दलोदा माहेश्वरी समाज की महिलाओं ने मनाया गणगौर पर्व
व्रत रखकर की ईशर गौरा (गणगौर माता) की आराधना
दलोदा (शुभम धोका) नगर में आस्था, समृद्धि व सौभाग्य के त्यौहार गणगौर तीज के अवसर पर माहेश्वरी समाज महिला द्वारा गणगौर यात्रा निकाली गई यात्रा रेलवे स्टेशन रोड शिव मंदिर से प्रारंभ होकर चौपाटी, प्रगति चौराहा, रेलवे फाटक होते हुए माहेश्वरी मांगलिक भवन पहुंची, जहाँ जुलूस का समापन हुआ।जुलूस में महिलाओ द्वारा (ईशर गौरा) गणगौर माता को साथ मे लेकर चल रही थी। यात्रा के दौरान धार्मिक भजनों पर महिलाओं ने नृत्य किया। समाज की महिलाओं ने गणगौर माता को प्रसन्न करने के लिए व्रत भी रखा।
गणगौर का शिव पार्वती से संबंध
गणगौर व्रत का संबंध भगवान शिव और माता से है । शास्त्रों में वर्णित कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव , माता पार्वती और नारद मुनि भ्रमण पर निकले । सभी एक गांव में पहुंचे । जब इस बात की जानकारी गांववालों को लगी तो गांव की संपन्न और समृद्ध महिलाएं तरह – तरह के स्वादिष्ट पकवान बनाने की तैयारी में जुट गईं , ताकि प्रभु अच्छा भोजन ग्रहण कर सकें । वहीं गरीब परिवारों की महिलाएं पहले से ही उनके पास जो भी साधन थे उनको अर्पित करने के लिए पहुंच गई । ऐसे में उनकी भक्ति भाव से प्रसन्न होकर माता पार्वती ने उन सभी महिलाओं पर सुहाग रस छिड़क दिया । फिर थोड़ी देर में संपन्न परिवार की महिलाएं तरह – तरह के मिष्ठान और पकवान लेकर वहां पहुंची , लेकिन माता के पास उनको देने के लिए कुछ नहीं बचा ।
इस पर भगवान शिव ने माता पार्वती से कहा कि अब आपके पास इन्हें देने के लिए कुछ नहीं बचा क्योंकि आपने सारा आशीर्वाद गरीब महिलाओं को दे दिया । ऐसे में अब आप क्या करेंगी। इस माता पार्वती ने अपने खून के छींटों से उन पर अपने आशीर्वाद बांटे । इसी दिन चैत्र मास की शुक्ल तृतीया का दिन था , इसके बाद सभी महिलाएं घरों को लौट गई । इसके बाद माता पार्वती ने नदी के तट पर स्नान कर बालू से महादेव की मूर्ति बनाकर उनका पूजन किया । फिर बालू के पकवान बनाकर ही भगवान शिव को भोग लगाया और बालू के दो कणों को प्रसाद रूप में ग्रहण कर भगवान शिव के पास वापस लौट आईं ।
कैसे और कब होती है पूजा
मान्यता है कि मां पार्वती होली के दूसरी दिन अपने पीहर चली जाती है । भगवान शिव 8 दिन बाद दोबारा लेने जाते हैं । 16 दिन तक इस पर्व को बड़े धूम – धाम के साथ मनाया जाता है । इस दिन माता पार्वती ने भगवान शंकर से सौभाग्यवती रहने का आशीर्वाद प्राप्त किया था । होली के दूसरे दिन से इसकी पूजा शुरू हो जाती है । गणगौर की मिट्टी की मूर्ति बना कुंवारी और सुहागिन महिलाएं पूजा करती है । चैत्र शुक्ल तृतीया को इसे विसर्जित किया जाता है ।