आलेख/ विचारभोपालमध्यप्रदेश

रावण को राक्षस कहना अपराध है आज का रावण ?

रावण को राक्षस कहना अपराध है आज का रावण ?

-राजेन्द्र सिंह जादौन

9893894536

रामायण से ज़्यादा आज के ज़माने पर लागू होता है क्योंकि असली राक्षस तो अब हमारे बीच जीता-जागता घूम रहा है और वह किसी स्वर्ण लंका का राजा नहीं बल्कि लोकतंत्र की आड़ में जनता का गला घोंटने वाला सत्ता का सौदागर है, इतिहास का रावण विद्वान था, शिव का अनन्य भक्त था, संगीत और वेदों का ज्ञाता था, उसने सीता का हरण किया पर खुलकर किया, रणभूमि में लड़ा और हार गया, पर आज का राक्षस ऐसा है जो हर दिन जनता की थाली का हरण करता है, जनता की कमाई का हरण करता है, युवाओं के भविष्य का हरण करता है और यह सब मुस्कुराते हुए करता है,

यह इतना धूर्त है कि सुबह अमेरिका की गोद में बैठा दिखाई देता है तो शाम तक चीन की चौखट पर सिर झुकाए नज़र आता है, यह ऐसा झूठ बोलता है कि अगर चरखी से भी लपेटो तो धागा खत्म हो जाएगा मगर झूठ खत्म नहीं होगा, इतिहास का रावण अगर एक बार झूठ बोलता था तो उसके दस सिर झुक जाते थे पर आज का राक्षस सौ झूठ बोलता है और हर बार तालियाँ बजवाता है, रावण को राम ने कभी राक्षस नहीं कहा पर आज का राक्षस राम का नाम लेकर रावण से भी बदतर कृत्य करता है, धर्म की दुहाई देता है मगर धर्म को बाजार में बेचता है, राष्ट्रवाद का नारा लगाता है मगर राष्ट्र की आत्मा गिरवी रख देता है, गरीब का मसीहा कहलाता है मगर गरीब की थाली से रोटी और किसान की ज़मीन से मिट्टी तक छीन लेता है, इतिहास का रावण सिर्फ़ दस सिर वाला था पर आज का राक्षस हजार सिर वाला है, एक सिर मीडिया की जेब में, दूसरा सिर पूंजीपतियों की गोद में, तीसरा सिर अंतरराष्ट्रीय सौदों पर टिका, चौथा सिर वोट बैंक की राजनीति में, पाँचवाँ सिर झूठे वादों के पिटारे में और बाकी के सिर जनता की गर्दन पर सवार, असली अपराध यह नहीं है कि रावण को राक्षस कहा जाए बल्कि अपराध यह है कि आज के राक्षस को पहचान कर भी चुप रहा जाए, रामायण का रावण कम से कम इतना ईमानदार था कि उसने खुलकर युद्ध किया, जनता को धोखा नहीं दिया, लेकिन आज का राक्षस पर्दे के पीछे सौदे करता है, सामने आकर प्रवचन देता है, कैमरे पर देवदूत बनता है

और पर्दे के पीछे नरभक्षी साबित होता है, इसलिए सच यही है कि रावण को राक्षस कहना ऐतिहासिक गलती हो सकती है पर आज के नेताओं और सत्ता के दलालों को राक्षस कहना इतिहास के साथ न्याय है, बल्कि सच कहें तो रावण की तुलना करना भी रावण का अपमान है क्योंकि वह विद्वान था और आज का राक्षस सिर्फ़ झूठ का व्यापारी, सत्ता का भूखा और जनता का गला घोंटने वाला ढोंगी है, आज सबसे बड़ा युद्ध राम और रावण का नहीं बल्कि जनता और इन आधुनिक राक्षसों का है, फर्क इतना है कि तब राम थे जो न्याय और धर्म की स्थापना करने उतरे थे और आज जनता है जिसे अपने भीतर का राम जगाना होगा वरना ये राक्षस हमें निगलते रहेंगे और हम रामायण की तरह सिर्फ़ कहानी सुनाते रह जाएंगे।

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