इतिहास दर्शनमंदसौरमध्यप्रदेश

१६०४ इस्वी में चैत्र पूर्णिमा नवरात्रि एवं हनुमान जयंती के शुभ अवसर पर सीतामऊ नगर कि हुई स्थापना

 

-लेखक लक्ष्मीनारायण मांदलिया

सीतामऊ जिला मंदसौर मध्यप्रदेश

 

 

सीतामऊ छोटी काशी के स्थापना का इतिहास लगभग ४२० वर्ष पूराना माना जाता है इसको लेकर लगभग १७८ विभिन्न जनश्रुतियों विश्व प्रसिद्ध श्री नटनागर शोध संस्थान तथा वरिष्ठ नागरिकों आदि से डेढ़ वर्ष से अधिक के अंतराल के समय में जानकारियां प्राप्त हुई। जिसमें सन १६०४ विक्रम संवत १६६१ शक संवत १५२६ कलयुग ४७०५ के समय में तत्कालीन खानाबदोश आदिवासी मजदूर का कबीला मजदूरी के लिए भ्रमण करते थें उस समय में एक पहाड़ी टेकरी पर जो कि चारों ओर से सुरक्षित एवं उंचा स्थान होने पर अपने परिवार कबीले के साथ सीत्या भील नामक व्यक्ति ने अपना डेरा जमाया उक्त सीत्या भील के साथ परिवार मजदूर के साथ-साथ पशुपालन का कार्य भी था सबके पानी की व्यवस्था को लेकर सीत्या भील एवं परिजनों द्वारा तालाब का निर्माण किया गया।

इसी बीच जनश्रुति के अनुसार विक्रम संवत १६०४ इस्वी में हिंदी माह के चैत्र शुक्ल सप्तमी मंगलवार की रात्रि एवं बुधवार अष्टमी की सुबह में सीत्या भील को कुलदेवी माताजी के दर्शन हुए और उसने इस टेकरी पर अपना घर बनाने के साथ ही नगर की नींव रखने का आशीर्वाद दिया। सपने में हुए माताजी के दर्शन आशीर्वाद के पश्चात सीत्या भील ने एक पत्थर को पूजा अर्चना कर कुलदेवी वेराई माता जी के रूप में स्थापित कर दिया।

बताया जाता है कि फिर अपने परिवार के साथ सीत्या भील ने विधि विधान पूर्वक चैत्र शुक्ल पूर्णिमा बुधवार को ९ घड़ी ३६ पल के मुहूर्त में माता जी का छोटा सा चबूतरा बनाकर पूजा अर्चना की। जानकारी के अनुसार सीतामऊ नगर के वर्तमान आजाद चौक स्थित एक पेड़ था जिस पर एक पक्षी ने कहा कि यहां पर आज जो व्यक्ति अपना घर बनाएगा यहां एक नगर बसेगा। ऐसा कहा जाता है कि सीत्या भील पक्षियों आवाज पहचानता था। पक्षी कि बात पर एवं कुल देवी के तीन चार पत्थरों से छोटे से मंदिर बना कर के पुजा अर्चना के साथ अपने (झोपड़ी) घर को बना कर नगर स्थापना कि शुरुआत की गई।

वरिष्ठ प्रबुद्ध जनों के अनुसार सीत्या भील नामक व्यक्ति द्वारा अपने कुल देवी वेराई माता जी कि प्रतिमा स्थापना का दिन चैत्र शुक्ल दुर्गा अष्टमी बुधवार नवरात्रि का शुभ दिन रहा तथा लघु मंदिर निर्माण सन् १६०४ विक्रम संवत १६६१,शक संवत १५२६, कलयुग ४७०५, चैत्र शुक्ल पूर्णिमा बुधवार का दिवस बहुत ही शुभ दिवस था इस दिन चित्रा नक्षत्र ३० फल के साथ ०९ घड़ी ३६ पल का शुभ मुहूर्त होने के साथ-साथ रामदूत एवं शंकर स्वयं हनुमान जी का जन्म दिवस भी था । इस शुभ पल में माता जी कि पुजा अर्चना एवं नगर स्थापना हुई है।

जानकारी के अनुसार १६०४ इस्वी में चैत्र शुक्ल पूर्णिमा हनुमान जयंती के अवसर पर वेराई माता जी के पुजा अर्चना लघु मंदिर कि स्थापना कर सीत्या भील द्वारा अपने व परिजनों के झोपड़ियों को बना कर नगर स्थापना कि नीम रखीं थीं। इसीलिए इस नगर का प्राचीन समय में सीत्या भील के नाम से सीत्या और बसने को मू / मऊ कहा जाता है तो पुरा नाम सीत्यामऊ हुआ धीरे-धीरे यह नाम परिवर्तन हो कर सीतामऊ तथा रियासत के समय यहां के राजाओं द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने पर इस नगर का नाम पूरे देश में लिया जाने लगा और इसको एक और नाम छोटी काशी नाम का गौरव प्राप्त हुआ।

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