पुलिस, फ़ोर्स पर हमला करने व शासकीय कार्य में बाधा पहुँचाने के आरोप से पार्षद व पूर्व पार्षद सहित अन्य आरोपी बरी
नारायणगढ़:- वर्ष 2015 के हंगामाखेज़ मामले में न्यायालय नारायणगढ़ ने पिपलिया पुलिस चौकी में घुसकर तत्कालीन चौकी प्रभारी राकेश चौधरी, तत्कालीन थाना प्रभारी लक्ष्मणसिंह गुर्जर सहित अन्य उपस्थित पुलिस फ़ोर्स पर हमला कर शासकीय कार्य में बाधा करने के आरोप से पार्षद बाबू मंसूरी, पूर्व पार्षद बिल्किसबी व अन्य आरोपी फ़ारूख़ व शब्बीर को दोषमुक्त किया।
पुलिस की कहानी अनुसार दिनांक 28/09/2015 को राकेश चौधरी पीपलिया चौकी प्रभारी थे, तभी बाबू मंसूरी आया और फिरोज मेव एवं मुजीब मंसूरी के ख़िलाफ़ एक शिकायती आवेदन दिया, जिसको राकेश चौधरी ने आमद दर्ज कर जाँच में लिया और फिरोज व मुजीब को बुलाने प्रधान आरक्षक प्रमोद सिंह को भेजा, जो दोनों को बुलाकर लाए। राकेश चौधरी चौकी में फिरोज से पूछताछ कर रहे थे कि तभी पीछे से बाबू मंसूरी आया और फिरोज से बहस करने लगा। फिरोज और बाबू में बहस होने लगी, दोनों मरने मारने पर उतारू हो गये, सभी पुलिसकर्मियों ने काफ़ी समझाया लेकिन बाबू मंसूरी नहीं माना, संज्ञेय अपराध से रोकने के लिए राकेश चौधरी ने उपस्थित फ़ोर्स की सहायता से दोनों को गिरफ़्तार किया, तभी बाबू मंसूरी के परिवार से उनकी पत्नी बिल्किस बी, भाई फारूक व शब्बीर और पिता अब्दुल क़ादिर वहाँ आ गये और उन्होंने हंगामा करते हुए बाबू को पुलिस की गिरफ़्त से छुड़ाने का प्रयास किया और सभी ने मिलकर वहाँ उपस्थित पुलिस फ़ोर्स पर हमला किया और गाली गलौज की और शासकीय कार्य में बाधा की।
तभी थाना प्रभारी लक्ष्मणसिंह गुर्जर भी वहाँ आ गये, उनके साथ भी सभी ने गाली गलौज और हमला किया।जिसके बाद राकेश चौधरी ने फ़रियादी बनकर सभी आरोपीगण के विरुद्ध रिपोर्ट लिखाई, जिसपर थाना प्रभारी ने धारा 353, 186, 34 भादवी के अंर्तगत एफ़आइआर दर्ज की। चूँकि पिपलिया के थाना प्रभारी और चौकी प्रभारी और पिपलिया पुलिस बल इस मामले में संलिप्त थे, तो मामले में अग्रिम विवेचना मल्हारगढ़ थाना प्रभारी रहे के के शर्मा ने की, जिन्होंने जाँच कर सभी के कथन व सबूत इकट्ठे कर आरोपीगण के विरुद्ध चालान न्यायालय में पेश किया।
पुलिस ने न्यायालय में अपने मामले को साबित करने के लिये कुल 7 गवाहों – राकेश चौधरी, लक्ष्मणसिंह गुर्जर, प्रमोद सिंह, जगदीश सिनम, हरिओम सिंह, अजय शर्मा, केके शर्मा के बयान करवाए। जिनसे आरोपीगण की ओर से अधिवक्ता एम सय्यद मंसूरी व एम जैनुल मंसूरी ने प्रतिपरीक्षण किया और बचाव में तर्क दिये कि, तत्कालीन समय बाबू मंसूरी की दुकान में फिरोज मेव व उसके परिवार ने आग लगा दी थी, जिस पर इनके ख़िलाफ़ मुक़दमा क़ायम हुआ था, जिसकी जाँच राकेश चौधरी द्वारा की जा रही थी, किंतु राकेश चौधरी उससे मिल गये और उसको गिरफ़्तार नहीं किया, जिसके बाद राकेश चौधरी के ख़िलाफ़ बाबू मंसूरी और उनके परिवार ने चौकी के बाहर धरना भी दिया, जिससे नाराज़ होकर पुलिस ने झूठा मुक़दमा बाबू मंसूरी और उनके परिवार के ख़िलाफ़ बना दिया। आरोपी के अधिवक्ता द्वारा प्रस्तुत तर्को एवं दलीलों से सहमत होते हुए न्यायालय ने सभी आरोपीगण को बाइज्जत बरी कर दिया। प्रकरण में आरोपीगण की तरफ़ से सफल पैरवी अधिवक्तागण एम सय्यद मंसूरी, एम जेनुल मंसूरी, जतिन परमार, निलेश शुक्ला ने करी।