आलेख/ विचारमंदसौरमध्यप्रदेश

नववर्ष ; द्वार पर गायत्री मंत्र बाेलते हुए आम के पत्तों का वंदनवार, स्वस्ति के चिन्ह लगायें, घरों में यज्ञ करें – शर्मा


सृष्टि का नव संवत्सर प्राणी मात्र के लिए मंगलमय हो……
यस्मान्मासा निर्मितास्त्रिंषदरा : संवत्सरेय यस्मान्निमितो द्वादषार:।
अहोरात्रा यं परियन्तो नापुस्तेनौदनेनाति तराणि मृत्युम्।। (अथर्व. ४.३५.४)
भारत का एकमात्र वैदिक पंचाग “श्री मोहन कृति आर्ष पत्रकम्” के आधार पर ओ३म् तत्सत् श्री ब्रह्मणे द्वितीय परार्द्धे श्री श्वेत वाराहं कल्पे वैवस्वत मन्वन्तरे अट्ठाविंश वे महायुग में कलियुग में प्रथम चरण के साथ सृष्टि निर्माण का १ अरब ९७ करोड़ २९ लाख ४९ हजार १२६वां वर्ष, कालयुक्त संवत्सर व महाराजा विक्रमादित्य द्वारा चलित विक्रम संवत २०८१, उत्तरायणे, वसन्त ऋतु, चैत्र (मधु) मास, शुक्ल पक्ष प्रतिपदा सोमवार, तिथि देवता, ब्रह्मन, रेवती नक्षत्र, नक्षत्र देवता पूषम, वृषभ लग्न शिव मुहुर्त पर आगमन हो रहा है।

ऐसा नववर्ष प्राणी मात्र के लिए मंगलमय हो, ऐसे पुनित अवसर के पूर्व संध्या में घरों पर दीप प्रज्वलित करें। प्रात: ब्रह्म मुहूर्त में पवित्र होकर नववर्ष का स्वागत बड़ी श्रद्धा, हर्ष, गौरव व सौहाद्रपूर्ण मनोभाव से स्थानीय स्तर पर धार्मिक, सार्वजनिक चौपाल, आर्य समाज या अपने घरों पर ओ३म् की पावन पताका ध्वज गान के साथ फहरावें। वैदिक राष्ट्रीय प्रार्थना व शांति पाठ करें। दरवाजे पर आम के पत्तों का वंदनवार, स्वस्ति के चिन्ह गायत्री मंत्र बाेलते हुए लगायें। घरों में देशी गाय के गोबर से लीप करके यज्ञ करें। बड़े- बूढ़ों से आशीर्वाद, हम उम्र से बधाई व अनुजों के लिए मंगलकामना करें। विशेषकर कन्याओं के चरण स्पर्श करके उन्हे दक्षिणा भेंट करें। नीम की पत्तियों व मिश्री का प्रसाद वितरण करें।
विभिन्न शास्त्रों व श्रुतियों के आधार पर मधुमास, शुक्ल पक्ष, प्रतिपदा मैथुनी सृष्टि का प्रथम दिन-
सृष्टि संवत को विभिन्न मतों की कालगणनाओं की अपेक्षा सबसे प्राचीन माना गया है। विभिन्न शास्त्रों व श्रुतियों के आधार पर मधुमास, शुक्ल पक्ष, प्रतिपदा मैथुनी सृष्टि का प्रथम दिन है। संपूर्ण सृष्टि एक हजार चतुर्युगी वर्ष की है। चारों युगाें में सतयुग १७२८००० वर्ष + त्रेतायुग १२९६००० + द्वापर युग ८६४००० वर्ष + कलियुग ४३२००० वर्ष, कुल ४३,२०,००० × १००० = ४ अरब ३२ करोड़ यानी एक कल्प यानी ब्रह्मा एक अहाेरात्र, इसी प्रकार ब्रह्मा की १०० वर्ष की आयु यानी एक परांत काल (31 नील, 10 खरब, 40 अरब वर्ष) जिसमें जीव मोक्ष प्राप्त करने पर रहता है। इतनी लंबी काल गणना का ज्ञान हमारे ऋषियों द्वारा हुआ, जिसे भूलकर हम हासिये पर आने वाला पाश्चात्य काल गणना 1 जनवरी को ही नववर्ष मानकर शर्मनाक व गौरवहीन संस्कृति को अपनाने लगे है। 6 चतुर्युगी में जड़ादि सृष्टि व बाद में 994 चतुर्युगी मानव (मैथुनी) सृष्टि का निर्माण होता है। अत : 2 करोड़ 59 लाख 20 हजार वर्ष जड़ सृष्टि + 4 अरब 29 करोड़ 40 लाख 80 हजार वर्ष मानव (मैथुनी) सृष्टि = 4 अरब 32 करोड़ वर्ष का एक कल्प (एक हजार चतुर्युग ) हुआ।

-मानव सृष्टि में 14 मन्वन्तर होते –

1. स्वायम्भुव, 2. स्वरोचिस, 3. औत्तामी, 4. तामस, 5. रैवत, 6. चाक्षुष, 7. वैवस्वत, 8. सावर्णि, 9. दक्ष सावर्णि, 10. ब्रह्म सावर्णि, 11. मेरू सावर्णि, 12. रूद्र सावर्णि, 13. रुचि सावर्णि, 14. इंद्र सावर्णि। इस प्रकार ब्रह्मा के 30 दिनों के नाम 1. श्वेत वाराह, 2. नील लोहित, 3. वामदेव, 4. रथन्तर, 5. रौरव, 6. प्राण, 7. बृहत्, 8. कन्दर्प, 9. सद्य:, 10. ईशान, 11. तम:, 12. सारस्वत, 13. उदान, 14. गरुड़, 15.कौर्म, 16.नृसिंह, 17.समान, 18. आग्नेय, 19. साेम, 20. मानव, 21.पुमान, 22. वैकुण्ठ, 23. लक्ष्मी, 24. सावित्री, 25. घोर, 26.वाराह, 27. वैराज, 28. गौरी, 29.महेश्वर, 30. पितृ।

वर्तमान में सातवां वैवस्वत मन्वन्तर चल रहा है। स्मरण रखने योग्य महत्वपूर्ण सिद्धांत है कि एक मन्वन्तर में 71 चतुर्युगी का समय होता है और एक संपूर्ण सृष्टि की 1000 चतुर्युगी की हाेती है। वर्तमान मन्वन्तर सृष्टि की कालगणना सम्प्रति चैत्र (मधु) शुक्ल प्रतिपदा वि.सं. 2081 मंगलवार से पहिले छ: मन्वन्तर व्यतीत होकर सातवें (वैवस्वत) मन्वन्तर की भी 27 चतुर्युगी समाप्त होकर 28वें चतुर्युगी का सत- त्रैता- द्वापर के बाद कलियुग का 5125 वर्ष बीत चुके है।

पं नानालाल शर्मा ‘ब्रह्मदूत’
9009816811
ग्राम- देहरी, तह. दलौदा, जिला- मंदसौर (म.प्र.)

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