल विशेष रूप से उपस्थित हुए ।आरंभ में सभी अतिथियों v सुधीजनो ने भगवान राम के चित्र पर माल्यार्पण किया । महात्मा गांधी विचार मंच की और से श्री अजीत कांठेड़,सतीश नागला,अजीत चेलावत,संजय जोशी ,श्रेणिक तलेसरा ,शौकीन बोहरा ,शौकीन नेता ,महेश चौधरी विजय शर्मा सुरेश शर्मा धर्मवीर भांभी इब्राहिम बोहरा फजल अहमद पंकज ऐरन आदि ने मुख्य वक्ता श्री जगदीश शर्मा का शाल ओढ़ा कर सम्मान किया ।